मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीसब बातों से प्रूफ होंगे तो बाबा को प्रूफ दे सकेंगे

सब बातों से प्रूफ होंगे तो बाबा को प्रूफ दे सकेंगे

बाबा ने हमें पैगम्बर बनाया है, परन्तु पैगम्बर कभी-कभी कहते कि मेरा माइन्ड डिस्टर्ब है। हूँ मैं निर्माण करने वाला लेकिन खुद का निर्माण करना मुझे नहीं आता। तो हम समझें कि हम दूसरों के लिए पंडित हैं। स्व से सृष्टि का निर्माण होगा या सृष्टि से स्व का? तो हरेक चेक करो कि मैं स्व का निर्माण कर रहा हूँ? क्या निर्माण करने वाला कभी बिगड़ेगा? अगर मैं बिगड़ गई तो क्या मैं बिगड़ी को बनाने वाली हुई या बनी हुई को बिगाडऩे वाली? इस टाइम मैं पैगम्बर कौन-सा संदेश सबको देती? बिगडऩे का या निर्माण करने का? कईयों का मूड एकरस से निकल कर ऑफ हो जाता। यह कितनी अच्छी बात है। उस समय हमारी सूरत से कौन-सा पैगाम मिलता है? नव निर्माण का? कई कहते मेरे में देह-अभिमान बहुत है। पर बाबा तो जानता है ना कि हैं ही सब देह-अभिमानी। मैं इन गिरी हुई आत्माओं को ही देही-अभिमानी बनाने आया हूँ। फिर बाबा को क्यों कहते- मेरे में देह-अभिमान है! अगर सर्जन को कोई पेशेन्ट कहे हे सर्जन मेरी तो वही बीमारी है, तो यह भी उसकी इनडायरेक्ट इन्सल्ट हुई ना। अगर कहते मेरे में वही का वही देह-अभिमान है तो बाबा का मैंने कितना रिस्पेक्ट किया! यही पढ़ाई की रिज़ल्ट सुनाई? बाबा ने पढ़ाया देही-अभिमानी बनो, हम जवाब देतेे हमारे में देह-अभिमान है। तो क्या यही प्यार का जवाब है? अगर अभी तक मेरे में वही देह-अभिमान है तो शूद्र कुमार और ब्रह्माकुमार में अन्तर ही क्या रहा? फिर कहेंगे आप जो भी समझों। तो मैं समझूँ तुम राजयोगी नहीं हो ना! कहते हैं बाबा मुझे और कुछ नहीं चाहिए सिर्फ मुझे सभी प्यार से चलायें। मैं पूछती बाबा प्यार का सागर है, क्या वो प्यार नहीं दे रहा है, उनसे ज्य़ादा और कोई प्यार देने वाला है? चलाने वाला बाबा या हम-तुम? प्यार का सागर हमें प्यार से पाल रहा है। हमें नया जन्म दिया, वर्सा दे रहा है, हम उसकी पालना के अन्दर हैं, वह हमें अति प्यार से इस पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले चलता। कितनी बार कहता ओ मेरे मीठे-मीठे बच्चे, यह कितने प्यार के बोल हैं। बाबा ने यह बोल सबके लिए बोला है या एक-दो के लिए? तुम किसको बोलते कि हमें प्यार से चलाओ? किसको अक्ल सिखाते हो? बाबा ने हमें मंत्र दे दिया- जो देखते हो वह न देखो, जो न दिखाई देता है उसे याद करो। भिन्न-भिन्न संस्कार तो कर्मों का हिसाब-किताब है। मुझे कर्म का खाता चुक्तू करना है, ना कि बनाना है। मैं सब हिसाब-किताब चुक्तू करने, कर्मातीत बनने के लिए बैठी हूँ फिर मैं अपना हिसाब-किताब संस्कारों के वश क्यों बनाऊं! अगर हम हर घड़ी यही समझें कि हम स्टेज पर हैं, अगर कोई स्टेज पर बैठ मूड ऑफ करे, रोता रहे तो वह सबको अच्छा लगेगा? उस समय मुझे सबसे प्यार मिलेगा? स्टेज पर बैठ कर रोओ तो सब देखें कि मैं ब्र.कु. कितना दु:खी हूँ, मैं कितना उदास हूँ, जब गुस्सा आता है तो स्टेज पर जाकर गुस्सा करो, सब देखें मेरा चेहरा कैसा है। मैं सुन्दर हूँ या काला हूँ! हूँ तो मैं पैगम्बर लेकिन क्रोध वाला हूँ। रोने वाला हूँ। शायद यह गुस्सा भी मेरी सर्विस करे? फिर देखने वाले कहते- इनका यही प्रैक्टिकल का ज्ञान है! कहते हैं मेरी वृत्ति दृष्टि खराब होती है, मैं कहती तू खराब हो। बाबा हमें काले से गोरा बनाता फिर कहते दृष्टि खराब होती। खराब रावण है या राम? राम का होकर रहो। अगर सीता कहे मेरी तो वृत्ति खराब हो जाती तो राम पसन्द करेगा? राम के बच्चे होकर मेरी खराब वृत्ति जाती। लज्जा नहीं आती? जब न्यू बर्थ हो गया तो पुराना हिसाब-किताब समाप्त हुआ। ज्ञान कहता है सब बातों से प्रूफ होंगे तो बाबा को प्रूफ दे सकेंगे। बाबा के सपूत बच्चे कहलायेंगे।

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