क्या होगा ये सोचने के बजाए… मेरी स्थिति कैसी है ये सोचें…
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जैसे ब्रह्मा बाबा ने अव्यक्त स्थिति द्वारा सेवा की गति को तीव्र किया। ऐसे हम बच्चों की स्थिति द्वारा समय की समाप्ति और सम्पन्नता ये सहज होगा। तो ये फाइनल कार्य तो हमें करना है ना! उसके लिए भी हमें तैयार होना पड़ेगा अचानक के पेपर में। अब आगे पढ़ेंगे…
अच्छा मेरी तैयारी में क्या-क्या तैयारी करनी है मुझे? पहली तैयारी जो हमें करनी है वो है कि कोई भी बात सामने आए तो क्या एक सेकण्ड में हम फुल स्टॉप लगा सकते हैं। और फुल स्टॅाप तभी लगा सकते हैं जब मेरे पास फुल स्टॉक पॉजि़टिविटी का होगा। अगर मेरे पास फुल स्टॉक नहीं है पॉजि़टिविटी का, सकारात्मकता का तो फुल स्टॉप लगाने के बाद भी वापस क्यों, क्या और कैसे ये क्वेश्चन आरम्भ हो जाएंगे।
तो इसीलिए कोई भी क्वेश्चन को समाप्त करने के लिए मेरे पास ज्ञान रत्नों का खज़ाना इतना चाहिए, शक्तियों का खज़ाना इतना चाहिए, सद्गुणों का खज़ाना इतना चाहिए जो सहजता से फुल स्टॉप लगा करके मैं शक्तिस्वरूप स्थिति में स्थित हो सकूं। इसको कहा जाता है- एवररेडी। बातें आयेंगी लास्ट तक भी क्योंकि अचानक और एवररेडी के साथ एक और बात जुड़ती है कि हर चीज़ अति में जानी है, तो ये अति साथ में जुडऩा है।
जैसे बाबा ने कहा कि विकार भी फुल फोर्स में अन्त में सामने आयेंगे, बातें भी फुल फोर्स में आपके सामने आयेंगी। तो जब बातें आनी हैं, परिस्थिति फुल फोर्स में आनी है क्योंकि माया अपनी अन्तिम दाव चलेगी कि नहीं चलेगी! तो अति में हर चीज़ जानी है और अगर अति में जानी है तो वो बातें आयेंगी लेकिन क्या एक सेकण्ड में फुल स्टॉप लगा करके, सर्व शक्ति सम्पन्न हो करके मैं शक्ति स्वरूप स्थिति में, सद्गुण जो मेरे पास हैं उससे शुभभावना, शुभकामना निरन्तर हर आत्मा के प्रति प्रवाहित करूं, प्रकृति के प्रति प्रवाहित करूं ऐसी मेरी तैयारी है? तो फुल स्टॉप लगाने के लिए फुल स्टॉक मेरे पास जमा होना चाहिए। तभी तो कहेंगे कि हाँ, हम तैयार हैं। तो बाबा हमेशा कहते हैं कि तीन खाते जमा होने चाहिए। कौन-से तीन खाते जमा होने चाहिए?
पहला खाता जमा होना चाहिए स्व-पुरुषार्थ द्वारा प्रालब्ध का खाता। इतना मेरा स्व पुरुषार्थ हो, स्वयं के ऊपर इतना अधिकार हो मेरा, हर कर्मेंद्रियों के ऊपर इतना अधिकार हो कि हर कर्मेंद्रियजीत हो, मायाजीत हो, निद्राजीत हो। तब कहेंगे कि मेरा जमा का खाता बढ़ता जा रहा है स्व-पुरुषार्थ से। तो ऐसी जीत अवस्था क्योंकि बाबा कहते जहाँ जीत, वहाँ जन्म। आपका जन्म वहाँ होगा जितनी आपने जीत पाई है। तो प्रकृतिजीत, मायाजीत, कर्मेंद्रियजीत, निद्राजीत और समय के ऊपर भी विजय। तो ये जीत है! तब वहाँ, राजाई घराने में हमारा जन्म होगा।
दूसरा- पुण्य का खाता। इतना श्रेष्ठ कर्म करो कि जो पुण्य का खाता जमा हो। पुण्य का खाता कहाँ काम आएगा? द्वापरयुग में, जैसे ही सतयुग-त्रेतायुग का प्रालब्ध पूरा हुआ वैसे ही द्वापरयुग में जन्म होगा। तो जितना यहाँ सेवा करके पुण्य कर्म किया है तो उस पुण्य के आधार से, क्योंकि वहाँ जाने के बाद एकदम से मैं पुण्य कर्म करना चालू कर दूं, ऐसा तो नहीं होगा! त्रेतायुग से ही देवताएं नीचे उतरते हैं तो हरेक वैसे ही सम्पन्न अवस्था में होंगे। क्योंकि बाबा कई बार मुरली में कहते हैं सोमनाथ का मंदिर इतना हीरे-जवाहरातों से बनाया तो सोचो उन लोगों के पास स्वयं के लिए कितना धन होगा! लेकिन उस स्टेज में, उस राजाई घराने में जन्म लेने के लिए संगमयुग पर उतना पुण्य कर्म किया होना चाहिए। इसलिए बाबा कई बार कहते हैं कि स्व-पुरुषार्थ और सेवा अन्त तक करना है। स्व-पुरुषार्थ सतयुग-त्रेतायुग में काम आएगा, एक-एक जन्म को फाइनलाइज्ड़ करेंगे। लेकिन जो पुण्य किया है, सेवा किया है हमने तो सेवा द्वारा जो पुण्य का खाता जमा किया हुआ है वो द्वापर से काम में आएगा। उस अनुसार ही उस क्वालिटी का जन्म हम प्राप्त करते हैं।
तीसरा है दुआओं का खाता। जो बाबा कहते हैं कि बच्चे दुआएं देते जाओ, दुआएं लेते जाओ। तो ये दुआओं का खाता कहाँ काम आएगा? अन्तिम पेपर का सामना करने के लिए। बातें तो आयेंगी, पेपर तो आयेंगे लेकिन जिसके पास दुआओं का खाता जमा बहुत है तो क्या होगा? बातें मक्खन से बाल की तरह निकल जायेंगी। दुआएं जैसे हमारे लिए कवच हो जाएगा। इसीलिए बाबा कहते कि बच्चे दुआएं भी खूब कमाओ। और दुआएं कैसे कमाते हैं जब आप किसी भी आत्मा को सुख देते हैं, खुशी देते हैं तो उसके अन्दर उस वक्त दुआएं ही निकलती हैं कि भगवान आपको सदा सुखी रखे, भगवान आपको सदा खुश रखे। लेकिन किसके लिए जिसको हमने सुख दिया है, वो आत्मा जब उस सुख की अनुभूति से दुआ देती है तब वो दुआ लगती है। तो ये तीन खाते मेरे में जमा हैं, ये अपने में देखो।


