परमात्मा ने हम सभी को, जो इतने समय से अभ्यास करते हैं या करते होंगे, उन सबको किसी भी बात में योग का ये अनुभव होगा, उसका कभी डिस्क्रिप्शन नहीं दिया, उसकी कभी परिभाषा नहीं दी, उसका कभी मूल्यांकन नहीं बताया। कहने का मतलब है कि इस योग में जहाँ आत्मा, परमात्मा को अनुभव करना चाहती है, स्वयं के मूल गुण के आधार से। क्योंकि आत्मा का मूल गुण, मूल स्वभाव एक तरह से शान्ति, प्रेम, पवित्रता, आनन्द का ही तो है और परमात्मा उसका सागर है। तो क्या परमात्मा की उस स्थिति को, जो परमात्मा जिस अवस्था में हमेशा है उसको अनुभव करने के लिए हम सबको कोई ऐसे मूल्यांकन की आवश्यकता पडऩी चाहिए या सिर्फ हमको अनुभव करना चाहिए? परमात्मा हमको हमेशा एक बात सिखाते हैं, कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ, शान्ति का सागर हूँ, प्रेम का सागर हूँ, तुम सबको सागर के साथ जुडऩे के लिए अपने आप को ज़ीरों बनाना पड़ेगा। क्योंकि सागर इस दुनिया में वही है, बड़ा वही है, सबके लिए सोचता वही है जिसके अन्दर विशाल दिल, विशाल हृदय हो। जिसका ज़ीरों निगेटिविटी कहा जाता है, मतलब ज़ीरों परसेन्ट भी कोई किसी से अनबन नहीं हो, बुरा नहीं है, सबकुछ परफेक्ट है।
वैसे परमात्मा हमको कहते हैं तुम ज़ीरों बनो। जितना ज़ीरों हम बनते जायेंगे, उतना परमात्मा को परमात्मा के हिसाब से हम अनुभव करते जायेंगे और वो जो योग का अनुभव होगा, वो हम सबको इस दुनिया के अनुभव से बहुत दूर ले जायेगा। तो समझने का विषय है कि ज़ीरों का मतलब है इस दुनिया की किसी भी चीज़ में, कहीं भी मैंं, अपने आप में, किसी भी बात में, कुछ भी राय देने के लिए रेस्पॉन्सिबल नहीं हूँ या मैं उस लायक नहीं हूँ। क्योंकि ये प्रकृति पुरूष और परमात्मा का खेल है। यहाँ जो कुछ भी घट रहा है, वो नैचुरल है। उस पर सोचना, उस पर अपनी बुद्धि का निर्णय देना, उस पर उन बातों का अमल में लाना जो हमारे दायरे से बाहर है, ये सब करना हमारे छोटे-छोटे देहभान और देह-अभिमान को शो करता है, बताता है। ऐसी अवस्था वाले परमात्मा को उस हिसाब से अनुभव नहीं कर सकते, जैसा वो है।
इसलिए शिवबाबा हमको रोज़ मुरली में सिखाते हैं कि देह-अभिमान छोड़ो, देही अभिमानी बनो। देही अभिमानी आत्मा को परमात्मा के सिवाए कुछ याद ही नहीं आएगा क्योंकि वो अपने आप में परिपूर्ण हो जाएगा। आत्मा अपनी अवस्था से बाहर ही तब होगी जब तक वो अपने आपको इस शरीर से मुक्त नहीं करती। शरीर में रहते हुए शरीर से मुक्त करना।
इसीलिए उस परमात्मा की अनुभूति हमको तब अच्छे से होगी जब हम रोज़ ये मानेंगे कि मैं ज़ीरों हूँ, सिर्फ और सिर्फ एक ज़ीरों। जिसका न माइनस है, न प्लस है। न कम है, न ज्य़ादा है। न कमेंट है, न किसी की तारीफ है। सबकुछ बैलेंस है, ज़ीरों है। जिसका सब कुछ बैलेंस है वो उस परमात्मा से अपने आपको बैलेंस बनाने में मदद करेगा। इसलिए शिव परमात्मा की शक्ति अपने अन्दर लाने के लिए हमको रोज़ ज़ीरों बनने का अभ्यास बढ़ाना पड़ेगा। तब जाकर हम उस अनुभूति में खो पाएंगे।



