समय आ गया है, समय ने करवट बदल दी है जिसका इन्तज़ार हमें युगों से था, हम परिवर्तन चाहते थे। ये हमारी आँखों के सामने फास्ट गति से हरपल परिस्थिति, स्वस्थिति का बदलाव नज़र आ रहा है। प्रकृति ने भी हमें बहुत कुछ दिया है, हमें उसे लौटाना है, उसको भी स्वच्छ करना है। इस प्रकृति ने हमें जन्म दिया, शरीर की पालना भी की और बहुत सुख भी दिया, विशुद्ध पवन, विशुद्ध जल, स्वच्छ आकाश, अग्नि भी दिया तो बहुत तेज नहीं आरामदायक। यह सब प्रकृति ने हमें सुख देकर हमारी पालना की है। हम उनका हृदय से शुक्रिया करें, रोज़ शुक्रिया अदा करें। तो सबकुछ परिवर्तन हो रहा है, तो हमें भी परिवर्तन करना है। चेंज को स्वीकार करना है। जिन्होंने परमात्मा के महापरिवर्तन के कार्य में बहुत मदद की है उन्हें प्रकृति भी साथ देगी और साथ दे भी रही है।
हम समय अनुसार ज़रा विचार करें, हमें स्वयं में क्या चेंज लानी है, चेंज अवश्य लानी है। परमात्मा हमें कहा करते थे वो सब बातें हमें याद आती हैं। बाबा कहते थे समय नाज़ुक आएगा, चारों और विकारों की आग तेजी से फैलेगी। ऐसे में किसी के अन्दर भी दबा हुआ, छिपा हुआ विकार का अंश होगा तो वो भी वंश पैदा कर देगा। वो अंश के वंश में बदल जाएगा, वो छोटे से बड़े में बदल जाएगा और मनुष्य को काफी परेशान करेगा। जैसे आजकल बहुतों के सामने बातें आ रही हैं कि क्रोध बहुत आ रहा है, बिना मतलब आ रहा है। क्योंकि घर में रहेे हैं तो क्रोध का विस्तार बहुत हुआ है। वो दबा हुआ, छिपा हुआ अंश भी वंश का रूप ले लेता है। जो विकारों का बीज हमारे अन्दर है अगर उस बीज को हमने खत्म नहीं किया तो जागृत हो जाएगा, क्योंकि वातावरण मिलने पर वो पल्लवित होता है। तो हम बहुत ध्यान दें कि हम विकारों से स्वयं को पूर्ण रूप सेे मुक्त करें। बहुत समय से हमें अलबेलेपन में चलने की आदत हो गई है, हम ढ़ीले हुए हैं, कई तो संशय में भी चल रहे हैं, धारणाएं कईयों की ढ़ीली पड़ी हैं। ये तो बहुत बड़ी गलती हुई। उन्हें सचेत होना है, जागृत होना है। कई पुरूषार्थी बच्चे बहुत तीव्र गति से आगे भी बढ़ रहे हैं और दूसरी ओर कई बच्चे अपने आप को अलबेलेपन में समय को यूं ही गंवा रहे हैं। बहुतों ने कारणे-अकारणे हार खा चुके हैं। हमें हार नहीं खाना है, विजय हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
हमें स्वयं भगवान ने चुना है इस भागीरथ महापरिवर्तन के कार्य के लिए। भगवान के हम बच्चे हैं, जिन्हों को भगवान साथ दे रहा हो! जिसकी पालना स्वयं भगवान कर रहा हो! जिसको गाइडेन्स भगवान से मिल रही हो! क्या वो माया से हार खा सकते हैं! क्या वो जीत नहीं सकते! हम नहीं जीत सकेंगे तो भला और कौन जीत सकेगा!
कई कहते हैं कि हमें तो मालूम है ना कि हम आत्मा हैं, भगवान भी है ये ज्ञान तो हममें है। लेकिन हमने देखा है कि भक्त-सन्यासी बहुत माया से हार खाते रहे हैं, अनेक धर्मों में भी यही हुआ है। उसका कारण एक ही था कि माया से जीतने की यथार्थ विधि नहीं थी। केवल माया को जीतना है, विकारों को छोडऩा है, अपनी कर्मेन्द्रियों पर विजय पानी है, उन्हें शीतल करना है यह कहने से काम तो नहीं चलेगा ना! उसकी प्रॉपर विधि भी हमारे पास होनी चाहिए। विधि के बिना सिद्धि नहीं होती। इसीलिए परमात्मा ने हमें पहली विधि बताई है कि- ‘अपने को आत्मा समझ मेरे साथ सम्बन्ध जोडऩा है।’
बहुतों ने कहा हमें ज्ञान तो मिल गया लेकिन हम उसे समझे भी ना! अगर आपको कहीं जाना है रास्ते में प्रकाश हो लेकिन आपकी टाँग ही चलती नहीं, आपकी बाइक में आज तेल नहीं है, आपके पास साधन हैं और तेल नहीं है तो साधन होते हुए भी आप कैसेे पहुंचेंगे! तो ये बहुत बड़ी त्रासदी हुई ना! आत्मा का ज्ञान होने पर भी, आत्म-अभिमानी की प्रैक्टिस नहीं हुई। इसीलिए समस्याओं में हम गिरते रहे। बहुत लोग आध्यात्मिक जागृति के अभाव में खुद को खाली महसूस कर रहे हैं, अब हमें उसे भरना होगा। क्योंकि समय की डिमांड यही है कि हम निर्भय बनें और यथार्थ विधि को अपनायें, अपने को भरपूर करें। तब ही हम समय की चुनौतियों को चैलेन्ज कर सकेंगे, चेंज कर सकेंगे।




