सिर्फविचार से व्यक्तित्व का निर्माण नहीं होता। बल्कि जब विचार के साथ वास्तविकता का सुमेल बनता
तब परिणाम वैसा ही होता
बहुत पुरानी बात है, एक बख्तावर नाम का व्यक्ति एक गांव में रहता था। उस समय गांव में कच्चे मकानों पर एक छप्पर की छत बनाई जाती थी। हर तीन से चार साल बाद छप्पर के सरकंडों को बदलना पड़ता था।
एक दिन वह व्यक्ति अपने मकान पर सरकंडों का छप्पर बना रहा था और लगभग आधा कार्य पूरा हो चुका था। जब एक सरकंडों का बंडल उठाकर छत पर बिछाने लगा तो अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई नुकीली चीज़ उसके हाथ पर लगी है और तुरंत उसी जगह से खून बहने लगा।
उसने बड़े ध्यान से देखा तो उसके हाथ पर नज़दीक-नज़दीक दो निशान थे, जहाँ से खून बह रहा था। वह निशान ऐसे थे जैसे किसी सांप ने काटा हो। परंतु वह सोचने लगा कि इन सरकंडों के बीच में सांप कहां से आया? यदि सांप होता तो ज़रूर नज़र आता। ऐसा सोचकर उसने अपने हाथ से खून साफ कर दिया और सरकंडों को रस्सी से कसकर बांध दिया।
इस तरह के छप्पर की छत लगभग तीन से चार वर्ष तक चलती है क्योंकि धूप, बारिश, आंधी आदि से खराब हो जाती है। अब उस व्यक्ति ने चार साल बाद छप्पर को नए सिरे से बनाने के लिए, पुराने सरकंडों को छत के ऊपर से हटाना शुरू किया और रस्सियां खोल ही रहा था कि एक सांप का कंकाल, जो करीब 5 फीट लंबा था, उसे दिखाई दिया।
उस व्यक्ति का ध्यान एकदम पिछले 4 साल की घटना की तरफ चला गया, जब उसके एक हाथ पर दो निशान देखे थे और खून बह रहा था। उसके दिमाग में एकदम शॉक लगा कि उस दिन मुझे इसी सर्प ने काट लिया था। लेकिन मैं उसे देख नहीं पाया क्योंकि वह सांप सरकंडे के बंडल में ही रस्सियों से बंध गया था और निकल नहीं पाया, यह उसी का कंकाल है।
वह व्यक्ति इस घटना से एकदम घबराकर बेहोश हो गया क्योंकि उसने सोचा कि उसे तो इसी सांप ने ही काटा था और तत्काल उसकी वहीं मृत्यु हो गई। दरअसल सांप ने तो उसे 4 वर्ष पहले काटा था, परंतु मृत्यु अब हुई, इसका कारण है कि ज़हर सांप में नहीं, हमारे विचारों में भरा है। व्यक्ति के विचार ही विष से भरे हैं।
आज इंसान सुखी है? यदि है तो कैसे? यदि दु:खी है तो क्यों दु:खी है? क्या इंसान सफल है या असफल? इन सब का जवाब है कि इंसान पर उसके विचारों का प्रभाव है अर्थात् इन सभी परिस्थितियों के जि़म्मेदार हम स्वयं हैं, यानी हमारे भौतिक चीज़ों से नहीं, हमारे अवचेतन मन से है। आज हम जैसी भी स्थिति में हैं, चाहे अच्छे या बुरे, उनका हमने कहीं ना कहीं, कभी ना कभी, उसका बीज हमने स्वयं अपने अंदर बो दिया था। चाहे 5 दिन पहले, एक महीना पहले, 5 साल पहले या इससे भी कभी पहले। जब भी उसको अनुकूल वातावरण मिलेगा, वो बीज अवश्य फूटेगा और बाहर आएगा, तो अपना असर भी दिखाएगा।
विचार का निश्चित फल अवश्य होता है
कोई भी विचार किसी भी स्थिति में उत्पन्न हो, उसका कभी क्षय नहीं होता। उस विचार का एक निश्चित फल अर्थात् परिणाम अवश्य होता है, जो व्यक्ति के अंतर्मन में संस्कार रूपी बीज के रूप में संचित रहता है। मन की नकारात्मक प्रवृत्तियां इच्छाओं को सकारात्मक स्वरूप देने का कार्य अनेक उपायों के माध्यम से किया जा सकता है। उन उपायों को निरंतर करने से सकारात्मक ऊर्जा सबल होती है और चेतन मन में शुद्धिकरण के पश्चात् अवचेतन मन में प्रविष्ट होती है, जहाँ पर समस्या का मूल बीज विद्यमान होता है। कोई भी रोग पहले मन में उत्पन्न होता है, तत्पश्चात् उसके लक्षण शरीर पर दिखाई देते हैं।
मनुष्य की बाहरी दुनिया, उसके अंदर उत्पन्न विचारों का ही प्रतिफल है। मस्तिष्क से निकले विचारों का हमारे शरीर, स्वास्थ्य और परिस्थिति से गहरा संबंध है। अक्सर अंतर्मन की नकारात्मक ऊर्जा विवेक को भ्रमित कर देती है, जिसके कारण कर्मों में अशुद्धि आ जाती है। अनेक इच्छाओं के कारण मन की स्थिरता समाप्त हो जाती है, जिससे सही और गलत का विवेक भी क्षीण हो जाता है। हम बिना विचारे ऐसे कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं जिसका दूरगामी परिणाम शुभ नहीं होता है।
विचार ही भावना उत्पन्न करते हैं
विचारों का सीधा प्रभाव हमारे व्यक्तित्व, जीवन के निर्माण एवं ऊर्जा पर पड़ता है। सकारात्मक ऊर्जा के प्रबल होने से हम किसी भी कार्य में पूरी लगन एवं तन्मयता के साथ कर पाते हैं। इसके विपरित नकारात्मक ऊर्जा हमारे विवेक को क्षीण कर देती है। इससे हमारे निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
विचार व्यक्ति की भावनाओं को प्ररित करते हैं अर्थात् आप जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं। जब आपके विचार आपके अत्यधिक दु:ख और शोक का परिणाम प्रतीत होते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ये आपके ही विचार हैं जो कि दु:ख को बढ़ावा दे रहे हैं। आपके विचार एक भावना उत्पन्न करते हैं, जिस पर आप कार्य करते हैं।