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नर को नारायण बनाता- राजयोग

किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति एक विधि से ही सम्भव है। इसी प्रकार राजयोग ही एक विधिपूर्वक करने की प्रक्रिया है जो हमें सही मार्ग पर ले जाती है। इसका प्रथम सोपान स्वयं को जानना और द्वितीय सोपान परमात्मा को जानना। आत्मा का परमात्मा से स्नेेह युक्त मिलन और उसकी अनुभ्भूति हमारी बुद्धि और सृष्टि दोनों के नये रहस्य खोलती है। जीवन के नये आयाम उजागर होते और एक साधारणता से दिव्यता की ओर हम अग्रसर हो जाते हैं। ये परमात्मा से मिलन की अनुभ्भूति व अनोखी प्रक्रिया है जिसे आप भी कर सकते हैं।

योग का प्रथम सोपान

‘मैं ज्योति बिन्दु हूँ” :- योग के लिए सबसे पहले स्वयं को आत्मा निश्चय करें क्योंकि इससे हमारी स्वयं की पहचान पक्की होगी। परमात्मा से जुडऩे के लिए हमें अपने आपको उसके स्तर पर ले आना पड़ेगा। यह सम्बन्ध आध्यात्मिक है, ना कि शारीरिक। जैसे पॉवर हाउस की तार से घर की बिजली का करंट लेने के लिए तार का रबड़ उतारना पड़ता है, ठीक वैसे ही आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से जोडऩे के लिए देह रूपी रबड़ को भूलना होता है। इसे ही आत्म-अभिमानी होना या ‘प्रत्याहार’ कहा गया है। इसके लिए हमें अपने को ज्योति बिन्दु आत्मा समझकर उस स्थिति में स्थित होना होता है।

लाइलाज का इलाज राजयोग :- योग का अर्थ है आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा के साथ जोडऩा। आत्मा और परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ मिलन को राजयोग कहते हैं। राजयोग सभी योगों का राजा है। स्वयं परमात्मा ही अपना परिचय देकर आत्मा को अपने साथ योग लगाने की विधि बताते हैं। यह योग ‘राजयोग’ इसलिए भी है क्योंकि इसे सभी के मन के राजा परमात्मा ने स्वयं सिखाया। इस योग द्वारा हमारे संस्कार उच्च बनते हैं इसलिए भी इसे राजयोग कहा जाता है। राजयोग ही वर्तमान जीवन में कर्मों में श्रेष्ठता लाकर हमें कर्मेन्द्रियों का राजा बनाता है।

कैसे करें राजयोग?

1. स्वयं के अंदर झाँकें :- यह प्रथम कदम है, जिसमें आपको अपने व्यर्थ विचारों को हटाकर स्वयं को आत्मा समझना है। अब स्वयं के विचारों के रूपों को आपको देखना है। यह आपके मानसिक विचारों की गति को सामान्य रूप से कम कर देगा। इसके लिए आप किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ कर श्रेष्ठ चिंतन करना आरम्भ करें।

2. अब उसे सही दिशा दें :- आप सकारात्मक तथा श्रेष्ठ विचारों को बार-बार मन में दोहरायें, इससे आपका मन व्यवस्थित हो जाएगा। उसे एक सही दिशा मिल जाएगी। विचारों के प्रवाह को रोकने से हमें सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होने से आप सुकून महसूस करेंगे।

3. इन विचारों का मन में चित्र बनाएं :- सकारात्मक तथा श्रेष्ठ विचारों को बुद्धि(तीसरी आँख) द्वारा इमेज या कलरफुल बनाकर देखना है। इससे हमारा अवचेतन मन पूर्णत: सक्रिय हो जाता है। रचनात्मक विचार जब हमारे अवचेतन मन से दृश्य-रूप में आना शुरु कर देते हैं तो हमारा मन शान्त होने लगता है। ये सकारात्मक और मूल्यवान चित्र न केवल हमारे शरीर और मन को आराम देते हैं बल्कि हमें सशक्त भी करते हैं।

4. इन चित्रों को दिव्यता दें :- जब हम श्रेष्ठ विचारों रूपी चित्रों को परमात्मा की सर्वोच्च शक्तियों से वेरिफाई(सत्यापित) कराते हैं तो उनमें और शक्ति आ जाती है। हमें कुछ भी नहीं सोच लेना है, हमें वो सोचना है जिससे हमारी आत्मा दिव्य बने अर्थात् हम दिव्य बनें। इसके लिए सर्वोच्च सत्ता, परमात्मा जो गुणों का सागर है, उससे जुडऩा तो पड़ेगा ना! तभी हमारे अन्दर ये सारी शक्तियां आने लगेंगी।

5. अब करें अनुभूति :- किसी चीज़ को पक्का करने के लिए बार-बार उस चीज़ को दोहराना पड़ता है। इसके लिए हमें एकाग्रता की आवश्यकता है। जैसे-जैसे आपकी एकाग्रता बढ़ेगी, अर्थात् एक श्रेष्ठ संकल्प में जब आप स्थित होंगे तो आपको सुखद अनुभूति होने लगेगी। आप एक ऐसी नई दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ आप पूर्णत: शान्त हैं, शाश्वत सत्य के साथ सत्य परमशक्ति परमात्मा जो सत्यम-शिवम-सुन्दरम है उनके आकर्षण में रियल का रियलाइज़ेशन होता है। अलौकिक अनुभूति आपको सुखद फीलिंग कराती है। इस अवस्था में आपकी सर्व इन्द्रियाँ शान्त हो जाती, जो आपके वश में हो जाती हैं, आप पूर्णत: शान्त हो जाते हैं और आपका सर्वोच्च सत्ता से सम्पर्क हो जाता है, जिससे आप सम्पूर्ण रूप से शान्ति की अनुभूति में खो जाते हैं।

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