परमात्मा रोज़ हमको इसपर ज्ञान सिखाते हैं। रोज़ हमको कुछ ऐसे प्वांइट्स देते हैं कि बच्चों आप सभी कोई भी कार्य करो और उसको भूलो। नहीं तो कार्य के प्रति हमारा लगाव और उस परिणाम के साथ दु:ख और सुख शुरू हो जायेगा। और इसी कारण से हम सभी आज किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं हैं। योग कराया, ज्ञान सुनाया, किसी से चर्चा की तो हर चीज़ का रिज़ल्ट और उस रिज़ल्ट के सही न होने पर दु:खी। तो परमात्मा की इन सारी बातों को सुनने के बाद लगता है कि आज मनुष्य अपने ही कार्य के द्वारा जो कर रहा है वो भी एन्जॉय नहीं कर पा रहा है क्योंकि दूसरों को कुछ न कुछ उसके लिए दिखाना है। और वही चीज़ है जो दु:ख का कारण है।
जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई और उसको स्वीकार न कर पाने की ताकत, हम सभी मनुष्य आत्माओं के अन्दर भरा हुआ है। जीवन की सच्चाई ये है कि हम जो कुछ भी कार्य करते हैं उस कार्य के प्रति हम सबका लगाव और कार्य करने के बाद उसके परिणाम या रिज़ल्ट से लगाव, अगर अच्छा हुआ तो मूढ अच्छा और अगर नहीं हुआ तो मन थोड़ा-सा विचलित होता है। ये हम सभी बहुत अच्छे से समझते हैं। ये जीवन की सच्चाई है। कई बार कहना और करना दोनों समान हो भी सकता है, कई बार नहीं भी हो सकता। लेकिन सुख किसमें है?
इस दुनिया में आप देखो जब हम कोई कार्य करते हैं, कार्य करने जाते हैं तो उस समय हमारे मन का दृश्य कैसा होता है। दृश्य को देखना है कि ये जो मैं कार्य कर रहा हूँ इसको देखकर सबके मन में क्या विचार चलेंगे। कौन मुझे क्या-क्या बोल सकता है, क्या-क्या कहेगा, अच्छे सेन्स में। अच्छे सेन्स की बात चल रही है, हमारे अन्दर कि वो हमारे लिए क्या बोलेगा। उसी आधार से उस कार्य को हम अंजाम देते हैं। और अगर कोई हो ही ना, कोई भी व्यक्ति न हो जो आपके किसी भी कार्य को कुछ कहे, एप्रीशिएट करे, बोले तो उस समय हमारी क्या कार्य के प्रति भावना होगी, उस क्रिया के प्रति भावना होगी। तो समझ में आता है कि हर कार्य के पीछे एक परिणाम है और परिणाम से पहले बहुत सुन्दर दृश्य हमारे सामने चल रहा है कि इसको करने के बाद क्या-क्या स्थिति बनेगी।
तो देखो जब हम कोई कार्य कर रहे हैं तो उसमें सबकुछ कैसा समाया हुआ है। कुछ भी लेने का। सबके प्रति या सबसे कुछ न कुछ लेने का भाव है। अब यहीं से हमारे उस कार्य के प्रति कहा जाता है प्रोडक्टिविटी या उसकी उत्पादकता में कमी आ जाती है। उसके परफेक्शन में कमी आ जाती है। क्योंकि जब मैं कोई कार्य करूंगा तो उस कार्य को करने के लिए जो एफर्ट लगाना था, जो मुझे प्रयास करना था वो तो बंट गया। वो तो लोगों को उस तरह से दिखाने के लिए बंट गया कि जो मैं कार्य करूंगा उसके प्रति लोग मेरे बारे में क्या-क्या सोचेंगे। बस यहीं से हमारी स्थिति थोड़ी-सी डाउन हो जाती है क्योंकि उस भाव से कार्य भी किया जाता है।
तभी तो लोग जब हमारे परिवार का कोई सदस्य हो, चाहे दोस्त हो, चाहे कोई रिश्तेदार हो उसके लिए कोई बोलता है तो हमको अच्छा लगता है। लेकिन हम, आपको ये पता चलना चाहिए कि वो जो कार्य किया है वो परफेक्ट नहीं हो सकता। क्योंकि उसमें कुछ न कुछ मिक्स्ड हो गया। पूरी तरह से वो चीज़ हमारे सामने नहीं आयेगी। और वो आपको आत्म संतुष्टि नहीं देगी। इसीलिए कोई भी कार्य करना और उसको भूलना ये हमारे दिन की दिनचर्या का सबसे बड़ा पहलू होना चाहिए। परमात्मा रोज़ हमको इसपर ज्ञान सिखाते हैं। रोज़ हमको कुछ ऐसे प्वांइट्स देते हैं कि बच्चों आप सभी कोई भी कार्य करो और उसको भूलो। नहीं तो कार्य के प्रति हमारा लगाव और उस परिणाम के साथ दु:ख और सुख शुरू हो जायेगा। और इसी कारण से हम सभी आज किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं हैं। योग कराया, ज्ञान सुनाया, किसी से चर्चा की तो हर चीज़ का रिज़ल्ट और उस रिज़ल्ट के सही न होने पर दु:खी। तो परमात्मा की इन सारी बातों को सुनने के बाद लगता है कि आज मनुष्य अपने ही कार्य के द्वारा जो कर रहा है वो भी एन्जॉय नहीं कर पा रहा है क्योंकि दूसरों को कुछ न कुछ उसके लिए दिखाना है। और वही चीज़ है जो दु:ख का कारण है।
इसीलिए कार्य को करके जब भूल जाते हैं तो उस कार्य को वो जो कार्य हमने किया है, उस कार्य को जो यूज़ करता है उसको बहुत अच्छा लगता है। जैसे उदाहरण-जैसे हमने कोई मशीन बनाई और मशीन सिर्फ मैंने बनाई, जैसे ही मैं मशीन बना रहा हूँ तो पूरा फोकस होके बना रहा हूँ और भूल जा रहा हूँ। जब वो मार्केटमें जायेगी ना और लोग उसको यूज़ करेंगे तो उसको बहुत सारी दुआएं मिलेंगी। क्योंकि उस मशीन पर पूरा फोकस था। उसके परिणाम पर फोकस नहीं था। सिर्फ मशीन की कार्यशैली पर फोकस था। इतना अच्छा उसको बना दिया कि जहाँ जायेगी कहेंगे कि किसने बनाया! क्योंकि उसमें हमने एक भाव डाल दिया कि ये सबके कार्य में आयेगी, काम में आयेगी। मुझे इसका कुछ नहीं चाहिए।
ऐसे ही मैंने जो ज्ञान सिखाया, योग सिखाया, कोई भी चीज़ इस दुनिया में दी किसी को और उसके बाद भूल गये तो वो पूरा-पूरा आपका हो गया। इसीलिए महानता की पहली अवस्था है- भूलना। और जो जिस चीज़ को जितना भूलता जाता है वो उतना महान बनता चला जाता है। तो चलिए करिए कोई कार्य और उसको भूलने का प्रयास करिए तब आपको आत्म संतुष्टि होगी और वो आपको तृप्ति देगी।