मुख पृष्ठअनुभवराजयोगिनी दादी रतनमोहिनीजी ज्ञान रत्नों की भंडार थी….......ब्र. कु. दिलीप भाई

राजयोगिनी दादी रतनमोहिनीजी ज्ञान रत्नों की भंडार थी……….ब्र. कु. दिलीप भाई

दादी जी एक आध्यात्मिक शक्ति से संम्पन्न ऊर्जावान युवा थीं। दादी जी लव और लॉ की बैलेंस मूर्ति थीं, ब्रह्माकुमारीज की आधार स्तंभ थीं, जिन्होंने युवाओं को राजयोग का मार्ग दिखलाकर हजारों ब्रह्माकुमार-कुमारियों को विश्व परिवर्तन के कार्य में समर्पित कराया। दादी जी लाखों युवाओं की मार्गदर्शक, दर्शनीय मूर्त, ममतामई, ज्ञान रत्नों से खेलने वाली, ज्ञान रत्नों की महादानी थीं। राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का आज के दिन भले इनका शरीर शांत हो गया है परंतु, इनकी हर बात में ज्ञान रतन भरे थे, और वह ज्ञान के मार्गदर्शन सदा के लिए अमर हो गए। दादी जी की पालना, प्रेम, शिक्षा ने अनेक आत्माओं के जीवन को अनमोल बना दिया है। दादी जी का उमंग उत्साह और ज्ञान योग का पाठ जीवन पथ को सुगम और जिंदगी जीने का सहज सरल उपाय था।

मैंने जितना भी दादीजी के सानिध्य का अनुभव किया वह अमूल्य था। दादी जी का अपनत्व भुलाया नहीं जा सकता। एक बार की बात मेरे स्मृति पटल पर गहरी छाप छोड़ कर गई दादी जी, बात 1996 से 1998 की है, टीचर्स ट्रेनिंग उस दौरान एक माह के लिए ज्ञानसरोवर कैंपस में हुआ करती थी। आशा दीदी जी मुख्य रूप से ट्रेनिंग कराती थीं, उस वक्त दादीजी ने कहा था – यह छोटा बच्चा है, यह माइक देता है इसे ट्रेनिंग दौरान बैठने दो। टीचर्स ट्रेनिंग तीन बार अटेंड करने का मेरा सौभाग्य रहा जो मुझे ज्ञान योग, मर्यादाएं और विश्व पटल पर परमात्मा को प्रत्यक्ष कैसे करे इसकी गहरी ट्रेनिंग मिली। मैं बहुत भाग्यशाली हु जो एक ब्रह्माकुमारी बनने की ट्रेनिंग एक बार नहीं तीन बार करने का मौका दादीजी के अनुकंपा से, आशीर्वाद से मिली। दूसरी बात हमेशा दादी मुझे कहती थी अरे अभी अभी पाण्डव भवन था और अभी अभी ज्ञानसरोवर आ गया। मधुबन में देखती तो कहती थी तू ज्ञानसरोवर में था फिर इधर अभी अभी आया। इनके मधुर बोल दृष्टि, इनका वरदानी कमल हस्त मेरे हाथ में, मेर मस्तक पर कैसे भूल सकते! दादी का सानिध्य अनमोल था, उनका स्पर्श, वरदानी बोल जीवन को मूल्यवान बना देता है।

दादीजी के कुछ अनमोल वचन जिसे मैंने नोट किया था वह यह है कि – दादी जी हमेशा कहा करती थीं – आत्मा अभिमानी बनो दूसरा – हर समय ज्ञान, योग, धारना और सेवा का बैलेंस रखो। सदा खुश रहो और उमंग-उत्साह में रहो। दादी जी की इन शिक्षाओं से मुझे बहुत मदत मिली। मैंने किसी भी परिस्थिति में इन शिक्षाओं को दोहराया और जीवन को सार्थक बनाया।

दादी जी ज्ञान रत्नों की खान थीं, एक बार दादी ज्ञान की बरसात करती थी तो लगता था अब दादी ने भरपूर कर दिया है। दादीजी एक अच्छी स्टूडेंट भी थी, दादी हमेशा ज्ञान के नोट लेती थी। कुछ पुरुषार्थ के प्वाइंट लिखती थी, ज्ञान मुरली से असीम प्यार था। हमेशा दादी जी पुरुषार्थी ग्रुप बनाकर बहन भाईयों में आध्यात्मिकता की जागती ज्योत बनी रही।

आज के दिन भले ही आदरणीया राजयोगिनी रतनमोहिनी दादी जी का नश्वर शरीर का त्याग हो गया लेकिन, दादीजी की शिक्षाएं,प्यार दुलार की ज्योत अध्यात्म जगत को प्रकाशित करती रहेगी। हाल में ही 25 मार्च 2025 को दादी जी 101 वां जन्मोत्सव मनाया गया था, मैंने दादीजी से हाथ मिलाया, दादीजी ने प्यार भरी शक्तिशाली दृष्टि भी दी, लेकिन उपराम थीं दादी जी। अंतिम पड़ाव में भी दादी जी ने कर्मातीत अवस्था का पाठ सिखाया। दादी जी के सानिध्य के ऐसे मौके सौभाग्य से मिले, जीवन धन्य हो गया।

101 वर्ष पूर्व ऐसी महान आत्मा ने जन्म लेकर बाल्य काल से अध्यात्म की ओर झुकाव हमेशा अध्यात्म जगत याद रखेगा। 8 अप्रैल मंगलवार को महान दादी जी का महाप्रयाण हो गया। 10 अप्रैल 2025 को सुबह अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन लगता है दादी जी आप मेरे कही आस पास हो। सच में ऐसी महान आत्मा की पालना, निस्वार्थ प्रेम के प्रकम्पन साथ रहते है ऐसा अनुभव होता है। ऐसी हमारी परम आदरणीया परम श्रद्धेय दादी जी को हृदय की गहराई से श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करते है।

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