भागवत प्राप्ति सभी को रास आती है लेकिन उसका रस लेने के लिए ज्ञान और शिक्षा की सम्पूर्ण धारणा अति आवश्यक है। परमात्मा को पूरी तरह से समाने वाली, अपने अन्दर समाकर सहज तरीके से अपने चेहरे और चलन से सभी को वही ड्ड अनुभूति कराने वाली, हमारी अति स्नेही आदि रत्न और इस जहान में चलते-फिरते फरिश्ते की झलक और उसका प्रतिबिम्ब हम सबके ऊपर पड़े वो अनुभव उन्हीं के कमल मुख द्वारा हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आप भी परमात्म सुख को एक फिल्म की भांति अनुभव करते जाएं और कहें कि सच में यही जहान के नूर हैं…
बाबा का मात-पिता के सम्बन्ध में, कम्बइंड स्वरूप में साक्षात्कार हुआ। ऐसे देखा जैसे कापूस होती उसका धरती से आकाश तक लाइट का आकार, मात-पिता का कम्बाइंड स्वरूप बहुत प्यारा लगा। उसमेें बहुत आकर्षण था। लगातार तीन दिन तक साक्षात्कार होता रहा। बाबा के साथ-साथ कभी श्रीकृष्ण और कभी श्रीविष्णु का साक्षात्कार होता रहा।
दादी कहती है आप सबने तो भागवत सुना होगा, तो गीता भी पढ़ी होगी। अगर अन्तर नहीं पता तो भागवत में भगवान की लीला और चरित्र का गायन होता है और गीता में ज्ञान और शिक्षा मिलती है। तो हमें परमात्मा ने भागवत भी सुनाई और साथ में गीता भी पढ़ाई। माना भगवान की लीला सुनने का और भागवत के साथ ज्ञान दोनों अगर इकट्ठे हों तो आपको अपने भाग्य का पता चलेगा, क्योंकि लीला सुनने में बहुत मज़ा आता लेकिन गीता का ज्ञान अकेले आपको सुकून नहीं देगा। हमारे लौकिक परिवार में सात बहनें और एक भाई हैं। बाबा हमेशा हमको कहते थे भक्ति का फल तो ज्ञान मिलता है और हमारे लौकिक परिवार में भक्ति जबरदस्त थी। हम पूजा-पाठ करने के बाद ही भोजन करते थे। आप सबको एक बात सुनाते हैं कि हमने जो भागवत और गीता पढ़ी आज भी हम उसका प्रैक्टिकल अनुभव करते हैं। और एक नशे की बात सुनाते हैं, कईयों ने अपने मात-पिता को छोड़ दिया और कईयों को मात-पिता ने छोड़ दिया लेकिन हमारे मात-पिता, हमारा सारा परिवार, मात-पिता सहित सब समर्पित हो गए। साथ में जो परिवार के सदस्य कोई बच गया वो सब आज भी अच्छे सम्बन्ध सम्पर्क में हैं। मैं सात बहनों में छठवें नम्बर की थी। जब ज्ञान में आई तो तेरह वर्ष की थी और नौवीं क्लास में पढ़ती थी, आठ वर्ष से भक्ति करती थी। इसका एक कारण था कि एक ज्योतिष ने कह दिया कि ये रहेगी नहीं, माना कि शरीर छोड़ देगी इसलिए यज्ञ-तप करो। इसके कारण मैं परमात्मा से मात-पिता के सम्बन्ध से बातें करती थी और बड़ा प्यारा लगता था। कहती थी मैं तेरी योगिन बनूंगी, और योगिन बनने की चाहना भी बहुत थी। फिर हमारे घर में एक घटना घटी। जिसमें मेरा एक भाई जिसकी शादी होनी थी उसने पहले ही शरीर छोड़ दिया, जिसके कारण माँ को बहुत दु:ख हुआ, उसी समय मेरी लौकिक बहन के पति ने भी शरीर छोड़ दिया। और उसी रात्रि बाबा का मात-पिता के सम्बन्ध में, कम्बाइंड स्वरूप में साक्षात्कार हुआ, ऐसे देखा जैसे कापूस होती है उसका धरती से आकाश तक लाइट का आकार, मात-पिता का कम्बाइंड स्वरूप बहुत प्यारा लगा, जिसमें बहुत आकर्षण था। लगातार तीन दिन तक साक्षात्कार होता रहा। बाबा के साथ कभी श्रीकृष्ण और कभी श्रीविष्णु का साक्षात्कार होता रहा।




