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ऐसे थे पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा … -राजयोगी बी. के. दिलीप भाई, आबू रोड,राजस्थान

18 जनवरी पर पिताश्री  प्रजापिता ब्रह्मा की पर पुण्यतिथि विशेष लेख

अकेला चला,कारवां बनता चला,

एक छोटा सा बीज  से वटवृक्ष  बन गया ।।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं हैदराबाद सिंध में 15  दिसंबर 1876 को संपन्न सिंधी कृपलानी परिवार में एक शिक्षक के घर जन्मे दादा लेखराज जो बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी,  ईमानदार, और विशेष गुणों से संपन्न थे। । कालांतर में जब 60 वर्ष की आयु में  उन्हें वैराग्य आया और बन गये – प्रजापिता ब्रह्मा।

इस दास्ताँ की एक किताब है – जीवन को पलटाने वाली अद्धभुत जीवन कहानी। दो भागों में किताब बनी है। जब कोई इस किताब का एक पन्ना पढ़ता है तो दूसरा पढ़ने बगैर नहीं रहता। यह किताब केवल किताब नहीं परन्तु यह किताब चल चित्र के मुआफ़िक चलती है और अगला पेज पढ़ते-पढ़ते दूसरा भाग तक पढ़ने को मजबूर कर देता हैं।

यह अलौकिक,विशेष कहानी दूसरा भाग तक सिमित न रहकर जीवन को परिवर्तन करने के लिए बाध्य कर देता है।  क्या हैं जो इस वैरग्या के, जनकल्याण के लिए प्रेरित करता है ?  वह यह है कि – प्रजापिता ब्रह्मा  बाबा की प्रेरक, असंभव को संभव , पुजारी से पूज्य, नकारात्मक को सकारात्मक, लौकिक को अलौकिक,  शुन्य से अनंत, रंक से राव पदमपति,  अज्ञानी से ज्ञानी और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए यह जीवन कहानी शिक्षित और दीक्षित करती हैं। । यह कहानी है- नर से श्री नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी बनने की जीवन कहानी हैं।

शब्दों में अंकित करना बहुत कठिन है लेकिन एक छोटासा प्रयास जो मेरी लेखनी को भी पवित्रता ,निच्छल प्रेम और विश्व कल्याण के लिए आभूषित करेगी इसी कामना के साथ हम ले चलते है आप सभी पाठकों को प्रजापिता ब्रह्मा की अलौकिक कथा को कथन तक नहीं परन्तु आत्मा के भीतर तक उतारते है।

विश्व परिवर्तन के लिए वैराग्य  – जब हुई दादा की 60 वर्ष की आयु तब 1936 में उन्हे दुनिया का महाविनाश का साक्षात्कार ने झंजोर कर रख दिया था। वाराणसी में दादा लेखराज को विश्व विनाश का दृश्य दिखा तो वे सांसारिक सुखों और अपने व्यापार से पूरी तरह विमुख हो गए।  कलकत्ता में हिरे जवाहरात का व्यापर को कौड़ी के भाव में पार्टनर से सौदा कर लिया और घर पर तार कर दी – अल्फ़ को अल्लाह मिला, बे को मिली झूठी बादशाही…..। उन्हें हिरे पत्थर दिखने लगे और लोगों के भृकुटि में आत्मा हिरा दिखने लगा। यह परिवर्तन आत्मा और परमात्मा की गहराई में ले जाने लगा।

नारी से लक्ष्मी और नर नारायण बनने का पाठ उन्होंने अपने ही घर में सत्संग शुरू कर दिया और कुछ समय में ही उन्हें परमात्मा शिव का साक्षात्कार हुआ। जब अपनी कोठी में ध्यान अवस्था में बैठे तब उनके तन में परमात्मा शिव प्रविष्ट हुए और उनके कमल मुख से कहा – निजानंद स्वरूपं शिवोहम शिवोहम , ज्ञान स्वरूपं शिवोहम शिवोहम  प्रकाश स्वरूपं शिवोहम शिवोहम …. । इसी तरह उन्हें साक्षात्कार हुआ पहले महाविनाश फिर विष्णु चतृर्भुज का, देवी देवता कैसे निचे धरती पर उतर रहे है और स्वर्ग बन रहा है। फिर परमात्मा शिव का आदेश मिला- ऐसी स्वर्णिम दुनियां बनानी है। वैराग्य के साथ एक बड़ी जिम्मेवारी परमात्मा शिव ने उन्हें दी।  इसलिए ग्रंथों में लिखा है – ब्रह्मा ने दैवी दुनियां बनाई।

नाम हुआ उनका प्रजापिता ब्रह्मा- शिव परमात्मा ने उन्हें जिम्मेदारी देकर प्रजापिता ब्रह्मा बनाया  और फिर हैदराबाद सिंध में मच गया साक्षात्कार का दौर। जो कोई बहन-भाई दादा को देखते थे तब उन्हें श्री कृष्ण और श्री राधा का,  कभी देवी देवता रास कर रहे इस तरह के साक्षात्कार होने लगे। यह सिलसिला   रुका नहीं, विदेशों के अख़बार में इसकी चर्चा हो गई। देखते ही देखते 350 मातायें बहनें और कुछ भाई इस कार्य में  तपस्या के लिए जुड़ गए।

यह कारवां 14  साल के तप के बाद निकल पड़े विश्व को इस ज्ञान योग का प्रसाद बांटने। आज ब्रह्मा कुमारीज के 5500 से भी अधिक ब्रांचेज दुनियाँ के हर कोने में है। चला था यह कारवां एक से और अब लाखों के तादाद में लोग इस विश्व कल्याण के पथ पर चल रहे है।

इस तरह वर्ष 1937 में दादा अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा का संकल्प माताओं-बहनों द्वारा संचालित – ओम मंडली से शुरू होकर प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बन गया और यही संकल्प नारी को शक्ति बनाने की सोच ले रही साकार आकार।  मुख्यालय – माउंट आबू राजस्थान में हैं। 

18  जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में अव्यक्त हुए थे ब्रह्मा बाबा। उनके स्मृति दिवस पर उनके पद चिन्हों पर चलना ही सच्ची सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।  मैं अपने हृदय से कोटि कोटि श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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