जब हम स्वयं को भीतर से मैनेज करेंगे, स्वयं को सशक्त करेंगे तो हर परिस्थिति में, हर बदलाव में, हर प्रकार के उतार-चढ़ाव में व्यक्ति बहुत सहजता से चल सकेगा और आगे बढ़ सकेगा।
वर्तमान समय को अगर देखा जाये तो शायद मैं यही कहूँगी कि आवश्यकता है स्वयं को मैनेज करने की। मनुष्य बाहर में बहुत कुछ मैनेज करना चाहता है लेकिन स्वयं को छोडक़र हालातों को मैनेज करने का प्रयत्न करता है। चीज़,वस्तुओं को मैनेज करने का प्रयत्न करता है। परिस्थितियों में अपने आप को मैनेज करने का प्रयत्न करता है। पैसों को मैनेज करने का प्रयत्न करता है। परन्तु स्वयं को भूल जाता है। इसीलिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा एक बहुत सुन्दर कोर्स डेवलप हुआ है कि अब फोकस को चेंज करो। बाहर के फोकस को भीतर ले आओ। जब हम स्वयं को भीतर से मैनेज करेंगे, स्वयं को सशक्त करेंगे तो हर परिस्थिति में, हर बदलाव में, हर प्रकार के उतार-चढ़ाव में व्यक्ति बहुत सहजता से चल सकेगा और आगे बढ़ सकेगा। क्योंकि आज जब बाहर की चीज़ों को मैनेज करने में स्वयं को भूल जाता है तो कभी-कभी भीतर से वो खुद ही हिल जाता है। इसीलिए इतना तनाव अन्दर में पैदा हो जाता है। और उस तनाव के कारण समझ नहीं पाता है कि कहाँ से वो अपने आपको ठीक करे। कहाँ से वो अपने आपको मैनेज करे।
इसीलिए जब भीतर एक स्थिरता नहीं है, भीतर अस्थिरता है, मन के अन्दर इतने निगेटिव विचार चल रहे हैं तो ऐसे समय में कभी-कभी वो डिप्रेशन के शिकार भी बन जाते हैं। जो आज दुनिया में बहुत कॉमन है। इसलिए कहा कि ये समय की पुकार है। अब हम बाहर की चीज़ों को मैनेज करने से पहले स्वयं को स्थित करें, स्थित प्रज्ञ करें। जैसे भगवान ने गीता में कहा दूसरे अध्याय में कि हे अर्जुन! तू भीतर से अपने आपको सशक्त कर, स्थिरता में लाओ। जब भीतर से शांत होगा, स्थिर होगा, सशक्त होगा, तनाव मुक्त होगा तो बाहर की चीज़ों को हैंडल करना आसान होगा। क्योंकि ये तो हम सभी जानते हैं, मानते हैं कि आने वाला समय जो है कैसा होगा? समस्यायें बढ़ेंगी या कम होंगी? बढ़ेंगी। परिस्थितियां बढ़ेंगी या कम होंगी? बढ़ेंगी। तनाव के कारण बढ़ेंगे या कम होंगे? बढ़ेंगे। अगर सबकुछ बढऩा है तो उस समय मुझे भीतर से अपने आप को कितना स्ट्रॉन्ग बनाना होगा। तो हर परिस्थिति को पार करना आसान हो जाये। इसलिए ये फोकस को चेंज करने की ज़रूरत है, बाहर से भीतर की ओर। क्योंकि वर्तमान समय मनुष्य जीवन कैसा है? वर्तमान समय मनुष्य जीवन जो है वो एक समुद्री यात्रा जैसा है। जिस तरह क्रिस्टोफर कोलोम्बस ने जब समुद्री यात्रा पहली बार की तो उसे पता नहीं था कि समुद्री यात्रा कैसी होती है। उसके पास कोई नक्शे नहीं थे, मैप्स नहीं थे। उसके पास ये नॉलेज भी नहीं थी कि समुद्र के तूफान कैसे होते हैं, और अगर उस तूफान में उसकी नांव फंस जाये तो कैसे उसमें से बाहर निकलेगा। उसको ये भी पता नहीं था कि समुद्र के भीतर जो जीव हैं, बड़ी-बड़ी व्हेल मछलियां, बड़ी-बड़ी शार्क मछलियां उससे कैसे निपटना होगा, अगर उसका अटैक हुआ तो।
उसको ये भी पता नहीं था कि समुद्र के भीतर चलने वाले करंट कितने पॉवरफुल होते हैं। एक नदी का करंट कितना पॉवरफुल होता है। एक नहर का करंट कितना पॉवरफुल होता है तो समुद्र के करंट कैसे होंगे? ये भी उसको ज्ञान नहीं था। लेकिन एक ही चीज़ उसके पास थी, वो था एक कंपास। जो उसको दिशा बताता रहा कि किस दिशा में वो आगे बढ़ रहा है। उस कंपास के सहारे वो कुछ हद तक सफल हो गया।