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योग हमें सकारात्मक ही बनाता है…

विशेष रूप से ये बातें सबको बहुत सुनी-सी लगती हैं और लगनी भी चाहिए, क्योंकि बड़ा आम शब्द हो गया है योग करो, निरोग रहो। लेकिन योग करने के बाद हम निरोग नहीं रह रहे हैं, सकारात्मक नहीं रह रहे हैं, श्रेष्ठ नहीं बन रहे हैं तो इसका मतलब कहीं योगा तो नहीं कर रहे हैं! आसन तो नहीं कर रहे हैं! प्राणायाम तो नहीं कर रहे हैं! ये जो हमारी प्रक्रियाएं हैं- श्वास, प्रश्वास, अनुलोम-विलोम या फिर बहुत सारे आसन जो हमारे शरीर को चाहिए वो हम करते हैं, लेकिन सभी बातें नहीं कर सकते, सभी आसन नहीं कर सकते, नॉर्मल, साधारण तरीके से कोई पदम्मासन में बैठ सकता है, कमलासन में बैठ सकता है, लेकिन वो चिंतन कर सकता है इस तरह से अपने हाथों और पैरों को नहीं मोड़ सकता। तो कुछ तो अलग हमको करना पड़ेगा, जैसे कोई कार्य करने के लिए कहा जाता है कि जो हमारे साधन हैं, अगर मुझे परमात्मा से बातचीत करनी है या मेडिटेशन करना है, अगर मेरा शरीर स्वस्थ रहेगा तो मैं वो कार्य थोड़ा अच्छा कर लूंगा, अच्छे तरीके से कर लूंगा। लेकिन अगर वहीं मेरे शरीर में दर्द है, तकलीफ है, तो वो कार्य मैं उस हिसाब से नहीं कर सकता। इसीलिए योगासन, जो शारीरिक प्रक्रिया है, वो एक साधन का कार्य करती है। उसके आधार से हम स्वस्थ होकर अपने मन को परमात्मा से आराम से जोड़ सकते हैं और उससे शक्ति ले सकते हैं।

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सकारात्मक दृष्टिकोण बनता कैसे है? जब हम अधिक से अधिक आत्मा का चिंतन करते हैं, स्वयं का चिंतन करते हैं। स्वयं की शक्तियों का चिंतन करते हैं, स्वयं के साथ जुड़ी हुई चीज़ों को अलग करने का चिंतन करते हैं, अपने को इस दुनिया में मेहमान समझने का चिंतन करते हैं तो हमारा जो नज़रिया है इस संसार में रहने का, वो बदल जाता है। ऐसे ही जब हम परमात्मा का चिंतन करते हैं तो हमको शक्तियां मिलती हैं, हमारी श्रेष्ठता बढ़ती है, हमारे अन्दर बल आता है, हमारे अन्दर शक्ति आती है। तो जब ये सारी चीज़ें बढऩी शुरू होती हैं तो एकाएक हम सभी को लगेगा कि इस दुनिया में रहना तो ठीक लग रहा है, लेकिन यहाँ रहते हुए इन सारी बातों में प्रभावित न होना, डिस्टर्ब न होना, परेशान न होना, ये सारी चीज़ें योग से हमको मिलनी शुरू हो जाती हैं। और यही सकारात्मक दृष्टिकोण हमें उस मजि़ल तक ले जाता है, जैसा हम चाहते हैं। इसीलिए परमात्मा हमेशा हमको जीवन में उन सारी बातों को देते हैं, सिखाते हैं कि आप सभी सिर्फ और सिर्फ परमात्मा को याद करो, स्नेहयुक्त याद करो, प्यार से याद करो, लेकिन उसके लिए पहले समझ तो ज़रूरी है ना! इसलिए योग एक ऐसा माध्यम है, जुड़ाव परमात्मा से एक माध्यम है जो हमारे जीवन को श्रेष्ठ और सकारात्मक बनाता है।

तो चलो योग के साथ योगा को भी शामिल कर लेंगे और जीवन को श्रेष्ठ बना ही लेंगे। आइए चलते हैं, समझते हैं और बन जाते हैं।

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