परमात्म ऊर्जा

कई ऐसी दो-दो बातें होती हैं न्यारा और प्यारा, महिमा और ग्लानि। तुम्हारा प्रवृत्ति मार्ग है ना। आत्मा और शरीर भी दो हैं। आप और दादा भी दो हैं। दोनों के कत्र्तव्य से विश्व परिवर्तन होता है। तो प्रवृत्ति मार्ग अनादि, अविनाशी है। लौकिक प्रवृत्ति में भी अगर एक ही ठीक चलता है, दूसरा ढीला होता है, बैलेन्स ठीक नहीं होता है तो खिटखिट होती है, समय वेस्ट जाता है। जो श्रेष्ठ प्राप्ति होनी चाहिए वह नहीं कर पाते हैं। एक पांव से चलने वाले को क्या कहा जाता है? लंगड़ा। वह हाई जम्प दे सकेगा व तेज दौड़ लगा सकेगा? तो इसमें भी अगर समानता नहीं है तो ऐसे पुरूषार्थी को क्या कहा जावेगा?
अगर पुरूषार्थ में एक चीज़ की प्राप्ति अधिक होती है और दूसरे की कमी महसूस करते हैं तो समझना चाहिए कि हाई जम्प नहीं दे सकेंगे, दौड़ नहीं सकेंगे। तो जब हाई जम्प नहीं दे सकेंगे, दौड़ नहीं सकेंगे तो सम्पूर्णता के समीप कैसे आयेंगे? यह कमी आ जाती है तो स्वयं भी वर्णन करते हो। स्नेह के समय शक्ति मर्ज हो जाती है, शक्ति के समय स्नेह मर्ज हो जाता है। तो बैलेन्स ठीक नहीं रहा ना! दोनों का बैलेन्स ठीक रहे, इसको कहा जाता है कमाल। एक समय एक जोर है, दूसरे समय पर दूसरा जोर है, तो भी दूसरी बात। लेकिन एक ही समय पर दोनों बैलेन्स ठीक रहें, इसको कहा जाता है सम्पूर्ण। एक मर्ज हो दूसरा इमर्ज होता है तो प्रभाव एक का पड़ता है। शक्तियों के चित्रों में सदैव दो गुणों की समानता दिखाते हैं- स्नेही भी और शक्ति रूप भी। नैनों में सदैव स्नेह और कर्म में शक्ति रूप। तो शक्तियों को चित्रकार भी जानते हैं कि यह शिव शक्तियां दोनों गुणों की समानता रखने वाली हैं।
इसलिए वह लोग भी चित्र में इसी भाव को प्रकट करते हैं। जब प्रैक्टिकल में किया है तभी तो चित्र बना है। तो ऐसी कमी को अभी सम्पन्न बनाओ, तब जो प्रभाव निकलना चाहिए वह निकल सकेगा। अभी इस बात का प्रभाव जास्ती, दूसरों का कम होने कारण थोड़ा प्रभाव होता है। एक बात का वर्णन कर देते हैं, सभी का नहीं कर सकते। बनना तो सर्व गुण सम्पन्न है ना। तो ऐसे सम्पूर्णता को समीप लाओ। जैसे धर्म और कर्म, दोनों का सहयोग बताते हो। लोग दोनों को अलग करते हैं, आप दोनों का सहयोग बताते हो। तो कर्म करते हुए धर्म अर्थात् धारणा भी सम्पूर्ण हो तो धर्म और कर्म दोनों का बैलेन्स ठीक होने से प्रभाव बढ़ेगा।

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