बाबा ने एक बारी कहा था पहले 5 मिनट याद में बैठो, फिर 10 मिनट बैठो, मजा आने लगेगा फिर एक घंटा बैठने की आदत पड़ जायेगी। अगर कोई कहते याद में बैठने का टाइम नहीं है तो यह भी पाप है। किसको ठगते हैं? बाबा ने कहा हुआ है टीचर को यह नहीं कह सकते ब्लिस करो, पढऩा तेरा काम है। पढ़ाना मेरा काम है। पढऩे वाले को ऑटोमेटिक उमंग आता है, फिर औरों को भी वह सुनाने लगता है। जब तक आपस में ज्ञान की लेन-देन न करो तब तक आपस में भी वह प्यार नहीं रहता। हमारा केवल काम का(सेवा का) ही सम्बन्ध नहीं है। जैसे ऑफिस में गये काम किया, वापस आ गये, डयूटी पूरी हो गयी। ईश्वरीय परिवार के प्यार के सम्बन्ध की डोर बड़ी मजबूत हो। कोई अपने को माला का दाना कितना भी अच्छा समझे, देखने में भी अच्छा हो, लेकिन स्नेह सूत्र में अगर एक-दो के समीप नहीं आया तो माला में कैसे आयेगा? अगर ईश्वरीय स्नेह के सूत्र में एक-दो के नज़दीक नहीं आया तो कहता रहे मेरा बड़ा अच्छा योग है, मेरी अच्छी सेवा है, वह तो अपने को खुश करता है। परन्तु सच्चा पुरूषार्थी, वैजयन्ती माला में आने वाला ईश्वरीय स्नेह की डोर में बंधा होगा। तो इतना अच्छा दाना बनो जो और भी आपके साथ में रहकर अच्छे बन जायें। ऐसे नहीं अभिमान हो मैं अच्छा हूँ।
निश्चय में विजय है। जो सच्ची भावना से कुछ भी करता है उसे उसी घड़ी उसका बल और फल मिलता है। जो सच्ची भावना से सेवा करता है। जो सेवायें करके दुआयें लेता है, ऐसे सच्चे सेवाधारी के पास माया आ नहीं सकती।
किसी का दु:ख दूर करके दुआयें ले लो। तो हर एक अपने को देखे कि मुझे दुआयें मिल रही हैं। बाबा उन दुआओं में अपनी शक्ति भर देता है। अगर माया को समझना हो, मायाजीत बनना हो तो अपने सूक्ष्म संस्कारों पर ध्यान दो। जो आत्मा में मन-बुद्धि संस्कार हैं। मन-बुद्धि में जो श्रेष्ठ विचार हैं, श्रेष्ठ कर्म करने की जो शक्ति है, वो संस्कार अच्छे बना देती है। संस्कार अनुसार नेचर है। देह अभिमान के कारण जो नेचर बन गयी है- उठने की, बोलने की, खाने की, उस नेचर को बाबा ने चेंज किया है। संस्कार अनुसार स्वभाव है। अभी हमारा संस्कार ईश्वरीय सन्तान का बन गया। मायाजीत बनने के लिए सी फादर, फॉलो फादर… इससे बहुत मदद मिलती है। संकल्प में दृढ़ता हो, जो कर्म बाबा ने किया है, जो बाबा को अच्छा लगता है, जो कर्म बाबा ने सिखलाया है, वही कर्म मुझे करना है। देखना है तो बाबा के चेहरे को देखो, बाबा कभी मूंझता नहीं है, कभी मुरझाता नहीं है। आदि से यज्ञ में कितने विघ्न पड़े हैं, लेकिन बाबा हमेशा शान्त रहता था। मुझे बाबा समान आवाज़ से परे रहने की, अन्दर से शान्त रहने की शक्ति धारण करनी है, यह शक्ति ही बुद्धि को ठीक करती है। शान्ति से विघ्न समाप्त हो जाते हैं, जो विघ्न डालने वाले हैं वो अपने आप किनारा कर लेते हैं। आवाज़ में आये तो विघ्न पड़ेगा। विघ्नों को खत्म करने के लिए शान्ति का, योग का बल चाहिए। हमारी स्थिति को ऊंचा बनने में अनेक तरह के विघ्न आते हैं। उसके लिए योगबल चाहिए। जहाँ सेवा अर्थ निमित्त हैं वहाँ विघ्न आते हैं, वहाँ और योगबल चाहिए।
कभी चिन्ता या व्यर्थ चिन्तन में भाग्य को गँवाओं मत। भाग्य विधाता, वरदाता को अपना साथी बनाके रखो। मेरा भाग्य कोई छीन नहीं सकता।