पतरातू, झारखण्ड: ब्रह्माकुमारीज राजयोग मेडिटेशन केंद्र,बी4, रोड़ नंबर-08, पीटीपीएस, सेवाकेंद्र में ब्रह्माकुमारीज संस्था के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा का 56 वां पुण्य स्मृति दिवस पर कटिया पंचायत के मुखिया किशोर कुमार महतो ने कहा कि ब्रह्मा कुमारी संस्था से जुड़े सभी ब्रह्माकुमार- ब्रह्माकुमारी भाई बहनें, संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के पद चिन्हों पर चल कर समाज की सेवा में समर्पित है। ब्रह्मा बाबा का जीवन मानवता के लिए प्रेरणा है,आज यह संस्था विश्व के 140 देशों सनातन धर्म का प्रचार प्रसार कर राजयोग मेडिटेशन सीखा रही है। आगे उन्होंने कहा कि मुझे संस्था से जुड़ने के बाद जानकारी हुआ कि ज्योतिर्लिंग शिव बाबा,ब्रह्मा बाबा के मुख कमल से राजयोग की पढ़ाई पढ़ा रहे हैं और संस्कारवान बना रहे हैं।
पतरातू सेवाकेंद्र की संचालिका ब्रह्माकुमारी रोशनी ने कही कि ब्रह्मा बाबा का वास्तविक नाम लेखराज कृपालिनी था और जब परमात्मा शिव का अवतरण हुआ तो प्रजापिता ब्रह्मा बाबा कहलाये ।भगवान को पाने के लिए ब्रह्मा बाबा ने अपने जीवन में 12 गुरू किये थे और गुरूओ का सत्संग बहुत ही ध्यान मग्न हो कर सुना करते थे , ब्रह्मा बाबा सत्संग के बीच कभी नहीं उठते थे परंतु उस दिन वे उठकर अपने कमरे में चले गये। उनके पीछे-पीछे उनकी बहू ब्रिजइंद्रा गई, जिन्होंने कमरे के बाहर से एक अनोखा नज़ारा देखा, जो कभी नहीं देखा था। ब्रह्मा बाबा प्रभु प्रेम में तल्लीन थे, उनकी आँखों तथा मुख-मंडल पर* *अलौकिक तेज था। ब्रह्मा बाबा का कमरा लाल प्रकाश से तेजोमय हो गया था और बहुत ही अलौकिक सुंदर, सुखद आभास हो रहा था। उतने में ही ब्रह्मा बाबा के मुखारविंद से ये शब्द निकलें-
निजानंद स्वरूपम् शिवोहम् शिवोहम् ज्ञान स्वरूपम् शिवोहम् शिवोहम् प्रकाश स्वरूपम् शिवोहम् शिवोहम्।
आगे उन्होंने बताया कि कुछ समय ब्रह्मा बाबा की आँखें बंद रहीं। यह दृश्य देखते ही देखते उनकी बहू ब्रिजइंद्रा जी भी अशरीरी हो गई थी। ब्रह्मा बाबा ने आँखें खोलते ही इस ‘दिव्य अनुभव’ का ज़िक्र अपनी बहू से किया। इसके उपरान्त परमात्मा शिव ने ब्रह्मा बाबा को आत्मा का साक्षात्कार कराया और स्वयं का परिचय दिया। परमात्मा ने विश्व के परिवर्तन हेतु ब्रह्मा बाबा को अपना साकार माध्यम बनाया और उन्हें ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया। बाबा बम्बई में अपने सारे कारोबार को समेटकर हैदराबाद लौट आए। अब यहां नित्य रूप से शिव बाबा ब्रह्मा बाबा के मुखारविंद से नए ज्ञान का उच्चारण करने लगे। धीरे-धीरे सिंध में यह बात तेजी से फैल गई और महिलाएं अधिक संख्या में आने लगीं। बाबा के घर में नित्य रूप से सत्संग चलने लगा जिसे उस समय ‘ओम मंडली’ कहा जाता था। बाबा ने अपनी सारी चल-अचल सम्पत्ति महिलाओं की एक कमिटी बनाकर संस्था के नाम पर कर दी।परमात्मा के इस सत्संग की एक बात बहुत ही निराली थी, कि जो भी इस सत्संग में आता था, उसे सहज ही श्रीकृष्ण, विष्णु, स्वर्ग इत्यादि का साक्षात्कार हो जाता था। बहुतों को घर बैठे भी ब्रह्मा बाबा व श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हो रहा था। इस कारण अनेकानेक ब्रह्मावत्स परमात्मा की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया। सन् 1936 से सन् 1950, यानी 14 साल तक बाबा के साथ सिंध तथा कराची में लगभग 350 छोटे-बड़े महिलाओं तथा भाइयों ने ज्ञान व योग की गहन तपस्या की।
सभी ब्रह्मा वत्स अंत में अपनी पुष्प अर्पित कर उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में बीके रामदेव,निशा देवी ,स्वीटी देवी, गीता देवी, लक्ष्मी देवी ,सावित्री देवी,गुन कुमारी,छोटी कुमारी,रवि कुमार, सुरेन्द्र कुमार आदि लोग उपस्थित थे।