परदर्शन कहते हैं- दूसरों को देखना, उनकी बुराइयां देखना, उनमें क्या-क्या कमज़ोरियां हैं, कहाँ-कहाँ ढीले हैं, ये देखना, परदर्शन और परचिंतन। दूसरों के बारे में बहुत सोचना। व्यर्थ चिंतन जिसे कहते हैं। कम्पलेंट के साथ ये दोनों भी चलते हैं।
जैसा कि आपने पिछले अंक ओम-19 में पढ़ा कि दूसरों को देख उनकी कमज़ोरियों को फॉलो नहीं करना, उनकी कमज़ोरियों को देखकर वो कमज़ोरी मेरे अन्दर तो नहीं है ये चेक कर लेना और उसको चेंज कर देना। ये आवश्यक होता है। अब आगे पढ़ेंगे…
तीसरी बात होती है प्रश्न उठना। ये बाबा के महावाक्य हैं। इसपर पूरी मुरली चली थी। प्रश्न बहुत उठाते हैं दूसरों के प्रति, अपने प्रति नहीं कि मेरे मन में बहुत ऊंचा लक्ष्य था, मैं ये क्या कर रहा हूँ। दूसरों के लिए क्वेश्चन करेंगे कि यज्ञ में ये ऐसा क्यों कर रहे हैं? यज्ञ में फलाना भाई इतना पुराना है वो ऐसा क्यों कर रहा है, फलानी टीचर भी ऐसे बोलती है मुझे तो। क्यों, क्या। क्या होगा ये क्यों, क्या बाबा के शब्दों में ये क्वेश्चन मार्क टेढ़ा है ना, फुल स्टॉप तो सीधा है। क्वेश्चन मार्क टेढ़ा है तो स्थिति को भी टेढ़ा कर देता है। सारी स्थिति लॉप होने लगती है। जितने क्वेश्चन मन में उठेंगे भगवान के शब्द हैं कि प्रश्न जितने मन में उठेंगे प्रसन्नता उतनी ही खत्म होती जायेगी। जहाँ प्रश्न बहुत हैं वहाँ प्रसन्नता नहीं है। प्रश्न माना क्वेश्चन, प्रसन्न माना हैप्पीनेस, चीयरफुलनेस। तो ज्ञान के क्वेश्चन उठाना वो एक अलग बात है, उससे तो हमारा ज्ञान बढ़ेगा। लेकिन व्यवस्था में और दूसरों के पुरूषार्थ को देखकर इस संसार में जो कुछ हो रहा है उसको देखकर कि ये क्यों हो रहा है? बाबा ऐसा क्यों नहीं करता है। ये सब बातें मन को भटका देती हैं। अगली बात बाबा ने कही, और ये बिल्कुल सत्य नज़र आती है। करेक्शन करना। दूसरों को करेक्ट ज्य़ादा करने लगते हैं, अपने को करेक्ट करना है ये भूल जाते हैं। दूसरों को सम्पूर्ण बनता हुआ देखना चाहते हैं। मैं भले ही पीछे रह जाऊं। गलत मानसिकता हो गई है। ये भूल गये हैं कि कलियुग के अंत में सभी आत्माएं नीचे उतर आई हैं, कोई भी सम्पूर्ण नहीं है। किसी में कोई कमी है, किसी में कोई कमी। करेक्शन तो हमें खुद को करना है। दूसरों के पुरूषार्थ को तो हमें साक्षी होकर देखना है। और अगर हमारा उनसे प्यार है, तो उन्हें वायब्रेशन देकर या शब्दों से उमंग-उत्साह दिलाना है, मोटिवेट करना है। करेक्शन देते रहने से अपना कनेक्शन शिव बाबा से टूट जाता है।
बहुत सुन्दर शब्द भगवान ने बोले कि अगर तुम करेक्शन के चक्कर में पड़ गये, ये चक्रव्यूह है तो दूसरों को ही देखते रहोगे। और फिर शिव बाबा से कनेक्शन कट ऑफ हो जायेगा और तुम्हारी स्थिति दिनोंदिन डाउन होती जायेगी। अगली बात बताई कम्पलेंट्स करना, दूसरों पर ब्लेम लगाना। इसमें भी ये दिखाई देता है ऐसी आत्माओं को। गुह्य ज्ञान नहीं है। इस विश्व ड्रामा की भी सम्पूर्ण नॉलेज नहीं है। वे दूसरों के बारे में ज्य़ादा सोचते हैं, परचिंतन ज्य़ादा करते हैं। परदर्शन कहते हैं- दूसरों को देखना, उनकी बुराइयां देखना, उनमें क्या-क्या कमज़ोरियां हैं, कहाँ-कहाँ ढीले हैं, ये देखना, परदर्शन और परचिंतन। दूसरों के बारे में बहुत सोचना। व्यर्थ चिंतन जिसे कहते हैं। कम्पलेंट के साथ ये दोनों भी चलते हैं। इसलिए खुशी का पारा डाउन होता रहता है। स्थिति बिगड़ती जाती है। मन निराश हो जाता है। सभी ऐसे ही हैं। कोई तो अच्छा पुरूषार्थी मुझे नहीं मिलता।
कोई कह रहा था कि कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो ज्ञान मार्ग पर चलते सम्पूर्ण सत्य हो। हमारी एक बहन ने उसे बहुत अच्छा उत्तर दिया कि नहीं मिला ना, बहुतों को खोज है इसकी, तुम बन जाओ। तो बहुतों की खोज समाप्त हो जायेगी। तो उसे लज्जा आ गई कि शायद मैं भी नहीं हूँ। उसने तो सोचा था कि दूसरे ही नहीं हैं। अगर हमें निरन्तर खुशी में, उमंग-उत्साह में, प्राप्तियों की अनुभूतियों में मगन रहना है तो एक महान लक्ष्य को अपने सामने रखकर चलें। मुझे ये प्राप्त करना है, मुझे और कुछ नहीं देखना है। जैसे होशियार स्टूडेंट कभी कमज़ोर विद्यार्थियों को देखकर अपने को कमज़ोर नहीं करते। उन्हें तो लक्ष्य रहता है कि मुझे तो 95 प्रतिशत माक्र्स लाने हैं। बस वही सामने है। और कौन क्या कर रहा है उसको वो नहीं देखते। हम भी गॉडली स्टूडेंट हैं, पास विद ऑनर होना है, महान स्टेटस को प्राप्त करना है, इसलिए उस लक्ष्य को सामने रखते हुए और कुछ नहीं देखते हुए उमंग-उत्साह से निरंतर अपने लक्ष्य की ओर चलेंगे। तब ये जीवन सफल होगा।



