मुख पृष्ठब्र. कु. गंगाधरस्वस्थ तन-मन में 16 कला प्रकट होती

स्वस्थ तन-मन में 16 कला प्रकट होती

क्या आप स्वस्थ हैं! सम्पूर्ण स्वास्थ्य के तीन आधार हैं – शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। ये तीनों में से आप कितने स्वस्थ हैं? इस कसौटी पर ही आपके जीवन का पूर्ण आधार है। इन तीनों में आपके जीवन में योग्य संतुलन बिठा सके हो, ये आपके व्यक्त्वि के पैरामीटर हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में तो हम जानते हैं। जब हम मन के स्वास्थ्य के बारे में बात करते हैं तब शरीर मंदिर है तो मन उसमें विराजित सुन्दर मूर्ति है। अगर शरीर रूपी मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो तो मन रूपी मंदिर का विचार कौन करेगा? उसी तरह अगर शरीर रूपी मंदिर का सर्वांग सम्पूर्ण हो, लेकिन उसमें विराजित मन की प्रतिमा अत्यंत खण्डित और जडज़ड़ीभूत हो तो मानव की क्या दशा होगी? मन दौड़ता है तो मानव दौड़ता है। शरीर स्वस्थ हो लेकिन मन कमज़ोर हो तो मानव हमेशा बेचैन रहता है।
एक अर्थ में कहें तो शरीर ही मन का सितार है और मन उसका संगीत है। बहुत व्यक्तियों के मन में अगाध शक्तियां होती हैं लेकिन व्यक्ति शरीर से निर्बल है तो उसका जीवन निरंतर व्याधिग्रस्त रहता है। परिणामस्वरूप उसके मन की शक्ति 16 कला प्रगट नहीं होती है।
किन्तु इन सबमें महत्वपूर्ण बात यह है कि निर्बल शरीर में उत्साह नहीं रहता और उत्साह बिना जीवन में प्रगति होना मुश्किल है। मन के सम्बन्ध में समझने की बात करें तो मनुष्य के चित्त में अपरमपार इच्छायें निरन्तर दौड़ती रहती हैं। कई बार तो इन इच्छाओं के पास सत्य देखने की आंख नहीं होती तो कई बार दूर-दूर उडऩे की इच्छा करने वाले के पास पंख नहीं होते।
मतलब कि इच्छा मानव के जीवन की निर्णायक आधार है। अगर आप अपनी इच्छा को समेझेंगे नहीं और सिर्फ इच्छा के आदेश अनुरूप यहां-वहां उड़ते रहेंगे तो जीवन में कभी निर्धारित स्थान पर पहुंच नहीं सकेंगे। कहते हैं ना इच्छा ही आगे की सीढ़ी का स्टेप है। क्रदृष्टिपूतं न्यसेत् पादंञ्ज यानी दृष्टि से देखकर पग रखना। इसी तरह प्रत्येक इच्छा कहां से कहां दौड़ाती है लेकिन धरती पर पैर रखकर आगे न बढ़ें तो आपकी इच्छा का कोई वास्तविक आधार नहीं होगा। तो वो इच्छा जीवन को निराधारता में पहुंचा देगी, और निष्फलता में डूबा देगी। अगर इच्छा का पैर धरती पर नहीं होगा, जीवन में वास्तविक रीति से कितना पॉसिबल है उसका विचार नहीं किया होगा तो वो इच्छाओं में उड़ते रहेंगे, निरर्थक और निष्प्राण दौड़ते रहेंगे इसलिए इच्छा करो लेकिन पग मजबूत भूमि पर रखकर। जैसे- आप भारत से अमेरिका विमान यात्रा करें तो उड्डयन का प्रारम्भ भारत से ही करें, दुबई से नहीं। कहां से यात्रा का मंगल प्रारम्भ करना है उसका विचार करें। उसके लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित करें, अनुभवी की सलाह लें। आपकी इच्छा की यात्रा इस धरती पर चलने वाली हो, गगनगामी नहीं। लेकिन ऐसा ज़रूर हो कि यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़े वैसे-वैसे समयान्तर गगनगामी भी बनी रहे।
इच्छा को खुले रूप से करने देंगे तो मानव कहां भी पहुंच नहीं सकेगा इसलिए मन भी आपका, संकल्प भी आपका और उस स्वप्न का शिल्पी भी दूसरा कोई नहीं लेकिन आप ही। एक अर्थ में कहें तो आपके स्वप्नों के आप ही अकेले शिल्पी हो। पत्थर भी आप देंगेे, उसक्रो तराशेंगे भी आप और शिल्प भी आप ही सर्जेंगे। यानी कि आपकी जि़ंदगी के शिल्पी आप ही बनते हैं, दूसरा कोई आपकी इच्छा पर कभी भी रंग लाता नहीं।
इसका अर्थ ये है कि पहले आप मन को खोलकर उसकी बात सुनें। मन को बड़ा मैदान देकर बोलने दें, आपके जीवन के प्रश्नों की बात उसे करने दें। मन बोले और आप सुनें। मन फरियाद करे और आप उसका विचार करें। मन कहेगा कि अच्छे मूल्यवान वस्त्र पहनें और आभूषणों का खूब शौक है, लेकिन ये पॉसीबल है नहीं। मन कहेगा परिवार में शांति है लेकिन सास के साथ सदा अनबन बनी रहती है। कहने का भाव ये है कि मन की बात सुनें, उनके प्रश्न को समझें। क्रमनाडेञ्ज के भजन की पंक्ति याद करें-क्रक्रमन की आँखें खोल बाबाञ्जञ्ज। सिर्फगगनगामी इच्छा भर से मंजि़ल प्राप्त नहीं होती। इच्छा करें लेकिन इच्छा का पैर भूमि पर हो, धरा पर हो।

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