हम निमित्त बनने वाले बच्चो का कभी मूड ऑफ नहीं होना चाहिए। अगर मूड ऑफ करके किसी को मुरली सुनाते, गद्दी पर बैठते तो बहुत बड़ा पाप चढ़ता है। अपने बड़े से कभी भी न उम्मीद नहीं बनना है। सदा स्वमान में रहना है। ऐसे कभी नहीं सोचो यह तो मेरे पुराने संस्कार हैं। यह सोचना भी उसकी पालना करना है। पुराना संस्कार झूठा भोजन है। फिर क्या उस झूठे भोजन का भोग बाबा के सामने रखेंगे। मेरा तो दिव्य संस्कार हो, ईश्वरीय संस्कार हो। बहुत समय से पाले हुए संस्कार हैं उन सब संस्कारों को जीरो देने का दृढ़ संकल्प करो। रियलाइज़ कर उन्हें खत्म करो। व्यर्थ संकल्प तभी खत्म होंगे जब व्यर्थ संकल्प खत्म होंगे। हमने नई गोद ली, हमारा नया जन्म है। हम ब्रह्माकुमार हैं तो यह परिवर्तन करो।
कोई भी किसी में पुरानी आदत हो, प्लीज़ उसे समाप्त करो। बाबा की लगन, बाबा की मस्ती उसी धुन में रहो। अपने को दुआओं के आधार पर चलाओ। बाबा की दुआयें लेते चलो। मुझे हर आत्मा से दुआ ज़रूर मिलनी चाहिए। दुआयें हमारा प्यार हैं, प्यार ही हमारी दुआयें हैं। जहाँ सर्व का मेरे से, मेरा सर्व से प्यार है वहाँ मेरे बाबा की दुआयें हैं। इससे ही मुझ आत्मा की उन्नति है। यह हमारा अन्तिम जन्म, अन्तिम घड़ी है, किसी की हमारे ऊपर दुआ नहीं है तो उससे किसी की तरह दुआयें ज़रूर लेना है।
हम बच्चे जो बाबा के पास स्वाहा हुए हैं उनमें अनुमान, मूड ऑफ, परचिन्तन, ईष्र्या, द्वेष आदि की रस्सियां नहीं होनी चाहिए। इन रस्सियों को भी इस यज्ञ में स्वाहा करो। यही सच्चा मंगल मिलन है।
जहाँ नियम है वहाँ संयम है। जहाँ कायदा है वहाँ फायदा है। ईश्वरीय मर्यादा ही हमारा स्वधर्म है। सबसे प्रेम करो लेकिन प्यार मत दो, बाबा से सम्बन्ध जुटाओ स्वयं से नहीं। हल्का व्यवहार मत करो। गम्भीर रहो। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय का नियम है, दूर बाज, खुश बाज रहो… हँसी से बात न करो। काम से काम बस।