वर्तमान समय चारों ओर के पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में मुख्य दो बातों की कमज़ोरी व कमी दिखाई देती है, जिस कमी के कारण जो कमाल दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा पाते, वह दो कमियां कौन-सी हैं? एक तरफ अभिमान, दूसरी तरफ है अनजानपन। यह दोनों ही बातें पुरूषार्थ को ढीला कर देती हैं। अभिमान भी बहुत सूक्ष्म चीज़ है। अभिमान के कारण कोई ने ज़रा भी कोई उन्नति के लिए इशारा दिया तो सूक्ष्म में न सहनशक्ति की लहर आ जाती है व संकल्प आता है कि यह क्यों कहा? इसको भी अभिमान सूक्ष्म रूप में कहा जाता है। कोई ने कुछ इशारा दिया तो उस इशारे को वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए उन्नति का साधन समझकर उस इशारे को समा देना व अपने में सहन करने की शक्ति भरना – यह अभ्यास होना चाहिए। सूक्ष्म में भी वृत्ति व दृष्टि में हलचल मचती है- क्यों, कैसे हुआ? इसको भी देही अभिमानी की स्टेज नहीं कहेंगे। जैसे महिमा सुनने के समय वृत्ति व दृष्टि में उस आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, वैसे ही अगर कोई शिक्षा का इशारा देते हैं तो उसमें भी उसी आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिन्तक की भावना रहती कि यह आत्मा मेरे लिए बड़ी से बड़ी शुभचिन्तक है, ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही अभिमानी। अगर देही अभिमानी नहीं हैं तो दूसरे शब्दों में अभिमान कहेंगे। इसलिए अपमान को सहन नहीं कर पाते। और दूसरे तरफ है बिल्कुल अनजान, इस कारण भी कई बातों में धोखा खाते हैं। कोई अपने को बचाने के लिए भी अनजान बनता है, कोई रियल भी अनजान बनता है। तो इन दोनों बातों के बजाए स्वमान जिससे अभिमान बिल्कुल खत्म हो जाए और निर्माण, यह दोनों बातें धारण करनी हैं। मन्सा में स्वमान की स्मृति रहे और वाचा में, कर्मणा में निर्माण अवस्था रहे तो अभिमान खत्म हो जाएगा। फिलॉस्फर हो गए हैं लेकिन स्पिरिचुअल नहीं बने हैं अर्थात् यह स्पिरिट नहीं आई है तो जो आत्मिक स्थिति में, आत्मिक खुमारी में रहते हैं- इसको कहा जाता है स्पिरिचुअल। आजकल फिलॉस्फर ज्य़ादा दिखाई देते हैं, स्पिरिचुअल पॉवर कम है। स्पिरिट एक सेकण्ड में क्या से क्या कर दिखा सकती है! जैसे जादूगर एक सेकण्ड में क्या से क्या कर दिखाते हैं, वैसे स्पिरिचुअलिटी वाले में भी कत्र्तव्य की सिद्धि आ जाती। उनमें हाथ की सिद्धि होती है। यह है हर कर्म, हर संकल्प में सिद्धि स्वरूप। सिद्धि अर्थात् प्राप्ति। सिर्फ प्वाइंट्स सुनना-सुनाना- इसको फिलॉसफर कहा जाता है। फिलॉसफी का प्रभाव अल्पकाल का पड़ता है, स्पिरिचुअलिटी का प्रभाव सदा के लिए पड़ता है। तो अभी अपने में कर्म की सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूहानियत लानी है। अनजान बनने का अर्थ है कि जो सुनते हैं उसको स्वरूप तक नहीं लाते हैं। योग्य टीचर उसको कहा जाता है जो अपने शिक्षा स्वरूप से शिक्षा देवे। उनका स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा। उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा। जैसे साकार रूप में कदम-कदम, हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हो। किसको वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कॉमन बात है लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराना है।
परमात्म ऊर्जा
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