मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यलास्ट सो फास्ट कैसे जायें?

लास्ट सो फास्ट कैसे जायें?

बाबा ने मुरली में ये स्पष्ट कर दिया है कि जो पहले आया ये ज़रूरी नहीं है कि वो आगे जायेगा, सारा खेल योग पर है, पढ़ाई पर है। जो बाद में आया है वो भी अपना पुरूषार्थ तीव्र करके आगे जा सकता है। सबको खुली छूट है।

कई बाबा के नये बच्चे हमेशा पूछते हैं कि हम क्या पुरूषार्थ करें, लेट आए हैं और बाबा कहते हैं लास्ट सो फास्ट भी जा सकते हैं। ये बात सत्य है। तो सभी का प्रश्न उठता है हम तो विजय माला में आना चाहते हैं।
हमने बाबा की एक बात बताई है, फिर सुन लें- बाबा ने कहा है कि विजयमाला में लास्ट की कुछ सीट खाली रखी जाती हैं। ताकि कोई भी तेज पुरुषार्थ करके बैठना चाहे तो उसके लिए मार्जिन है। अंत तक भी एक सीट तो खाली रहेगी। इसलिए तेज पुरुषार्थ करना है तो रोज़ सवेरे उठकर सूक्ष्म वतन में बाबा के पास जाकर बाबा से विजय का तिलक लेना है और मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ, विजयी रत्न हूँ ये बहुत याद करते रहना है। इस नशे को बढ़ाना है तो विजय प्राप्त कराने की शक्ति एक्टिवेट होती रहेगी। क्योंकि विजयी रत्न बनने के लिए अपनी अनेक कमज़ोरियों पर भी विजय पानी है। और चाहे वो तेज़ पुरुषार्थ करने की बात हो, उसमें भी अनेक सूक्ष्म कमज़ोरियां उभरती रहती हैं, उन पर भी विजय पानी होती है। आजकल एक चीज़ और हो रही है, जिसके जो संस्कार दब गए थे, वो जागृत होने प्रारम्भ हो गए हैं। बाबा ने ये बात बहुत पहले स्पष्ट कर दी थी कि जब अंत आएगा, चारों ओर विकारों की तेज आंधी भी चलेगी, तो जिसके अन्दर किसी विकार का अंश भी रह गया होगा तो वो जाग्रत हो जाएगा। अंश से वंश बन जाएगा।
बहुत लोग कह रहे हैं, 15 साल हो गए ज्ञान में चलते, हमारी स्थिति बहुत अच्छी थी अब अचानक सब पर गुस्सा आता रहता है, हमारी समझ में नहीं आता। लोग भी कहने लगे परिवार वाले- छोड़ों न ये ज्ञान-ध्यान तुममें कुछ परिवर्तन तो हो नहीं रहा, पहले ही अच्छी थी, ज्ञान में आके और क्रोध करने लगी हो, तो लज्जा आती है। ये और कुछ नहीं है। जो बीज रह गए हैं विकारों के वो जाग्रत हो रहे हैं। किसी में काम के बीज, किसी में क्रोध के, किसी में लोभ के, जो अपूर्ण इच्छाएं हैं वो जाग्रत हो रही हैं। किसी में दबा हुआ मोह ज्य़ादा जाग्रत हो रहा है, किसका अभिमान प्रकट हो रहा है, ये समस्या अभी बढ़ती जा रही है। इसलिए चाहे आप नये हैं या पुराने हैं, चार घंटे योगाभ्यास तो प्रतिदिन होना ही चाहिए। बिल्कुल स्पष्ट है- योग की साधनाओं के बिना कोई भी मंजि़ल पर पहुंच नहीं सकता।
आत्मा को पावन करना है, कम से कम चार घंटे और आठ घंटे की बात तो हम सब महावाक्यों में सुनते ही हैं। ये योग कर्मयोग के रूप में करना है, इसमें बहुत सारी क्लासेज़ आप यहाँ देख सकते हैं। कर्म करते हुए भिन्न-भिन्न तरह से योगाभ्यास करना है ताकि योग में बोरियत भी न हो और विभिन्न प्रकार के अनुभव होते रहें और सदा ही रूचि बनी रहे।
जो नये हैं उनको मैं कहूंगा कुछ दिन के लिए, तीन मास के लिए एक सिम्पुल प्लान बना लें कि मुझेे सारे दिन में चार बार 10-10 मिनट योग में बैठना है। अमृतवेले उठें तो बहुत ही अच्छा। उसके बाद 6 के आस-पास 10-10 मिनट बैठके योग कर लो। आप जॉब पर जाते हैं तो मुरली के बाद 8 से 9 के बीच अपना समय खुद बना लें, योग कर लें। शाम को आकर योग कर लें, सोने से पहले कर लें10-10 मिनट। उसमें भिन्न-भिन्न अभ्यास कर लें जिसकी चर्चा हमने क्लासेज़ में की है, यूट्यूब पर वो सब उपलब्ध हैं, आप सब सुन सकते हैं, उसका विस्तार हम अभी यहां नहीं कर रहे हैं। 10-10 मिनट योग में बैठने से एकाग्रता बढ़ेगी, मन का भटकना समाप्त होगा। इम्पोर्टेन्ट चीज़ है कि योग में रूचि बढ़ जाएगी, सुख मिलने लगेगा, योग करने की इच्छा होगी और ये बहुत बड़ी चीज़ है।
योग की ओर मन खींचने लगे तो समझो हमने बहुत कुछ पा लिया है। फिर तो हम बाबा के पास जाकर बैठेंगे और बाबा से उसके सम्पूर्ण वाइब्रेशन हमको मिलते रहेंगे। वाइब्रेशंस के रूप में उसके सर्व खज़ाने आत्मा में समाते हैं। चाहे सुख हो, शान्ति हो, पवित्रता हो, खुशी हो, उसका प्रेम हो, शक्तियां हो, उसकी दुआएं हो सब वाइब्रेशंस के रूप में ही आत्मा में समाती रहती हैं। बहुत अच्छा होगा यदि आप ये अभ्यास कर लें।

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