मुख पृष्ठब्र.कु. उषाक्या होगा ये सोचने के बजाए… मेरी स्थिति कैसी है ये सोचें…

क्या होगा ये सोचने के बजाए… मेरी स्थिति कैसी है ये सोचें…

कभी भी कुछ भी हो सकता है। क्या होगा, क्या होगा, क्या होगा उस विषय में न जाओ, ये संकल्प मत चलाओ। परन्तु जो होगा वो अचानक होगा। लेकिन क्या हम तैयार हैं? बाबा ने बार-बार ये शब्द पूछा क्या हम तैयार हैं? समय बीच-बीच में घंटी तो बजाता रहता है। और कई बार बच्चे ये घंटी सुनकर के थोड़े जागृत भी हो जाते हैं। लेकिन उसके बाद पुन: फिर जैसे थोड़ा शान्ति महसूस होती है कि फिर आलस्य, अलबेलेपन में वापस चले जाते हैं। और इसलिए बाबा हम बच्चों को सावधान करते रहते हैं। बाबा ने कहा- बच्चे आपका लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। जब भी किसी से पूछते हैं तो ये तो ज़रूर बच्चे कहते हैं कि हाँ हम सूर्यवंशी बनेंगे। लेकिन उस लक्ष्य के हिसाब से क्या लक्षण हैं, ये स्वयं में देखना है।

सूर्यवंशी के लक्षण की दो बातें बताई बाबा ने। सूर्य की कला कभी कम-जासति नहीं होती है और सूर्यवंशी माना सदा विजयी। तो सदा विजयी और एकरस। ये दो लक्षण बताये बाबा ने। ये तैयारी मुझे अपने आप में करनी है कि क्या मेरी स्थिति कुछ भी हो जाए तो भी एकरस है, सदा विजयी हूँ, सफलतामूर्त हूँ? ये पहली तैयारी हमें अपने आप में करनी है।

बाबा ने ये भी बताया कि चंद्रवंशी आत्माओं के लक्षण कभी जीत, कभी हार, कभी मेहनत, कभी सहज। तो इसीलिए बाबा कहे, आप स्वयं में चेक करो कि मेरी स्थिति एकरस कहां तक बनी है और अगर अस्थिर हो रही है तो आवश्यकता है कि मुझे उसी बात की तैयारी करनी है अपने अन्दर। ताकि समय से पहले मैं अपने आप को तैयार कर सकूं और कोई भी प्रकृति का पेपर आए, बाबा ने बार-बार कहा कि पेपर लूं, पेपर लूं, पेपर लेेंगे। और यहां तक बाबा ने कह दिया मधुबन वालों को मधुबन छोडऩा पड़ेगा, सेन्टर वालों को सेन्टर छोडऩा पड़ेगा, अपनी खटिया छोडऩी पड़ेगी, अपनी अलमारी छोडऩी पड़ेगी, सब कुछ छोडऩा पड़ेगा। भाव ये था बाबा का कि जब वो अंतिम घड़ी आयेगी, दुनिया की विनाश की बात नहीं लेकिन स्वयं की अंतिम घड़ी आयेगी तो आप उस स्थान पर नहीं होंगे जहाँ आप रह रहे हैं। नैचुरल है कोई बाहर होगा, कोई कहाँ होगा तो कोई कहाँ होगा। तो छोडऩा ही कहेंगे ना! ये तो नहीं सोचेंगे कि बस नहीं, अभी अंतिम घड़ी कैसे आ सकती है, मेरी अंतिम घड़ी तो घर में ही होनी चाहिए, मैं घर पहुंचू, डायरेक्शन दूं, घर परिवार वालों को मिलूं, ये कंरू, अलमारी में जो चीज़ें रखीं हैं उसको मैं ठीक-ठाक कंरू, उसके बाद मेरी अंतिम घड़ी आये। ये तो नहीं होगा, ऐसा तो होने वाला नहीं है। तो इसीलिए बाबा कहते हैं हरेक को अंतिम समय, जब अपनी अंतिम घड़ी आ जाये तो उस समय कुछ कर नहीं सकेंगे। क्योंकि बाबा ने कहा कि ऑर्डर इज़ ऑर्डर। ऑर्डर हुआ, जाने का समय आया माना एक सेकण्ड में पंछी उड़ जायेगा।

तो उस समय ये होगा कि क्या हो रहा है, क्या नहीं हो रहा है, ये बाबा की मुरली जब चली थी उस समय सन् 2000 आने वाला था। और ये प्रिडिक्शन थी उस समय कि सैटेलाइट कनेक्शन सारे टूट जाएंगे, कम्प्यूटर कै्रश हो जाएंगे, वाई टू के करके ये लहर फैली थी विश्व के अन्दर, बाहर की दुनिया में भी और ब्राह्मणों में भी ये लहर देखने को मिली थी कि क्या होगा अभी! अगर सारा ये सन् 2000 के साल में, क्योंकि लोगों ने प्रोग्रामिंग उस तरह से कम्प्यूटर में किया था। तो ये सब कै्रश हो जाएगा तो क्या होगा? तो क्या होगा, क्या होगा, क्या होगा, ये होगा, नहीं होगा। ये संकल्प बहुतों के चलते थे।

बाबा के पास तो हरेक बच्चे का संकल्प पहुंचता ही है। इसलिए बाबा ने कहा कि ये सोचने के बजाए, क्या आप ये सोच रहे हैं कि मेरी स्थिति कैसी है? बाबा ने रिज़ल्ट भी उसमें बता दिया था कि मैजोरिटी की स्थिति में व्यर्थ और निगेटिव का बोझ है। तो पहली तैयारी जो मुझे करनी है क्या मैंने अपनी मन्सा को एकदम हल्का किया है, व्यर्थ और निगेटिव से मुक्त किया है? क्योंकि यही हलचल अगर होगी और वही मेरी अंतिम घड़ी होगी तो किस गति को प्राप्त करेंगे!

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