मुख पृष्ठब्र.कु. उषामन को समझ गए तो उसे चलाना आसान हो जाएगा…

मन को समझ गए तो उसे चलाना आसान हो जाएगा…

मन का सिर्फ सोचने का ही कार्य नहीं है लेकिन सोचने के साथ-साथ कुछ क्रियाएं भी मन की शक्ति की हैं, इसीलिए मन एक बहुत महत्वपूर्ण आत्मा का अंग कहो या आत्मा की सूक्ष्म शक्ति कहो। मन के ऊपर ही सबकुछ निर्भर करता है।

ये तो हम सभी जानते हैं कि हमें पॉजि़टिव थिंकिंग करनी चाहिए। जागृति हरेक के अन्दर है। परन्तु ये पॉजि़टिव थिंकिंग कौन करता है? कहाँ से होती है? और अगर पॉजि़टिव थिंकिंग नहीं चलती है तो उसका कारण क्या है? उसको खत्म करने की विधि क्या है?

आत्मा की तीन शक्तियां हैं- मन, बुद्धि और संस्कार। ये तीनों आत्मा के साथ ही शरीर में प्रवेश होती हैं और तीनों आत्मा के साथ ही इस शरीर से चली जाती हैं। मन क्या चीज़ है, मन है आत्मा की संकल्प शक्ति का दूसरा नाम, जो आध्यात्मिक शक्ति है हम सबके भीतर, जिसको आत्मा कहा। उसका स्थान है और उसका कार्य है विचार चलाना। जितने भी विचार चलाते हैं, मन के अन्दर ही चलते हैं और उन विचारों के आधार पर ही हमारी मानसिक स्थिति बनती है। मन के और भी कत्र्तव्य हैं, खाली सोचना नहीं है। हमारे भीतर जो भी फीलिंग्स आती हैं, महसूस जो भी हम कर सकते हैं, एक-एक विचारों को चाहे वो अच्छे विचार हों, चाहे बुरे विचार हों, वो महसूस भी मन करता है। विचारों को क्रियेट करना, जो रचनात्मकता है वो भी मन के अन्दर समाई हुई है। मन काफी कुछ इमेजिन भी कर सकता है, रचनात्मकता के साथ-साथ बहुत कुछ देख सकता है और उसके अन्दर इच्छा शक्ति समाई हुई है। जब भी मन के अन्दर इच्छा उत्पन्न होती है कि ये करें या ना करें, तो ये इच्छा शक्ति भी मन के पास ही है। स्मृति जो है वो भी हमारे मन के अन्दर ही है। जो याद्दाश्त है, कई बातों के जो पूर्व अनुभव हैं, उन अुनभवों को जब याद करने का प्रयत्न करते हैं, ये याद करने की भी मन की शक्ति है। और साथ ही साथ अनुभव करने की शक्ति भी मन के पास है। तो खाली मन का सोचने का ही कार्य नहीं है लेकिन सोचने के साथ-साथ कुछ क्रियाएं भी मन की शक्ति की है इसीलिए मन एक बहुत महत्वपूर्ण आत्मा का अंग कहो या आत्मा की सूक्ष्म शक्ति कहो। मन के ऊपर ही सबकुछ निर्भर करता है। तभी श्रीमद्भगवद् गीता में भी यही कहा कि आत्मा का शत्रु और मित्र अगर है तो वो मन है। जब मन मित्र बन जाता है तो मन अच्छे से अच्छे अनुभव करा देता है लेकिन जब वो नकारात्मक चिन्तन करके अपना शत्रु बन जाता है तब भी हम अपने आप में बहुत हीनता की भावना को महसूस करते हैं। जीवन में कभी-कभी डिप्रेस्ड हो जाते हैं, वो भी उसी कारण से। तो इसीलिए मन को मित्र बनाने की कला जिसको मॉर्डन लैंगवेज़ में कहा आर्ट ऑफ पॉजि़टिव थिंकिंग। सकारात्मक विचार करेंगे तो ज़रूर मन अपना मित्र बन जाएगा। वो मन एक तूफानी घोड़े के रूप में दर्शाया है। कई प्रकार की उपमाएं मन के लिए दी गई हैं। किसी ने कहा मन चंचल है, एक बन्दर के जैसा है। किसी ने कहा मन तूफानी घोड़े जैसा है, जिसको कन्ट्रोल करना बहुत मुश्किल है। किसी ने कहा एक तूफानी बच्चे जैसा है, चंचलता करता रहता है। ऐसी अनेक प्रकार की उपमाएं मन को दी गई हैं। लेकिन आज हम आपको एक बात बताते हैं कि मन बहुत सुन्दर चीज़ है। मन ना तो तूफानी घोड़ा है, ना तो चंचल बच्चा है और ना ही एक चंचल बन्दर है, जो उछल-कूद करता रहता है। अब वो उछल-कूद करता है, तूफान मचाता है वो इसलिए क्योंकि हमने मन को समझा नहीं है। जिस दिन हम मन को समझ जायें, उसकी शक्ति को समझ जायें, उसकी क्षमता को समझ जायें उसके बाद उस मन को चलाना आसान हो जाता है। सिर्फ उसको क्या चाहिए, ये समझ लेना चाहिए। जैसे एक तूफानी बच्चा है, खूब चंचलता करता है, तूफान मचाता है, पड़ोसी उसको दस चीज़ें देता है तो भी वो मानता नहीं और भी चीज़ें उठा-उठाकर फेंकता है। लेकिन जब उसकी माँ आती है तो उसको पता है कि इस बच्चे को इस वक्त क्या चाहिए। ये क्यों तूफान मचा रहा है, उसको वही चीज़ उठाकर दे देती है, उसकी चंचलता समाप्त हो जाती है और बच्चा शांत हो जाता है। क्योंकि माँ ने बच्चे की साइकॉलोजी को समझा है। इसलिए उसको वही चीज़ मिल जाने से वो शांत हो जाता है। मन सुमन बन जाता है, श्रेष्ठ बन जाता है। इसलिए हमें पहले अपने मन को समझना होगा कि वास्तव में उसे चाहिए क्या! जब ये समझ जायेंगे तो उसको चलाना आसान हो जायेगा।

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