हम स्वयं ही हैं स्वयं के सी.ए. और ऑडिटर

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मार्च एंडिंग : जीवन के हिसाब की बैलेंस-शीट भी तैयार करना चाहिए…

मार्च मास यानी कि हिसाब-किताब का मास। छोटे-बड़े, पढ़े-अनपढ़, व्यापारी-उद्यमी और सरकार सभी तेज़ी और मंदी, अभाव और महंगाई के साथ मार्च को जोड़ देते हैं। व्यापारी और बड़ी लिमिटेड कंपनियां बाज़ार में आम आदमी के दिमाग में असर पहुंचे ऐसा वातावरण क्रियेट करते हैं। मार्च मास के बहाने निकालकर लेनदार की बोलती बंद कर देते हैं। और लेनदार भी समझ जाते हैं कि ये मास अप टू डेट करने का मास है, इसलिए वे भी उसी अनुसार अपना माइंड बना लेते हैं। सचमुच में क्रमार्च एंडिंगञ्ज शब्द उच्चारने में भी गौरव अनुभव करते हैं। उसमें भी खास नौकरी करने वाले।
सवाल यह खड़ा होता है कि मार्च मास में जब साल भर के नफा और नुकसान का निष्कर्ष निकलता हो तो परमात्मा ने जो ये अमूल्य जीवन दिया है, उसका हिसाब-किताब क्यों नहीं…..!!! हम ही अपने आप के सी.ए. और अपने आप के ऑडिटर। लेकिन दु:ख की बात यह है कि हम में से ज्य़ादातर लोग इतने धार्मिक होने के बावजूद मार्च एंडिंग की तरह अपने जीवन का हिसाब करते ही नहीं। कई लोग तो हिसाब चुक्तू किये बिना ही या तो बड़ी-बड़ी डिग्री धारी होने के बावजूद भी हिसाब किये बिना ही बैक टू पवेलियन हो जाते हैं। जैसे भगवान, अपने मालिक का डर जैसा कुछ है ही नहीं। सिर्फ बोलने खातिर ही परमात्मा का डर रखते हैं। आचार में नहीं। जि़न्दगी के किताब में प्लस-माइनस करना ही भूल जाते हैं।
दु:ख की बात यह है कि अपने जीवन का हिसाब कब करना है, ये भी तो हम निश्चित नहीं करते। अपना एंड कब होगा, इसकी हमें खबर नहीं है, फिर भी मार्च एंडिंग की तरह हम अपना हिसाब ही नहीं करते। जैसे किसी का देना बाकी है, वो पेंडिंग पड़ा है, तो वो पेंडिंग ही रह जाता है। कितने भी प्रयास करने के बावजूद भी उसका हिसाब चुक्तू नहीं कर पाये। जि़न्दगी में भी ऐसा ही है। हमने कितनों को दु:ख दिया, कितनों को अपने चंगुल में फंसाया, कितनों के प्रति नफरत, तो कितनों के प्रति ईष्र्या, इन सबका हिसाब हमने देखा ही नहीं। नटशेल में देखें तो हम अच्छी तरह से जीवन जिये ही नहीं। दिखावे के लिए भगवान को हाजि़र-नाजि़र रखते हुए भ्रष्टाचार, दुराचार से इक_ी की हुई सम्पत्ति की आड़ में, दानेश्वर बन कितना दिखावा किया, कामचोरी और करचोरी करके देश को कितना नुकसान पहुंचाया, कितनी मौज-मस्ती की, इन सबका कोई हिसाब है हमारे पास! जवाब में तो ना ही आयेगा! ये परमात्मा द्वारा दिया हुआ अमूल्य जीवन, जो सबको सुख देने, सबको सहयोग करने के लिए था, जो हमने बिना हिसाब रखे ही व्यतीत कर दिया। तब भला कर्म तो अपना परचम दिखायेगा ही ना! और क्या ईश्वर भी हमें माफ करेगा!
अगर हम अपने आप से रूबरू हों तो अंदर अपना विवेक आवाज़ देता है कि हमें रोज़ का हिसाब, आचार-विचार का हिसाब रोज़ रखना चाहिए। जिससे हमें पता चलता कि हमारी जि़न्दगी किस डायरेक्शन में चल रही है। मार्च महीने की तरह जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं होता। हमें तो अपना हिसाब हर रोज़ करते रहना चाहिए। हम जीते जी स्वयं ही अपने जीवन का पोस्टमार्टम करेंगे तभी ही सच्चा हिसाब मिल सकेगा। शर्त ये है कि हिसाब के समय ईमानदारी और प्रामाणिकता का पैरामीटर हमारे खून की तरह ही हममें दौड़ते रहना चाहिए। सुबह क्रथैंक यूञ्ज और शाम को क्रसॉरीञ्ज, ये दो शब्द हमारे हिसाब-किताब में होने चाहिए, जिससे अपने आप को सुधार सकें और क्या एडिशन करना है ये भी जान सकें।
अपने जीवन के हिसाब का ऑडिटर स्वयं से बड़ा दूसरा कोई हो नहीं सकता। स्वयं के साथ धोखा स्वयं को ही महंगा पड़ेगा। न रो सकेंगे, न हँस सकेंगे। सिर्फ अपने आप को कोसते रहना ही बाकी रह जायेगा। होता क्या है, हमारे जीवन में पैसा, प्रतिष्ठा, पद, अहम् और मेरापन के साथ प्रभु उपहार में मिले इस जीवन का अस्तित्व ही खतरे से खाली नहीं होता! अब हम सबको जीवन की सच्ची कमाई करने के लिए मार्च एंडिंग जैसा कुछ समय निश्चित करना चाहिए, जिससे हम अपने जीवन का महोत्सव मना सकें।

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