क्या ये ज़रूरी है…!!!

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हम सभी को क्या चाहिए, क्या नहीं चाहिए। क्या सोचना है, क्या नहीं सोचना है। क्या बोलना है, क्या नहीं बोलना है। कैसे रहना है, कैसे नहीं रहना है। इन सारी बातों के लिए परमात्मा ने हमें बुद्धि दी। अब परमात्मा की बुद्धि और मनुष्य आत्माओं की बुद्धि में क्या अंतर है, इसको समझ लेते हैं।

मनुष्य आत्मा सीमित दायरे में जीता है। वो हमेशा हमको वही सिखाता है या वही सिखायेगा जो उसने जीवन में देखा है, सुना है, पढ़ा है या फिर कहीं ओर से लिया है। इसके अलावा वो ऐसी कोई बात हमें कभी नहीं सिखा सकता जो हमें इस दुनिया से निकाले। परमात्मा इस दुनिया से बिल्कुल अलग है। और परमात्मा हमको वो सिखायेगा जो हमारे कल्याण के लिए होगा। परमात्मा के लिए कहा जाता है कि वो सबका कल्याण चाहता है। सबके लिए कल्याणकारी है। तो जो सबके लिए कल्याणकारी है उसकी बात सुनें या जो सिर्फ एक का कल्याण, वो भी कल्याण नहीं है, अकल्याण है क्योंकि व्यक्ति जो सिखाता है घर में, बाहर जो भी सिखाता है वो सिखाता है कि भाई आपको नौकरी कर लेनी है। इसके बाद ये कर लेना है, इसके बाद ये कर लेना है। मतलब जो व्यक्ति जिस बंधन में है उस बंधन की बातें ही हमारे अन्दर डालता है। उसमें और भी चीज़ें जुड़ जाती हैं। चीटिंग है, चलाना है, धोखा देना है, ऊपर-नीचे करना है, समाज में रहना है तो आपको ऐसा करना चाहिए।
जो भी इस दुनिया में हैं वो सभी हमको वो ही शिक्षा देते हैं। चाहे वो कितना ही वैल्यूबल इंसान हो, लेकिन वो सिखाएगा वही जो इस दुनिया में सारी चीज़ें लोगों की बनी हुई हैं। इसीलिए तो हम लोग उलझन में आ जाते हैं कि मेरे घर में तो लोग बहुत अच्छे थे, बहुत अच्छा था सारा कुछ फिर मेरे को उलझन क्यों हो रही है? क्योंकि उन्होंने वही सिखाया जो इस दुनिया में हमको बांधता है।
इसीलिए हमको मेडिटेशन या परमात्मा या ऐसे ज्ञान की ज़रूरत पड़ती है जो मुझे इस दुनिया में रहते भी मुक्ति का अनुभव कराये, चिंता मुक्त अनुभव कराये। इसीलिए इस ज्ञान की आवश्यकता है। तो परमात्मा सबको हमेशा ऐसी बुद्धि देता है। ऐसी सद्बुद्धि देते हैं जिस सद्बुद्धि से हम अपना भी कल्याण करते हैं और दूसरों का भी करते हैं। शरीर निर्वाह अर्थ तो हमको कर्म करना ही है। और इस दुनिया में हम रह रहे हैं तो हमको शरीर के लिए काम तो करना ही पड़ेगा। लेकिन क्या शरीर के लिए काम करते हुए दिनभर, क्योंकि शरीर की एक लिमिटेशन है, एक सीमा है। थोड़ी देर के बाद फिर सोचेंगे कि क्या करें? लेकिन मन निरंतर चल रहा है। मन को शांति चाहिए, मन को शक्ति चाहिए, मन को आनंद चाहिए। और वो आनंद, शक्ति इस शारीरिक कर्म से नहीं मिलती। तो दो चीज़ें हो गई। एक तो दुनिया वाले मनुष्य ने भी सीखा दिया कि हमको जीवन में रहना है तो नौकरी कर लो। सारी चीज़ें बता दीं। लेकिन परमात्मा कहता है कि आपको, मन को आनंद व शक्ति लेने के लिए बुद्धि से इस बात को समझना है, क्या समझना है कि मेरे लिए क्या ज़रूरी है! मेरे लिए शक्ति ज़रूरी है, शांति ज़रूरी है, प्रेम ज़रूरी है क्योंकि जो कर्म मैं बाहर करता हूँ उसको भी करने के बाद मैं असंतुष्ट महसूस करता हूँ।
तो जो मैं असंतुष्ट महसूस करता हूँ उसका कारण क्या है? क्योंकि मैं अन्दर से असंतुष्ट हूँ। तो संतुष्टि कब आयेगी? जब मन को रियल मिलेगा, रॉयल मिलेगा। और रियल और रॉयल कहाँ से मिलता है? रियल से मिलता है। वास्तविक से मिलता है और वास्तविक सिर्फ और सिर्फ एक परमात्मा है। तो देखो हमको परमात्मा की तरफ आकर्षण क्यों होता है? हम हमेशा क्यों ईश्वर की बात करते हैं, भगवान की बात करते हैं, जुडऩे की बात करते हैं, क्योंकि पहले कभी न कभी हमारा एक बार उससे रिश्ता ज़रूर बना था। जोकि मुझे सुकून देता था, गहरी शांति देता था। सबकुछ हमने कुछ न कुछ उससे गहराई से लिया है, महसूस किया है। आज उन्हीं सम्बन्धों को, उन्हीं बातों को फिर से इस दुनिया में महसूस करना हम चाहते हैं। लेकिन ऐसा कोई मिलता नहीं, क्योंकि सब लोग वही सिखाते हैं जो इस दुनिया में है। जो इस दुनिया में चल रहा है।
तो परमात्मा कहता है मैं रियल हूँ, तुम आत्मा भी रियल हो। अब इस रियल को रियल से जोडऩे के लिए परमात्मा ने एक बहुत सुन्दर टेक्निक बताई, वो ये बताई कि शरीर के साथ रहते हुए अपने को इस देह से अलग मानना और जैसे ही मैंने इस देह से अलग माना तो उस देहातीत परमात्मा से भी हमारा कनेक्शन हो जायेगा। क्योंकि आत्मा का अन्दर से एक भाव होता है, वो सिर्फ और सिर्फ परमात्मा को ही याद करती है। तो परमात्मा से अगर हमको जुडऩा है तो हमको ये सारी बातें क्यों सोचनी हैं? तो हमको रियल समझ अन्दर लाना है। वो है मेरे को क्या चाहिए? ये सोचना है बैठ के। मेरे को क्या चाहिए? तो जितनी बार आप सोचेंगे उतनी बार आपको सॉल्यूशन मिलता जायेगा। और वो आपको परमात्मा तक पहुंचायेगा।

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