मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यकुछ विशेष क्या करें…!!!

कुछ विशेष क्या करें…!!!

भगवान पढ़ाने आता है सवेरे-सवेरे, उसकी पढ़ाई पढऩे आयें, वो परमधाम से आता है क्या हम अपने घर से नहीं आ सकते सेवाकेन्द्र पर? अगर हम ठंडे ही रहेंगे कि हम घर पर ही सुन लेंगे, पढ़ लेंगे, टीवी पर देख लेंगे तो आप सुस्ती के शिकार रहेंगे, आप आलस के शिकार रहेंगे। और आलस भी एक बहुत बड़ा मनोविकार होता है। जो मनुष्य को पूरा ठंडा कर देता है, जो उसको कुछ करने नहीं देता है। तो रोज़ मुरली की क्लास में मुरली का आनंद लेने आ जाओ।

यदि आपके मन में लास्ट सो फास्ट जाने की तीव्र उत्कंठा है तो पूछ लें अपने से कि क्या सचमुच हम भगवान के पास आकर कुछ विशेष करना चाहते हैं? रिटर्न जर्नी का समय है हम खाली हाथ जाना नहीं चाहते, हम तो भरपूर होकर भगवान से सर्व खज़ाने लेकर, और संसार को देते हुए जाना चाहते हैं। पुण्यों की पूंजी इतनी भरकर जाना चाहते हैं कि जन्म-जन्म हमारे काम आये। अपने भाग्य को इतना महान बनाना चाहते हैं कि भाग्य की कमी 84 जन्मों में कभी भी न पड़े। अपने संस्कारों को इतना डिवाइन बनाना चाहते हैं कि जन्म-जन्म हमारे पास रॉयल संस्कार रहें। अपनी बुद्धि को इतना श्रेष्ठ, पवित्र और दिव्य बनाना चाहते हैं कि जन्म-जन्म हमारे पास श्रेष्ठ बुद्धि का वरदान रहे।

पूछ लो कि सचमुच क्या हम ऐसा चाहते हैं? या अपने में ही व्यस्त हो गये हैं? धन कमाना है, बच्चों की पालना करनी है, उनको पढ़ाना है तो सभी को एक विशेष चीज़ पर और ध्यान देना है, हम बहुत सारी चीज़ें पहले कह आये हैं अब पढ़ाई पर आपका ध्यान खिंचाना चाह रहे हैं। भगवान स्वयं पढ़ाने आ गया है, उसकी पढ़ाई क्या कर रही है इसको भिन्न-भिन्न नाम दिए जा सकते हैं। ये ईश्वरीय ज्ञान हमारे चित्त के अंधकार को दूर करने वाला है। ये ईश्वरीय ज्ञान हमें राह दिखाता है, मंजि़ल दिखाता है। ये ईश्वरीय ज्ञान जीवन जीना सिखाने वाला है। इस ईश्वरीय ज्ञान द्वारा हम अपने विघ्न और बाधाओं को सहज ही पार कर सकते हैं। ईश्वरीय ज्ञान से ही हम भगवान के समीप जा सकते हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति का वरदान ले सकते हैं। अपनी बुद्धि को डिवाइन बना सकते हैं। सारा खेल ज्ञान का ही तो होता है दुनिया में।

अब बिज़नेसमैन है, उसके पास अपने बिज़नेस का कितना ज्ञान है। उस पर आपकी सफलता निर्भर करेगी। आप स्टूडेंट हैं आपको अपने सिलेबस का कितना ज्ञान है ये आपके अंक इस पर डिपेंड करेगा। हर फील्ड में पढ़ाई मोस्ट इम्र्पोटेंट। तो भगवान पढ़ाने आता है सवेरे-सवेरे, उसकी पढ़ाई पढऩे आयें, वो परमधाम से आता है हम अपने घर से नहीं आ सकते सेवाकेन्द्र पर? अगर हम ठंडे ही रहेंगे कि हम घर पर ही सुन लेंगे, पढ़ लेंगे, टीवी पर देख लेंगे तो आप सुस्ती के शिकार रहेंगे, आप आलस के शिकार रहेंगे। और आलस भी एक बहुत बड़ा मनोविकार होता है। जो मनुष्य को पूरा ठंडा कर देता है, जो उसको कुछ करने नहीं देता है।

तो रोज़ मुरली की क्लास में मुरली का आनंद लेने आ जाओ। और मुरली सुनाने वालों का भी काम है वे मुरली में रस भरें। वे इस ढंग से सुनायें कि मानो भगवान अपने बच्चों से बात कर रहा है। वो कुछ अच्छी बातें सिखा रहा है। रस भर दें, क्लास में सुन्दर वायब्रेशन्स हो जायें। सबको मुरली सुनने का मन करे, सब मुरली सुनकर उमंग-उत्साह में आ जायें। उनके विचार बदल जायें प्रतिदिन। सुनाने वाले तो निश्चित रूप से सब अलग-अलग होंगे। पर हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि ज्ञान के द्वारा सबसे पहले हमें अपने विचारों को महान बनाना है। ऐसा न हो कि इच्छा तो हो फास्ट जाने की और विचार हों वही पुराने घिसे-पीटे। पास्ट से जो कुछ विचार लेकर आ रहे हैं वो ही कंटिन्यू हैं। उनमें परिवर्तन कुछ भी नहीं आया। क्योंकि विचार परिवर्तन ही तो जीवन परिवर्तन है। विचार बदल दो आपका जीवन बदल जायेगा। विचार बदल दो आपका संसार बदल जायेगा।

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