मन की बातें

प्रश्न : सेना में पद से प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है इसके लिए कुछ अनकही सी, अनजानी सी एक होड़ लगी रहती है, इस घुड़दौड से कैसे बचा जाये? इससे बचने के दौरान कार्यक्षमता पर, कुशलता पर, मोटिवेशन पर कोई असर न पड़े ऐसा हम क्या करें?

उत्तर : ये तो ठीक है कि हर व्यक्ति अपना प्रमोशन चाहता है और पीछे जैसे हुआ था मिलिट्री में तो ऑफिसर्स को प्रमोट कर ही नहीं रहे थे। जो मेजर थे वो मेजर ही रह गये, जो लेफ्टिनेंट कर्नल थे वो लेफ्टिनेंट कर्नल ही रह गये। तो जब नई सरकार आई बीजेपी की तो उन्होंने उन्हें अवसर दिया सेना में जाने का, तो लोगों का एक इन्टे्रस्ट पैदा हुआ। नहीं तो सोचते हैं कि हम तो वहीं के वहीं रह जाते हैं। तो प्रमोशन होना तो बहुत अच्छी चीज़ है। लेकिन हर व्यक्ति को अपनी जो योग्यताएं हैं, अपनी जो स्किल है, अपनी एडमिनिस्टे्रटिव कला है, उसको बढ़ाते चलना चाहिए, व्यवहार भी सुन्दर रखना चाहिए। अपने साथियों से भी, अपने बड़ों से भी। एक व्यवहार जो हमारा है, एक एप्रीसिएशन है एक-दूसरे का, ये बहुत अच्छा माहौल बनाता है। इससे क्या होगा, प्रमोशन भी आपकी होगी और आपको जो भागदौड़ से एक टेन्शन-सी रहती है वो भी समाप्त हो जायेगी और आप बहुत रिलेक्स लाइफ जियेंगे। अब आप मेडिटेशन प्रारम्भ कर दें। सॉल कॉन्शियसनेस की प्रैक्टिस प्रारम्भ कर दें। और सवेरे उठकर बहुत सुन्दर संकल्पों से अपने को चार्ज किया करें। ये मैं बहुत समय से सीखा रहा हूँ और आपको बहुत डिटेल में सीखना हो तो यूट्यूब पर मेरे नाम से जो चैनल है वो खोलेंगे तो ‘श्रेष्ठ विचार सुखी जीवन का आधार’ ये आपको हैडिंग मिलेगा उसमें सब्कॉन्शियस माइंड का डिटेल नॉलेज है। श्रेष्ठ विचार सुखी जीवन का आधार इसकी आप डिटेल स्टडी कर लेंगे। डिटेल माना दस-दस मिनट के लेक्चर हैं, आपको सुनने में मज़ा आयेगा, कभी भी आप सुन लें। तो सवेरे उठकर वे संकल्प करेंगे जो आप चाहते हैं। लेकिन एक चीज़ हमेशा ध्यान रखनी है कि एक ऊंचा टार्गेट रखें कि मुझे इस रैंक तक पहुंचना है। उसके लिए जो प्रयास है, या आपको एग्ज़ाम देना है, वो आप करते रहें। लेकिन मान लो वो आपको न मिले तो हल्के रहें, एक्सेप्ट करें, इसी में कल्याण है। इसी में हम खूब काम करेंगे। इसी में जि़म्मेदारियों से हम काम करेंगे, तो आप बहुत सुखी रहेंगे। कभी-कभी क्या होता है मनुष्य की एक्सपेक्टेशन्स पूरी नहीं हुई बहुत परेशान, बहुत निराश, कई-कई लोग तो सुसाइड ही कर लेते हैं। अरे भाई जीवन कितना इम्र्पोटेंट है आपके परिवार हैं, आपके बच्चे हैं आपके पीछे। आप एक प्रमोशन के लिए उन सबको रोता छोड़कर जा रहे हो, ये तो इमोशनल व्यक्ति की निशानी है। हमें इतना इमोशनल नहीं होना चाहिए। हमें बहुत स्ट्रॉन्ग बनना है। इमोश्नल भी हों और आगे बढऩे का पूरा प्रयास भी करें लेकिन जो कुछ मिले उसको एक्सेप्ट करके एन्जॉय भी करें। ये अपनी मेंटेलिटी बना लें।

प्रश्न : ये जो मेडिटेशन हमें सिखाया गया, क्या ये मेडिटेशन सेल्फ रियलाइज़ेशन प्रोसेस है और क्या ये रिलेक्सेशन कंसंटे्रशन या सेल्फ हिपनोसिस जैसा ही है या उससे अलग है? क्या डिफ्रेन्स है?

उत्तर : देखिए सेल्फ हिपनोसिस इसको नहीं कहा जाता, लेकिन सेल्फ सजेशन तो इसमें होते ही हैं इसीलिए कई लोग तो इसे हिपनोटिस ही समझ लेते हैं। ये वो नहीं है, ये है सॉल की कॉन्शियस में आ जाना। हम हैं तो रूह लेकिन हमने अपने आप को बॉडी मान लिया, बॉडी कॉन्शियस में आ गये, इसलिए मनोविकार बढ़ गए, इसलिए दु:ख बढ़ गए, अहंकार बढ़ गया, क्रोध बढ़ गया, इस राजयोग का लक्ष्य होता है हमें अपनी कॉन्शियसनेस को बदलना है। जो रियल कॉन्शियसनेस है, मैं आत्मा हूँ, मैं रूह हूँ, रूहानी कॉन्शियसनेस में आना, इसके लिए हमें विचारों की कंसंटे्रशन भी चाहिए और इससे सेल्फ रियलाइज़ेशन तो हो ही जाएगा। सेल्फ पर कंसंट्रेट कर रहे, सेल्फ रियलाइज़ेशन का अर्थ भी लोग नहीं जानते। बस इतना ही कि सेल्फ रियलाज़ेशन है, इतना ही जानते हैं। लेकिन सेल्फ के अन्दर जो डीप साइलेन्स है उसकी अनुभूति, स्वयं के अन्दर जो गहरी प्युरिटी है उसकी अनुभूति, स्वयं के अन्दर जो बहुत ज्य़ादा शक्तियां छुपी हुई हैं उनकी अनुभूति, इसको सेल्फ रियलाइज़ेशन कहते हैं। जैसे-जैसे मेडिटेशन की प्रैक्टिस होगी वैसे-वैसे तेजी से होता जाएगा।

प्रश्न : यदि हम ईश्वर के अंश हैं तो हमें सेल्फ रियलाइज़ेशन में या उस डिवाइन से कनेक्ट होने में इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती है?

उत्तर : देखिए हम उसके अंश नहीं हैं। हम उसके बच्चे हैं। अंश में तो वही क्वालिटी होती है ना जो मूल चीज़ में होती है। अब मान लो सोने का एक पीस है आपके पास 50ग्राम का, अब आपने उसमें से एक अंश निकाल लिया, 10ग्राम का, तो जो क्वालिटी बाकी सोने में है वही तो दस ग्राम में भी होगी ना! 1 ग्राम भी जो सोना लिया उसमें भी वही क्वालिटीज़ होंगी, प्रॉपर्टीज़ होंगी जो पूरे में है। तो हम भगवान के अंश नहीं, भगवान कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसको अंश किया जा सके। हम उसके बच्चे हैं। आत्माओं का एक अलग एक्सिटेंस(अस्तित्व) है पूरा ही, हमारे में भी वो क्वालिटीज़ हैं जो हमारे परमपिता में हैं। लेकिन वो सब खत्म कर दी हैं हमने। जैसे हमारे अन्दर बहुत शांति थी लेकिन हमने मनोविकारों के वश हो उन्हें समाप्त कर दिया। मैं आत्मा आनंद स्वरूप थी, हमने वो आनंद नष्ट कर दिया, संसार की इच्छाओं के पीछे भागकर। अब हम उसे जागृत कर रहे हैं अपने को रिमाइंड कराके कि मैं आनंद स्वरूप हूँ। ताकि वो आनंद फिर से जो दब गया है, छुप गया है, फिर से एक्टिव हो जाए, हमारा जीवन आनंदित हो जाए। हम अंश नहीं हैं। क्योंकि हमने अपनी इच्छाओं को बहुत भगा दिया है। क्योंकि हमने मन को बहुत भटका दिया है। ये हमने भटकाया है, ये आपे ही नहीं भटका है। इसलिए हमें उसमें मेहनत लग रही है लेकिन प्रैक्टिस की जाएगी, कुछ स्टडी और अच्छी की जाएगी क्योंकि सात दिन का कोर्स हो जाना कोई कम्पलीट नॉलेज नहीं है। ये तो एडमिशन लिया है और आगे अच्छी स्टडी करेंगे। अपने मन को कैसे शांत किया जाए, अपने मन को कैसे एकाग्र किया जाए। प्युरिटी ऑफ माइंड को कैसे बढ़ाया जाए, अपने एटीट्यूड को कैसे अच्छा किया जाए, तो फिर ये सब इज़ी होगा। तब हम ऑटोमेटिकली आगे बढ़ेंगे।

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