परमात्मा कहो, शिव बाबा कहो जो भी कहो। लेकिन देवता और परमात्मा में अन्तर है, परमात्मा ज्योतिबिन्दु है, उसी को याद करने से सर्व शक्तियां आयेंगी। देवता को याद करने से दिव्य गुण तो आयेंगे लेकिन सर्वशक्तिवान परमात्मा को कहा जाता है। परमात्मा को याद करेंगे तो ऑटोमेटिकली आपकी समस्याएं खत्म हो जायेंगी। हम कहते कि इतनी मेहनत करो ही नहीं। बस अपने मन को ऊपर ले जाओ। तो शक्तियां मिलने से वो शक्ति देखो शक्ति आ जाती है तो बड़ी चीज़ भी छोटी लगती है और शक्ति नहीं होती है, निर्बल कोई होता है तो छोटी चीज़ भी बड़ी लगती है। तो हमको बड़ी समस्या को छोटा करना है। इसके लिए आप ऊपर चले जाओ। सर्वशक्तियों को अपने में भरें, साइंस की शक्ति देखो चन्द्रमा तक ले गई। शक्ति है ना साइंस भी। तो साइलेंस की शक्ति से आप परमात्मा से अपना मन नहीं लगा सकते? जब साइंस की शक्ति इतने साधन बना रही है प्रैक्टिकल, तो साइलेंस की शक्ति से ही तो साइंस की शक्ति निकली है। बड़ी तो साइलेंस की शक्ति है ना। वो है मेडिटेशन का आधार। बस मेडिटेशन का कोर्स आप बिल्कुल पक्का कर लो। ज्य़ादा लम्बा चौड़ा तो है नहीं। मैं कौन हूँ और परमात्मा कौन है बस यही तो जानना है। और क्या है? जान गये तो बुद्धि ऑटोमेटिकली जायेगी। अभी आपका परिचय हमसे हो गया कि ये फलानी बहन है, ये फलाना भाई है। हम कभी भी याद करें आपको तो सहज याद कर सकेंगे ना। उसके पहले मैं कभी आपको याद करूँ क्या, कर सकती हूँ, कितना भी याद करने की कोशिश करूँ लेकिन नहीं कर सकती। क्योंकि परिचय नहीं है। और अब परिचय हो गया तो हम कभी भी बैठे कि फलाना भाई महाराष्ट्र का भाई था। याद आ जायेगा ना। तो परमात्मा का परिचय मिला, और अपना परिचय मिला बस इसी साधन से आपमें शक्तियां आ जायेंगी। तो सहज है या मुश्किल है? सहज है ना? तो आप अभी समस्या मुक्त हो जाना। कई कहते हैं कि हम बहुत खुश हैं, हम किसको दु:ख नहीं देते लेकिन दूसरा मेरे को बहुत दु:ख देता है। परेशान बहुत करता है और कोई न कोई परेशान करने वाला मिलता भी है। नैचुरल है, कलियुग है ना। मिलता भी है। लेकिन एक क्वेश्चन है, अच्छा उसने दु:ख दिया, ठीक है, देना नहीं चाहिए लेकिन दिया, लेकिन लेने वाला कौन? लेने वाला अलग होता है? या देने वाला ही लेने वाला होता है? अलग होता है ना? मानो मेरे को आके कोई पानी का गिलास देवे, अभी मैं समझती हूँ ये पानी ठीक नहीं है तो मैं लूं या नहीं लूं ये मेरे हाथ में है या देने वाले के हाथ में है? लेने वाले के हाथ में है। तो वो दु:ख दिया लेकिन आपने लिया क्यों? लेने वाले तो हम हैं ना। मन में फीलिंग आती है और वो ही चलता रहता है। एक मास के बाद भी वो मेरे सामने आयेगा ना हमको वो ही दु:ख की बात याद आयेगी। ये फलाना है ना जिसने ऐसा किया था और मैं और परेशान हो जाऊंगी। होता है ना ऐसा? तो लिया क्यों दु:ख! लेना न लेना तो हमारे हाथ में है ना, दूसरे के लिए तो हम कह देते हैं कि वो दु:ख देता है लेकिन लेने वाली मैं हूँ, अगर मैं नहीं लूं तो देने वाला कबतक देगा? तो कल से आप दु:ख लेना नहीं, आधा तो ठीक हो जाओ। लेंगे और देखो लेने वाला ज्य़ादा परेशान होता है। होता है ना? देने वाला तो देके जाके ठंडी हवा में सो जायेगा। और लेने वाला परेशान हो जायेगा कि ये क्यों किया, क्या किया, कैसे किया, कौन है ये, यही सोचता रहेगा। तो हम अपने को दु:ख देवे क्यों? फीलिंग नहीं करो। जैसे चिकने घड़े पर कितना भी पानी डालो तो एक बूंद भी नहीं रहेगी ना। तो अच्छा दु:ख दिया लेकिन मैं अपने मन में नहीं रखूं। यानी फीलिंग नहीं करूं। फीलिंग करने से क्या है मैं परेशान ज्य़ादा होती हूँ, तो आप दु:ख लेंगे नहीं इतने सारे, देने वाले भी बच जायेंगे तो ठीक है ना शांति हो जायेगी ना। इतने भी शांत हो गये तो दु:ख लेंगे नहीं देने की तो बात ही छोड़ो। जब लेंगे ही नहीं देंगे क्या? तो बच जायेंगे ना। इतना तो संसार में वायुमण्डल चेंज हो जायेगा। तो आप इसमें सहयोगी बनना। दु:ख लेना नहीं और देने वाले भी सीख जायेंगे और हमारा भारत जो है जो चाहते हैं शांति का हो जाये, कॉन्फ्रेंस इतनी करते हैं हम तो कहते हैं कॉन्फ्रेंस के बजाए दु:ख लो नहीं पैसे जो कॉन्फ्रेंस के हैं वो गरीबों को दे दो। तो फायदा हो जाये। कॉन्फ्रेंस करने से होता तो कुछ नहीं है। सब बोल के चले जाते हैं धारण तो कोई करता ही नहीं है। इसीलिए आप प्रैक्टिकल में लेना नहीं। पेपर आयेगा, समस्याएं आयेंगी, लेकिन आप लेना नहीं पक्के रहना, मुझे लेना नहीं है। और देने वाले का भी कल्याण करना है। पुण्य हो जायेगा ना। ठीक है! जब इतने सारे दु:ख लेने वाले नहीं होंगे तो हमारा भारत तो ठीक हो जायेगा।
कोई दु:ख देता तो हम लेते क्यों…!!!
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