मुख पृष्ठदादी जीदादी हृदयमोहिनी जीव्यर्थ संकल्प भी असत्यता है जिससे एनर्जी खत्म होती है

व्यर्थ संकल्प भी असत्यता है जिससे एनर्जी खत्म होती है

बाबा ने एक बार कहा था कम्बाइंड तो हूँ लेकिन समय पर काम में नहीं लेते हैं। मानों मेरे में शक्ति नहीं है लेकिन बाबा तो शक्तिमान है। तो उस समय बाबा की याद आवे। माया भी चतुर है पहले बाबा भुला देगी, अकेला कर देगी फिर वार करेगी। क्यों याद भुल जाती है? दिल सच्ची नहीं है।

सत्यता माना स्वच्छता, कोई भी अच्छी श्रेष्ठ चीज़ होगी तो उसे स्वच्छ स्थान पर ही रखेंगे। हमारे दिल में भी बाबा विराजमान है तो हमारी दिल सच्ची है। नहीं तो ऐसे कहेंगे हमारे दिल में बाबा है लेकिन जब समय आयेगा तो बाबा याद नहीं आयेगा। साथ में रहेगा बाबा लेकिन कम्बाइंड नहीं होगा। तो चेक करो हमारे दिल में कोई बुराई तो नहीं है। बुराई को सत्यता नहीं कहेंगे। जब कोई पेपर आता है तो कम्बाइंड बाबा की शक्ति से पेपर में पास हो जाते हैं। बाबा ने एक बार कहा था कम्बाइंड तो हूँ लेकिन समय पर काम में नहीं लेते हैं। मानों मेरे में शक्ति नहीं है लेकिन बाबा तो शक्तिमान है। तो उस समय बाबा की याद आवे। माया भी चतुर है पहले बाबा भुला देगी, अकेला कर देगी फिर वार करेगी। क्यों याद भुल जाती है? दिल सच्ची नहीं है।
कोई भी बुराई के जो व्यर्थ विचार चलते हैं, संकल्प चलते हैं। आजकल अशुद्ध संकल्प कम आते हैं लेकिन व्यर्थ संकल्प ज्य़ादा आते हैं। व्यर्थ संकल्प भी असत्यता है। व्यर्थ संकल्प से एनर्जी बहुत जाती है, टाइम पर दिमाग में टचिंग नहीं आयेगी। क्या करूं, क्या नहीं करूं… यही सोचता रह जाता है। यहाँ से अपने आप मन और बुद्धि को बिल्कुल ही स्वच्छ करके यानी कोई भी बुराई नहीं, ऐसी सत्यता की मूर्त बन करके जायें।
सत्यता में सभी गुण उनके वफादार होंगे। समझो ऐसी कोई बात हमारे सामने आती है और उस समय सहनशक्ति हमको चाहिए तो ऑर्डर करो सहनशक्ति चाहिए और सहनशक्ति आवे। तो इस बात की ट्रायल पहले से ही करना। जिस समय जो शक्ति चाहिए वो शक्ति हमारे सामने हाजि़र होनी चाहिए क्योंकि अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान कहते हो ना!
तो चेक करो व्यर्थ संकल्प के बजाए मैं समर्थ संकल्प करना चाहूँ तो हुआ, या सोचा तो समर्थ संकल्प करने का लेकिन व्यर्थ संकल्प चल जाते हैं। तो सिद्ध है कि अपने ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर नहीं है। कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पॉवर चाहिए। वो तब होगा जब सत्यता की शक्ति होगी। साथ में ईमानदार भी हो। ईमानदार अर्थात् स्वयं में पहले ईमान, बाबा में ईमान, ड्रामा में ईमान हो यानी फेथ, निश्चय हो। और जो भी बाबा ने खज़ाना दिया है, सर्वशक्तियां, गुण और सबसे बड़े में बड़ा खज़ाना संगमयुग का समय। संगमयुग में हम एक जन्म के भी लास्ट में भी अगर तीव्र पुरूषार्थ करते हैं तो लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फस्र्ट हो सकते हैं। आप भले पीछे आये हो लेकिन आगे जा सकते हो, क्योंकि वरदान है बाबा का। लेकिन जैसे कोई स्टूडेंट लास्ट में आता है तो अटेन्शन से पुरूषार्थ करता है, ईमानदार है, सत्यता की शक्ति है, आज्ञाकारी है तो आप पहले वालों से भी आगे जा सकते हो। लेकिन वरदान को पूरा करने वाले थोड़ा तीव्र पुरूषार्थ करो। बाबा को रेस करके दिखाओ। विजयी रत्नों को बाबा बाहों की माला देता है।

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