मुख पृष्ठब्र.कु. उषासमय की फाइनल समाप्ति हम बच्चों को ही तो करनी है…

समय की फाइनल समाप्ति हम बच्चों को ही तो करनी है…

क्या होगा ये सोचने के बजाए… मेरी स्थिति कैसी है ये सोचें…

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि पहली तैयारी जो मुझे करनी है क्या मैंने अपनी मन्सा को एकदम हल्का किया है, व्यर्थ और निगेटिव से मुक्त किया है? क्योंकि यही हलचल अगर होगी और वही मेरी अंतिम घड़ी होगी तो किस गति को प्राप्त करेंगे! अब आगे पढ़ेंगे…

बाबा ने बहुत सुन्दर बात कही कि कई बार आप समझते कि मैं बहुत ठीक हूँ, मेरी अवस्था बहुत अच्छी है और कोई ऐसे संस्कार पर आपने ध्यान नहीं दिया है और अचानक उस समय वही हलचल मचना शुरू हो जाए मन के अन्दर, अपनी मन्सा के अन्दर, वह ऐसे उभरकर आएंगे कि आप उसको ठीक करने से पहले ही उस हलचल में ही शरीर छोडऩा पड़े। तो इसीलिए बहुत काल का ये अभ्यास चाहिए कि चाहे प्रकृति का कोई पेपर हो, कोई व्यक्ति की बात हो तो लेकिन वो देखते हुए, सुनते हुए भी मैं उससे कितनी डिटैच्ड हूँ, कितनी न्यारी-प्यारी हूँ। बाबा के प्यार में सहजता से मैं समा जाऊँ।

बाबा कई अव्यक्त मुरली के लास्ट में हम बच्चों को ड्रील कराते हैं कि एक सेकण्ड में विदेही बन जाओ, एक सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, फिर वापस बाबा कहें कि देह में आओ, फिर अचानक वापस अशरीरी बनने का अभ्यास करो। तो ये अभ्यास बाबा क्यों करा रहे हैं? बाबा का हम बच्चों से इतना प्यार है कि बाबा नहीं चाहता कि मेरा कोई भी बच्चा हलचल में शरीर छोड़े। उस समय ये नहीं कि क्या हो गया? ये संकल्प न हो, नहीं तो कौन-सी गति को प्राप्त करेंगे?

इसलिए पहला लक्ष्य जो बाबा ने कहा कि आप सबका पहला लक्ष्य है कि सूर्यवंशी बनना है और दूसरा लक्ष्य है बाप समान बनना तो ये दो लक्षण अपने आप में चेक करो, और अपनी तैयारी उस अनुसार करो। तो बाप समान बनने के लिए भी स्वयं में देखो कि क्या बाप के कदम पर कदम रख के चल रहे हैं। अमृतवेले से लेकर के रात्रि तक के लिए बाबा ने हर बात की श्रीमत हम बच्चों को दी है। तो जब हर बात की श्रीमत हमारे पास है यानी ब्रह्मा बाबा उस श्रीमत रूपी कदम पर कदम रख के चले हैं तो मुझे ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखकर चलना है, तभी तो बाप समान बनेंगे।

तो उसको भी बाबा ने इतना सूक्ष्म स्तर पर ले जाकर कहा कि बच्चे- जब आप सोचते हो, जो संकल्प उत्पन्न हुआ उस समय देखो कि क्या अगर ब्रह्मा बाबा होते तो ऐसा संकल्प बाबा का होता? बाबा का संकल्प कैसा होता था। जो बोल हम बोल रहे हैं, क्या ब्रह्मा बाबा ऐसा बोल निकालते थे, क्या ये कर्म ब्रह्मा बाप के समान होगा? तो ब्रह्मा बाप हमारे लिए सैम्पल हैं और उसके साथ अपने आपको भेंट करो, अपने संकल्प, बोल और कर्म को और चेक करो, उस अनुसार कि क्या मेरे संकल्प, बोल और कर्म ब्रह्मा बाप के समान हैं? तब कहेंगे कि हाँ हम बाप समान बनते जा रहे हैं।

तो अचानक के पेपर जब लेंगे बाबा। बाबा ने कहा कि एक घड़ी पहले भी मैं नहीं बताऊंगा कि पेपर आने वाला है, ये ड्रामा का नियम ही नहीं है कि घड़ी पहले भी किसी को बता दें कि ये पेपर अभी तेरे सामने आने वाला है, लेकिन बाबा कहें कि आप अपना पुरूषार्थ ऐसा करो जो आप सहजता से बाप समान बन जाओ।

तीसरा लक्ष्य जो बाबा ने दिया है हम बच्चों को, वह है अव्यक्त फरिश्ता बनना। उसी मुरली के अन्दर ये तीन लक्ष्य बाबा ने दिए थे। ब्रह्मा बाप समान बनने और अव्यक्त फरिश्ता बनने के लिए क्यों बाबा ने लक्ष्य हम सबके सामने रखा ताकि सहज पुरूषार्थी हो जाएं और दूसरा अव्यक्त फरिश्ता हम बच्चों को इसलिए बनना है ताकि समय की समाप्ति बाबा हमारे द्वारा कराये। जिस तरह बाबा ने कहा कि ब्रह्मा बाबा अव्यक्त बना। क्यों अव्यक्त बना? तो उससे सेवा की रफ्तार की तीव्र गति प्राप्त हुई जो देश-विदेश की सेवा आरम्भ हो गई और इतनी तीव्र गति रफ्तार मिली सेवा को तो उसको हम सभी सहजता से देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं।

इसलिए बाबा कहते कि ये लक्ष्य जो तुम बच्चों के सामने है कि मुझे अव्यक्त बनकर फरिश्ता बनना है। क्यों बनना है? क्योंकि समय की जो फाइनल समाप्ति है वो हम बच्चों की अव्यक्त स्थिति द्वारा होनी है। जैसे ब्रह्मा बाबा ने अव्यक्त स्थिति द्वारा सेवा की गति को तीव्र किया। ऐसे हम बच्चों की स्थिति द्वारा समय की समाप्ति और सम्पन्नता ये सहज होगा। तो ये फाइनल कार्य तो हमें करना है ना! उसके लिए भी हमें तैयार होना पड़ेगा अचानक के पेपर में।

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