जो देवकुल की आत्मायें हैं वो पवित्र बनने लगी, देह भान छूटने लगा और आत्म ज्ञान बढऩे लगा, स्वयं भगवान ने परम शिक्षक बन कर सम्पूर्ण ज्ञान दे दिया। तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, क्यों आये हो? ये सृष्टि चक्र कैसे घूमता है, ये आदि में कैसा था संसार, अंत में ये ऐसा क्यों हो गया? परमधाम कहाँ है,जहाँ से तुम आये हो, भगवान कौन है, ये माया क्या है? विस्तृत नॉलेज।
आज संसार में चारों ओर दु:ख-अशान्ति, रोग-शोक, चिन्तायें, परेशानियां, अनेक विघ्न नज़र आते हैं। सब लोग सोचते तो हैं कि संसार में विकास तो बहुत हो गया है, फिर ये सब निगेटिविटी क्यों? विज्ञान के विकास का सुख मनुष्य को फिजि़कली बहुत मिल रहा है एक्सटर्नली लेकिन इन्टर्नली वो इतना कमज़ोर क्यों हो गया है कि वो इतनी छोटी-छोटी बातों को सहन नहीं कर पाता और अशान्त हो जाता है। छोटी बातें आते ही वो टेन्स हो जाता है। छोटी-सी घटनायें उसे चिन्ताओं की चिता पर बिठाती है। सोचते अवश्य हैं कुछ चिन्तक लोग। भगवान ने आकर इसके कारण बताये। क्योंकि मनुष्य के अन्दर कई जन्मों से देहभान बहुत बढ़ता आया। वो ये भूल गया कि वो एक आत्मा है। देह का आकर्षण बढ़ा, मनोविकार बढ़े, बहुत ज्य़ादा विकार बढ़े पिछले सौ सालों में। विषय-विकार, लस्ट बहुत बढ़ गया संसार में। इससे देह अभिमान और कड़ा होता गया। मन-बुद्धि की शक्तियां नष्ट होती गईं। और ये अपवित्रता ही दु:ख-अशान्ति का बीज बन गई।
इस बात को बहुत कम लोग दुनिया में जानते हैं कि पवित्रता सुख-शान्ति की जननी है। और ये अपवित्रता जो आजकल बढ़ी हुई है यही सर्व समस्याओं का कारण है। आज जो कुछ भी संसार में हो रहा है उसको अगर आप एनालाइज़ करें तो आपको दिखाई देगा कि 90 प्रतिशत समस्यायें विषय-विकारों के कारण है, देह अभिमान के कारण है। इससे स्वार्थ बढ़ा, अहंकार के कारण डायवोर्स होने लगे। सुसाइडल टेंडेंसी बढ़ गई। कितनी समस्याओं की एक चेन बन गई है।
भगवान ने आकर अब आदेश दिया कि अब तुम पवित्र बनो। मुझे ये संसार बदलना है। फिर से इस वसुंधरा पर स्वर्णिम युग की, सतयुग की स्थापना करनी है। तो तुम सब पवित्र बनो। उसकी जो देवकुल की आत्मायें हैं वो पवित्र बनने लगी, देह भान छूटने लगा और आत्म ज्ञान बढऩे लगा, स्वयं भगवान ने परम शिक्षक बन कर सम्पूर्ण ज्ञान दे दिया। तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, क्यों आये हो? ये सृष्टि चक्र कैसे घूमता है, ये आदि में कैसा था संसार, अंत में ये ऐसा क्यों हो गया? परमधाम कहाँ है,जहाँ से तुम आये हो, भगवान कौन है, ये माया क्या है? विस्तृत नॉलेज। मुक्ति और जीवनमुक्ति, स्वर्ग और नर्क, माया को जीतने का ज्ञान, श्रेष्ठ और इज़ी साधनाओं का ज्ञान, स्वयं परमशिक्षक ने दिया। मुझे इस संसार को बदलना है। इस संसार को बदलने के लिए मुझे चाहिए तुम सबकी पवित्रता का बल। केवल ज्ञान से, केवल पॉलिटिकल पॉवर से इस संसार को बदला नहीं जा सकेगा। इसमें पवित्रता का बल चाहिए।
उन्होंने सबको सहज पवित्रता का ज्ञान दिया और लाखों-लाखों लोग पवित्र बन गये हैं। प्रैक्टिकली है, बनेंगे नहीं, बन गये हैं। बन चुके हैं, उनकी पवित्रता के वायब्रेशन्स ने उनके जीवन को सुख-शान्ति से भर दिया है। हम देख रहे हैं जिसके पास जितनी पवित्रता है क्योंकि पवित्रता के बहुत लेवल हैं।
ब्रह्मचर्य से शुरू होकर मन की शुद्धि, स्वप्नों तक भी पवित्रता, दृष्टि भी पवित्र, वृत्ति भी पवित्र, विचार भी पवित्र, वायब्रेशन्स भी पवित्र, कोई व्यर्थ संकल्प नहीं, इसके बहुत सारे लेवल बनाते हैं। जिसका लेवल जितना ऊंचा उठता जाता है। उसका जीवन उतना ही अनुभूतियों की खान बनता जाता है।