हम ऐसे समय पर आकर पहुंच गए जहाँ हमारी खुशी एक क्राइसिस(संकट) बन चुकी है अब। खुश रहना कैसे है? हम उसके बारे में बात कर रहे हैं हर रोज़। मतलब जो चीज़ मेरी नैचुरल थी वो नैचुरल चीज़ ही क्या बनने लग गई? अननैचुरल। रात को नींद आना नैचुरल थी, अननैचुरल हो गई अब।
पिछले 25 साल को अगर हम देखें तो, आपको लगता 25 साल में दुनिया काफी बदली है? अगर हम रिवाइंड करके देखें तो हमें पता चलेगा कि कुछ भी सेम नहीं है। 25 साल में इतनी सारी चीज़ें बदली लेकिन वो सब बदलाव के बीच में हम इतने बिज़ी थे सब कुछ करने में कि हमने अपनी इस व्हाइट डे्रस को लास्ट प्रायोरिटी पर रख दिया। क्योंकि अचानक से बहुत सारी चीज़ें आईं थी ना हमारे पास। एक बच्चा होता है ना उसको उसके बर्थडे के दिन बहुत सारे खिलौने दे दो तो सबके चले जाने के बाद तुरंत पहले गिफ्ट खोलने लगेगा। और उन खिलौनों में चार-छह खिलौने तो अच्छे निकल जाते हैं अब आप उस बच्चे को कुछ भी बोले चाहे खाने को, पढऩे को, सोने को तो वो बच्चा कि नहीं मुझे खेलना है, खिलौना छोड़ेगा ही नहीं। क्योंकि उसे नये-नये खिलौने मिले थे।
25 साल से हम भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। टाइम पर सो जाओ, नहीं, मुझे खेलना है, खाना खा लो, साथ-साथ खेलना है। परिवार के साथ टाइम स्पेन्ड कर लो, नहीं, साथ में खिलौना साथ-साथ चल रहा है। तो ये 25 साल में हम अपने नये खिलौनों के साथ इतने इंगेज्ड़ हो गए थे कि हमारी अपनी प्युरिटी तो प्रायोरिटी लिस्ट पर आई ही नहीं। और इसीलिए बहुत सारे दाग लग गए। और हम ऐसे समय पर आकर पहुंच गए जहाँ हमारी खुशी एक क्राइसिस(संकट) बन चुकी है अब। खुश रहना कैसे है? हम उसके बारे में बात कर रहे हैं हर रोज़। मतलब जो चीज़ मेरी नैचुरल थी वो नैचुरल चीज़ ही क्या बनने लग गई? अननैचुरल। रात को नींद आना नैचुरल थी, अननैचुरल हो गई अब। बच्चों को पालना नैचुरल चीज़ थी अब डिफिकल्ट लग रही है। अपने ग्रैण्ड पैरेंट्स को पूछो बच्चे कितने थे? अगर सबके नाम अच्छे से याद हों तो वो भी अच्छी बात है। क्योंकि ज्वाइंट फैमिली रहती है ना! भाई के भी बच्चे, इसके भी बच्चे, उसके भी बच्चे। एक घर में इतने सारे बच्चे थे, ये हिस्ट्री नहीं है। एक घर में इतने बच्चे पैदा भी हुए, स्कूल भी गए, पढ़े भी, बड़े भी हो गए और उनके मात-पिता ने कभी नहीं बोला कि हमें तनाव है। साधन नहीं थे, कम्फर्ट्स नहीं थी, घर छोटे थे, टेक्नोलॉजी नहीं थी, किचन में कोई कम्फर्टेबल गैजेट नहीं था तो भी उन्होंने नहीं बोला कि हमें तनाव है।
आज एक या दो बच्चे गोल-गोल घूम रहे उनके सारा दिन। हम कहते मात-पिता बनना बहुत तनावपूर्ण है। अगर आप पैरेंटिंग को स्ट्रेसफुल बोलेंगे तो उस बच्चे को कौन-सी एनॅर्जी के साथ पाल रहे? स्ट्रेस की, स्ट्रेस की एनर्जी से पाल रहे। क्योंकि हम जो कह रहे हैं ये काम जो मेरे लाइफ का ये बड़ा स्ट्रेसफुल है। तो उस काम को कौन-सी एनर्जी जाएगी? तो ये सब क्यों हुआ, क्योंकि 25 साल में हमारे पास इतनी सारी चीज़ें आ गई कि हमारा फोकस सिर्फ काम, और काम, और काम, हम और आगे, और आगे, और आगे। पर किसी से कुछ बोलो कि क्यों इतना काम कर रहे हो, क्या चाहिए एक्जैक्टली? तो कहते अपने और अपने परिवार के लिए खुशी। लेकिन उन्होंने सोचा जितना हम कमा लेंगे उतना हम खरीद लेंगे और जितना हम खरीद लेंगे उतना हमारे घर में खुशी आ जाएगी। और जितना खरीदते गए, खरीदते गए, खुशी से तो हम दूर जाते जा रहे हैं।
पांच साल पहले जब हम इसी हॉल में मिले होंगे तो हम स्ट्रेस की बात करते थे और आज अगर हम पांच साल बाद मिले हैं तो दुनिया में डिप्रेशन फैल चुका है। अगर वो हम पांच साल पहले भी रूक के चेंज कर लेते तो कम से कम हम डिप्रेशन तक न पहुंचते। आज भी हमारे पास टाइम है कि हम रूक के, चेक करके, चेंज कर लें। अगर हमने आज भी नहीं किया तो बहुत जल्दी डिप्रेशन एक नार्मल चीज़ बन जाएगी। और इसीलिए वो भोगी जीवन से योगी जीवन पर शिफ्ट करने की बहुत-बहुत ज़रूरत है। आप सब, हम वो जेनरेशन हैं जो 25 साल पहले वाली जीवन देखी है। लेकिन उनका क्या होगा जो पैदा ही खिलौनों के साथ हुए हैं। अब आज से10 साल पहले की जीवन विज़ुअलाइज़ कीजिए। ये टाइम है रूकने का, रूक कर चेंज करने का। भागना बन्द करें। ऐसा नहीं कि सब भाग रहे हैं हम भी भाग रहे हैं, बिना जाने कि सब सही रास्ते पर चल रहे कि नहीं चल रहे! वो ये कर रहा है तो मुझे भी ये करना है। रूकें, चेक करें और चेंज करें। जीवन के रास्ते पर प्यार से, ध्यान से चलें। भागना एक एडिक्शन बन जाती है, अचीवमेंट एक एडिक्शन बन जाती है। और अचीव करने में कुछ रॉन्ग नहीं है लेकिन न ध्यान रखते हुए अचीव करिये। और जो ध्यान रखते हुए अचीव करते हैं वो कोई कम नहीं अचीव करते, अपनी क्षमता से ज्य़ादा ही अचीव करते हैं।


