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माइंड, मेडिटेशन और मनुष्य के बीच सन्तुलन

हम ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ हर पल नई चुनौतियां लेकर आ रहा है। हमें पता ही नहीं कि अगले पल क्या होगा! ऐसे अनिश्चितता, डर और भय के साथ मनुष्य ओहा-पोहा की स्थिति में है। क्या होगा, कैसे होगा ये अनिश्चितता के बादल उनके मन-मस्तिष्क को घेरे रखता है। भल कोई किसी भी प्रोफेशन से जुड़ा हुआ हो, चाहे घर से निकलने से दफ्तर और दफ्तर से निकलने से घर तक पहुंचने तक अनिश्चितता बनी रहती है। ऐसे में कई लोग मन की शान्ति के लिए योग, मेडिटेशन या पूजा-पाठ का सहारा लेता हुआ दिखाई देता है। अगर देखा जाए तो मनुष्य अपने आप में ही टूटा हुआ है, बिखरा हुआ है। ना ही उन्हें अपने में विश्वास और ना ही दूसरों पर। बस दौड़ते जा रहे हैं, भागते जा रहे हैं। कई हैं जो मेडिटेशन को अपनाते तो हैं, योगा भी करते हैं फिर भी मन में चैन व स्थिरता नहीं। उनका भटकना ही अशान्ति का कारण बना रहता है।

ऐसे में बहुत सुन्दर हमारे सामने एक आशा की किरण के रूप में ब्रह्माकुमारीज़ की इस वर्ष 25-26 की सेवा योजना की बहुत ही अच्छी थीम ‘राजयोग मेडिटेशन फॉर वल्र्ड यूनिटी एंड ट्रस्ट’ या ‘विश्व एकता और विश्वास के लिए ध्यान’ बहुत ही प्रासंगिक भी है और प्रेरणा भी। जिसे हम आज समझने की कोशिश करते हैं।

मेडिटेशन, माइंड और मानवता इसके बीच संतुलन होने पर ही शान्ति की अनुभूति होगी, हम चैन से रह सकेंगे। मेडिटेशन शब्द का भावार्थ समझें तो मेडिटेशन ‘मेढऱी’ शब्द से बना हुआ है जोकि इटालियन भाषा का शब्द है। ‘मेढऱी’ का मतलब है ‘टू हील योर-सेल्फ’। यानी कि अपने आप को पुन: स्वस्थ करना। मतलब कि हम अस्वस्थ हैं। कोई बीमार है तो डॉक्टर के पास जाते हैं, डॉक्टर दवा देता, साथ में परहेज भी करने की सलाह देता और भोजन कौन-सा लेना है यह बताना भी नहीं भूलता। जिससे वे पुन: स्वस्थ हो जाएं। उसी तरह मन में खुशी चाहिए तो सबसे पहले ध्यान देना है कि खुशी गायब कहाँ-कहाँ से हो रही है? उसे स्वयं निरीक्षण करना है। देखना है, कहाँ-कहाँ हमारी शक्तियां वेस्ट हो रही हैं, अशान्ति का कारण क्या है, बैचेनी क्यों है इसको सूक्ष्मता से अपने अन्दर जाँच करके उन चीज़ों को खोजना है जो हमें बेचैन कर रही हैं। जैसे डॉक्टर डायग्नोसिस करते हैं कि बुखार आने की वजह क्या है, अगर ऊपरी तौर पर समझ में ना आए तो अधिक जाँच के लिए एक्स-रे भी लेता है। उसी तरह हमें भी भाग-दौड़ भरी जि़न्दगी के मध्य बहुमूल्य समय के बीच 15 से 20 मिनट तक का समय निकाल शान्ति में बैठकर अपने आप से बातें करना व खुद से रूबरू होना ज़रूरी है। मेडिटेशन का मतलब ही है पुन: पहले की स्थिति में लौटना, स्वस्थ होना। भीतर में छिपी शक्तियों व विशेषताओं से अवगत होना। मन और बुद्धि के बीच में सही अंडरस्टैंडिंग के साथ संतुलन बिठाना। कई बार हम देखते हैं कि मन में कुछ और थॉट्स चलते हैं जबकि दिल के भाव और भावनाएं अलग होती हैं और साथ ही रिएक्ट कुछ और ही कर रहे होते हैं। ऐसे में शान्त मन से हम भीतरी संवाद स्थापित करने में कामयाब हो जाते हैं तो कारण का निवारण भी अवश्य ही मिलता है।

कहते हैं कि चिडिय़ा की चोंच दी है तो दाना भी चुगने को अवश्य ही मिल जाता है। उसी तरह भीतरी आत्मिक शक्ति को जगाना और उसका उपयोग व प्रयोग सही दिशा में, सही अर्थों में करना ही योग है, मेडिटेशन है। योग का प्रथम पायदान है स्वयं से जुडऩा। जहाँ से शान्ति लीकेज अर्थात् खत्म हो रही है उस लीकेज को देखना भी है और उस लीकेज को देख खत्म करना है। फिर उस योग से प्राप्त शक्ति को व्यवहार में उचित रूप से इस्तेमाल करना। तब कहा कि स्वयं से जुड़ेंगे यानी कि स्वयं की योग्यता को ठीक तरह से पहचानेंगे, जानेंगे तो आत्म विश्वास भी पुन: बढ़ेगा। आत्म विश्वास माना क्रआत्मा में विश्वासञ्ज। मैं शक्तिशाली हूँ, मैं शान्त हूँ, मैं खुश हूँ। इसकी गहराई को महसूस करना ही अपने आप को हील करना है, स्वयं को पुन: स्वस्थ करना है, खोई हुई शक्तियों से वाकिफ होना है। ये जैसे कि मन की खुशी के लिए टॉनिक है। यह आधे घण्टे की प्रैक्टिस मात्र को दिनचर्या में शामिल करने पर ही अपने आप को तरोताज़ा महसूस करेंगे, स्वस्थ अनुभव करेंगे। तो हमारा यह अनुभव भी है और आपसे निवेदन भी करते है कि आप इस तकनीक को प्रायोगिक तौर पर सिर्फ सात दिन करके देखें। जिसका परिणाम सुहावना ही रहेगा, ये हमारा विश्वास है। बस, इसे करने का साहस जुटायें, हिम्मत करें तो सफलता आपके पीछे परछाई की तरह आयेगी।

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