त्वमेव माता च पिता त्वमेव… का स्लोगन हम कब इस्तेमाल करते हैं, जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता। हम बहुत कुछ आजमाते हैं फिर भी सुई परमात्मा पर अटकी रहती है। क्योंकि हमें अंध-विश्वास ज्य़ादा होता है और ज्ञान का प्रकाश बहुत कम। तो उस समय करें तो क्या करें! उसी अवस्था में परमात्मा ने स्वयं हम सभी को ज्ञान का विश्वास दिलाकर सुखों की चाबी दी, आँखें खोलो और देखो… स्वर्ग नगरी तुम्हारी कैसी है!
कार खराब होने पर उसे सर्विस स्टेशन ले जाते, शरीर में कोई तकलीफ है तो डॉक्टर के पास जाते। परंतु दु:ख है तो किसके पास जायें? ये सवाल हर कोई के ज़हन में अवश्य उठता है। हरेक का दु:ख अपना-अपना है। किसी को सम्बन्धों में कड़वाहट, तो किसी को शारीरिक व्याधि, तो किसी को धन की कमी, तो किसी को कुछ न होने का दु:ख, किसी को खोने का दु:ख, तो किसी को नौकरी न मिलने का दु:ख। अगर देखा जाए तो दु:ख की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है।
ऐसे में मनुष्य चारों तरफ दौड़ता-भागता थककर बैठ जाता और ऊपर की ओर नज़र उठाकर कहता है- हे प्रभु मेरा दु:ख हर लो, आप ही मुझे इन दु:खों से छुड़ा सकते हो। संसार में किसी भी मनुष्य मात्र के बस का नहीं। ऐसे दु:ख भरे भाव से ऊपर की ओर देखकर गिड़गिड़ाता है। लौकिक जगत में इन दु:खों से निजात पाने का कोई रास्ता सूझता ही नहीं। ऐसी संसार की हालत हो जाने पर परमात्मा हमारी दु:ख भरी आवाज़ सुनकर धरा पर आता है। वो आता तो है लेकिन हम उसे जानें कैसे! ये अपने आप में सवाल है। क्योंकि वो तो निराकार है। हमारा उसके साथ क्या सम्बन्ध है? हम जाने-अनजाने ये कहते रहे क्रत्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देवदेव।।ञ्ज परन्तु हम सबका अनुभव ये है कि न तो हम उनसे मिल सके, ना ही जुड़ सके। भाव ज़रूर हमारा था लेकिन उससे जुडऩे का सही तौर-तरीका व विधि हमारे पास न होने के कारण उसका हमारे साथ मिलन नहीं हो सका।
परिणाम स्वरूप दु:ख के कुचक्र में फंसते गए। जब दु:ख की अति हुई, इससे निजात पाना कोई रास्ता ही नहीं बचा तब हमारे प्यारे पिता से रहा नहीं गया। और वो न सिर्फ धरा पर आये और आकर न स्वयं अपना बल्कि हमारा भी सही परिचय भी दिया। परिचय मिलने से हमारा उनके साथ सही सम्बन्ध स्थापित हुआ। वे सुख का सागर, शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर, दयालु, कृपालु बनकर हमें अपना बनाया और दु:खों से छुड़ाया। परमात्मा और आत्मा की मिलन की इस विधि को ही राजयोग कहते हैं। परमात्मा ने हमें सबकुछ दिया जिससे हम न सिर्फ तृप्त हुए बल्कि दु:ख से मुक्त भी हुए। तो आप क्या चाहते हैं! क्या आपके मन में पढ़कर नहीं लगता कि मैं भी परमात्मा से मिलन मनाऊं और अपने जीवन को भी खुशहाल बनाऊं, क्या सोच रहे हो! संकल्प करें, हिम्मत का कदम बढ़ाए राजयोग जीवनशैली को अपनाएं।


