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खुशी के लिए इन दो शब्द के मर्म को जानें…

एक्सेप्ट और एक्सपेक्ट। ये दो शब्द जीवन के मायने बदल देते। जब इसे सही व यथार्थ मर्म सहित जीवन में एप्लाई करते, तब कोई वजह नहीं रह जाती, नाखुश होने की।

जीवन आनंदमय बनाने के लिए दो शब्द के मायने बहुत महत्वपूर्ण हैं। दो शब्द के मर्म की महीनता को समझ लेने पर जीवन सुखमय बन जाएगा।

एक है एक्सेप्ट(Accept) और दूसरा है एक्सपेक्ट(Expect)। हम इससे समझते हैं कैसे हमारे जीवन में इनका गहरा प्रभाव है।

एक बार हम आनंद भाई के घर गए तो वे मेडिटेशन करके अपनी पत्नी पर गुस्सा कर रहे थे। हमने कहा क्या हुआ अभी तो आप मेडिटेशन करके आये। तो आनंद भाई ने कहा कि जब भी मैं मेडिटेशन करने बैठता हूँ, उसी वक्त मेरी पत्नी अपनी सिस्टर को फोन करती है। इतने में बाहर सब्जी बेचने वाले का ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ आ रहा था कि ‘सब्जी ले लो…’। तो हमने कहा कि सब्जी वाले की आवाज़ तो आपकी पत्नी के फोन के आवाज़ से ज्य़ादा है। तो सब्जी वाला आवाज़ तो करेगा ही सब्जी बेचने के लिए, तो आपको उनपर गुस्सा नहीं आया? पत्नी के फोन की आवाज़ कम थी फिर भी उसपर आपको गुस्सा आया, वहीं सब्जी वाले पर गुस्सा क्यों नहीं? क्योंकि हमने पत्नी से एक्सपेक्ट किया कि वो मेडिटेशन के वक्त फोन ना करे, डिस्टर्ब ना करे। जबकि सब्जी वाले को हमने एक्सेप्ट किया।

यानी कि पत्नी मेडिटेशन के वक्त धीरे से भी बात न करे यह अपेक्षा रखी। सब्जी वाले को हमने स्वीकार किया। यहाँ समझने की बात ये है व गुस्सा आने की वजह यह कि हम पत्नी से अपेक्षा करते हैं कि वो उस वक्त पर बात न करे जब मैं मेडिटेशन करता हूँ। हम दूसरों से जो अपेक्षा रखते हैं उसकी वजह से नाखुश होते हैं। और अपेक्षा पूरी न होने के बाद जो मन में निगेटिव विचार चलने लगते हैं उससे खुशी गायब होती है।

जब शादी होती है तो हम दोनों में कुछ बातें तो सेम होंगी और कुछ बातें भिन्न होंगी, अलग होंगी। मतलब कि दोनों के संस्कार और स्वभाव अलग होंगे ना! जैसे, आत्माएं ऑन जर्नी हैं ना! अभी आपके साथ उनका रोल ये है, पीछे आत्मा दूसरा शरीर छोड़ के आई है ना! तो हम भी पीछे कई जन्मों से शरीर छोड़ते-छोड़ते, मुसाफिरी पूरी करते-करते आज यहाँ इकट्ठे हुए हैं, इस रोल में। लेकिन दोनों के संस्कार अलग-अलग होंगे ना! ये हमें स्वीकारना होगा। दोनों का वॉल्यूम और स्वभाव अलग-अलग होगा ना!

चलिए और एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हैं, मान लो आपकी पत्नी ने आपके लिए बहुत अच्छा स्वादिष्ट नाश्ता बनाया और आप टेबल पर खा रहे हैं उतने में पत्नी ने कहा कि नाश्ता कैसा है! ठीक है ना! अच्छा बना है ना! तो आपने कहा कि है तो बहुत अच्छा लेकिन मेरी माँ के हाथ से बनाया हुआ नाश्ता इससे भी अच्छा होता है। बस इतना कहकर वो तो दफ्तर चले गए। यहाँ पत्नी ने ये एक्सपेक्ट(अपेक्षा) रखी थी कि मुझे एप्रीशिएट करेंगे कि मैंने कितना अच्छा नाश्ता बनाया है। एप्रीशिएट करना तो दूर कुछ बोला तक भी नहीं और चले गये। इस अपेक्षित रेसपॉन्ड की आशा की पूर्ति न होने पर सारा दिन उनके माइंड में वही बातें चलती रही, मैं कितना भी अच्छा भोजन बनाऊं उनको कदर ही नहीं। कम से कम ये तो बोलते कि आप तो बहुत अच्छा बनाती हो। सारा दिन यही विचार चलते रहे। क्योंकि अपेक्षा जो रखी थी। ये जो सारे दिन में विचार चले उसकी जो रिकॉर्डिंग हुई उसी वजह से उनकी खुशी चली गई। कारण कि अपेक्षा रखी।

आप समझ गए होंगे ये दो शब्द उनके और हमारे जीवन में कितने गहरे ताल्लुक रखते हैं। सिर्फ एक मात्रा का ही फर्कहै। इन महीनता के मर्म को सही मायने में न समझने के कारण हम कितना अपना नुकसान कर बैठते हैं। और न सिर्फ वर्तमान अपितु भविष्य भी खराब कर देते हैं। अगर हम इसे एक्सेप्ट कर लेते कि उनके कहने ना कहने से नाखुश हो जायें, बल्कि मैंने जो किया, मेरा रोल मैंने बहुत अच्छा किया उसपर यकीन करते तो खुशी गायब नहीं होती। क्योंकि आज हम इस शरीर में हैं, कल इसे छोड़ दूसरा शरीर धारण करेंगे। और हम यहाँ से जो रिकॉर्डिंग करके जायेंगे वो आत्मा के साथ जायेगा। च्वॉइस हमारे पास है तो हम खुशी के साथ उसे स्वीकार करें कि हम दोनों अलग-अलग हैं, स्वभाव-संस्कार अलग-अलग हैं, उसे स्वीकार करें। और जो दूसरे से आशा-अपेक्षा रखते हैं उन पर हम निर्भरता ना रखें। उसे सहजता से स्वीकार करें। ये चयन हमारे पास है कि हम दूसरे के व्यवहार को किस नज़रिये से लेते हैं। दूसरे की क्रिया व प्रतिक्रिया की वजह से हमारे अन्दर उत्पन्न होने वाले मन के विचार पर खुशी या नाखुशी का आधार तो नहीं है? जो रेसपॉन्ड दूसरे करते हैं उसे हम किस भाव से लेते हैं वो बड़ा महत्वपूर्ण है और उनके रेसपॉन्ड के बाद हमारे मन में उत्पन्न प्रतिक्रिया के रूप में चलने वाले विचार पर निर्भर है। हम दोनों अलग हैं तो प्रतिक्रिया भी अपेक्षाकृत अलग होगी ना! ये हमें स्वीकार करना ही होगा। यही वास्तविकता है खुशी को बनाए रखने के लिए।

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