संगमयुग का समय ईश्वरीय यज्ञ के इतिहास में कई पड़ाव को पार करते हुए सम्पन्नता की ओर आगे बढ़ता जा रहा है। ऐसे में 8 अप्रैल 2025 में एक और कड़ी जुड़ गई जहाँ हमारी अति स्नेही परम आदरणीया आदिरत्न दादी रतनमोहिनी ने अपनी जीवन यात्रा को सम्पन्न कर सम्पूर्णता को प्राप्त हुईं। परमात्मा ने महापरिवर्तन के कार्य के लिए भाग्यशाली आत्माओं का चयन किया जिनमें से एक दादी रतनमोहिनी भी थीं। दादी के जीवन को अगर देखें तो प्रमुख रूप से चार बातें दिखाई देती थीं। जोकि अलर्ट, एक्यूरेट, पंक्चुअल और इकॉनमी उनके जीवन से झलकती थी। दादी की रूचि पढ़ाई में बहुत थी, नया-नया सीखना और दूसरों को सिखाना, ये उनका निजी गुण था। बाबा की बनाई हुई दिनचर्या को अपनाना, जिस समय जो कार्य होता उसे उसी समय करना और उसका स्वरूप बनकर जीना उनका व्यक्तित्व रहा। बाबा के ज्ञान रत्नों की गहराई में जाकर उसके स्वरूप को अनुभव करना और उसेे साथियों के साथ शेयर करना, माना कि जैसे वो उनके जीवन का हिस्सा हो। वें हमेशा मुस्कुराते हुए बहुत सहजता से परमात्म ज्ञान को दूसरों को बताना उनकी खूबी थी। उम्र में भले छोटी थीं किन्तु कहीं पर भी समाज में बड़े लोगों से मिलना और उनको परमात्म ज्ञान देने में न डरती थीं और न घबराती थीं। अपनी बात प्रखरता से तर्क सहित दूसरों के सामने रखती थीं। इसीलिए इन सब विशेताओं के कारण बाबा ने उन्हें टीचर्स को ट्रेनिंग देने का दायित्व सौंपा। बाबा का ये विश्वास उन्होंने कभी नहीं तोड़ा और जीवन पर्यन्त टीचर्स को या यूं कहें कि परमात्म संदेश को विश्वभर में देने हेतु योग्य टीचर्स की टीम तैयार की। सभी में हिम्मत, साहस भरना और सभी को सत्यता पर अडिग रहना सिखाया। आज तक हमने देखा कि अपने जैसे कईयों को तैयार कर विश्व परिवर्तन के कार्य करने के योग्य बनाया।
विशेष रूप से दादी यूथ-ऊर्जा को सही दिशा देकर संगम से सतयुग की ओर आगे बढऩे का उनमें जज़्बा पैदा किया। वे भी खुशी-खुशी से परमात्मा के कार्य में अपना हाथ बढ़ाकर आज भी अपने भाग्य को चमका रहे हैं। दादी हमेशा अलर्ट रहतीं, वें समय को महत्व देतीं और एक-एक पल को कैसे सफल करना ये हम उनके जीवन से सीख सकते हैं। हमें जब भी दादी जी से मिलने का अवसर मिलता तो दादी हमेशा कहतीं ये बाबा का यज्ञ है, करनकरावनहार बाबा है हमें तो सिर्फ उमंग-उत्साह में रह अपना भाग्य बनाना है। दादी इकॉनमी की अवतार थीं, मैं जब दादी जी से कुछ कार्य अर्थ पाण्डव में स्थित छोटे-से ऑफिस में मिलने गया और दादी जी को अपनी बात बताई। पहले तो दादी जी ने बड़ी स्नेहभरी दृष्टि दी और फिर पूछा कि बताइए, तो मैंने कार्य में आई कठिनाई के बारे में बताया, तो दादी ने बड़े स्नेह से मेरी ओर देखा और टेबल पर रखे एक छोटे-से कागज़ के टुकड़े में लिखा कि ”जो हो रहा है वो अच्छा है और आगे भी अच्छा ही होगा।” मैं यह पढक़र हल्का हो गया। सचमुच जो मुझे कठिन व मुश्किल लग रहा था वो कार्य दिन बीतते ही बहुत अच्छा हो गया। दादियों के छोटे से उत्तर में भी बड़ी सफलता का छिपा राज़ अनुभव हुआ। कम बोलना, धीरे बोलना, मधुर बोलना और सत्य बोलना ये हमने दादी से सीखा। कहते हैं कि महान व्यक्ति मरने के बाद भी जीवन्त रहता है। हमारी दादी भौतिक जगत से गईं ज़रूर हैं लेकिन वें एक नये विशेष भगीरथ कर्त्तव्य प्रयाण के लिए गई हैं, न कि हमारे बीच से। वो आज भी हमारे साथ हैं, उनकी शिक्षा-दीक्षा हमारे साथ हमेशा रहेंगी और हम भी उसे आत्मसात कर परमात्मा के कार्य को सम्पन्न और सम्पूर्ण करेंगे। ऐसी मीठी दादी जी को लौकिक से अलौकिक कार्य के लिए विदाई नहीं लेकिन बधाई देते हुए हमारे हृदय की गहराइयों से श्रद्धा सुमन अर्पित।
यूथ की धडक़न, युगरतन दादी रतनमोहिनी
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