मुख पृष्ठदादी जीदादी हृदयमोहिनी जीलक्ष्य के साथ लक्षण भी प्रैक्टिल में धारण हों

लक्ष्य के साथ लक्षण भी प्रैक्टिल में धारण हों

समय अनुसार अभी मनन से भी ऊपर लवलीन अवस्था का अनुभव करना है। यह लवलीन अवस्था सभी समस्याओं को समाप्त कर देगी। अगर प्यार में लीन हो गये तो नो प्रॉब्लम। तो जब भी कोई बात आवे तो जो गहरे अनुभव हैं उनमें समा जाओ। जो अन्तर्मुखी रहते हैं वह शारीरिक भान से जैसे आउट हैं फिर माया से युद्ध करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। संगठित योग में एक-दो के वायब्रेशन भी मिलते हैं इसलिए योग की जो भिन्न-भिन्न स्टेजेस हैं, उस एक-एक स्टेज का अनुभव करो। यहाँ का यह अनुभव वहाँ भी बहुत सहयोग देगा।

तो एक है वर्णन करना, दूसरा है मगन रहना, तीसरा है एकदम उस स्वरूप में खो जाना। तो इसके ऊपर बार-बार दृढ़ता का स्टैम्प लगाते रहो तो आपकी यह नेचर नैचुरल हो जाएगी क्योंकि हम ही तो अनुभव के अधिकारी हैं। दृढ़ संकल्प किया कि अशरीरी हो जाएं, तो अनुभव होना शुरू हो जाए। कभी सोचें कि बीजरूप अवस्था का अनुभव करना चाहिए, तो वो भी सहज हो जाएगा, सिर्फ दृढ़ता की चाबी सौगात रूप में अपने साथ रखना। कुछ भी हो करना ही है, बनना ही है, यह हमारा लक्ष्य हो। जो लक्ष्य है अब उस लक्ष्य को लक्षण में लाना है। लक्ष्य और लक्षण एक हो। जो बाबा ने लक्ष्य दिया है वही लक्षण प्रैक्टिकल में धारण रहे तो हम सभी बाबा के समान सहज ही बन सकते हैं। हम बाबा के दिल के तख्तनशीन बच्चे ज़रूर बाबा समान बनेंगे ही। छोटी-मोटी बातें तो आयेंगी। समय प्रति समय, समय भी पेपर लेगा, माया भी पेपर लेगी। लेकिन हमारे पास अपनी शक्तियों के शस्त्र कितने हैं? अगर माया किसी भी रूप से आये तो हमारी जो शक्तियां हैं वो किसलिए हैं? समय पर यूज़ करने के लिए ही हैं। तो सदा यह लक्ष्य रखो कि मुझे बाबा समान बनना ही है और हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेगा, हर कल्प में हम बने हैं इसलिए कोई बड़ी बात नहीं है, सिर्फ इसे स्मृति में रिपीट करना है, जो कल्प पहले किया है वह हम करेंगे।

तो बाबा के लव में लीन रहना और लव का अनुभव करना वो अलग चीज़ है। लीन हो जाते हैं तो सबसे दूर मायाजीत, प्रकृतिजीत, स्वभावजीत, एक-दो में ज़रा भी खिटखिट आ ही नहीं सकती है। यह मगन अवस्था, लवलीन अवस्था अर्थात् बाबा के लव में लीन हो जाना। जो बाहर की कोई भी आकर्षण हमको आकर्षित नहीं कर सकती है। लव तो हम सबका है, लव के बिना ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी बन करके चल ही नहीं सकते हैं। लेकिन लगन में मगन अर्थात् लवलीन रहें तो उसमें कोई भी शक्ति की कमी नहीं है। उसमें सुख-शान्ति की अनुभूति, पवित्रता, आनंद और प्यार की अनुभूति समाई हुई रहती है। तो लवलीन अवस्था के अनुभव में आ जाता है। जो लवलीन होता है वो लव के स्वरूप में आ जाता है। लव का मनन करते जब स्वरूप बन जाते हैं तो यह मनन नहीं चलता है लेकिन स्वरूप में स्थित हो जाते हैं। उस समय बाबा हमको अपनी सकाश भी देता है और बाबा की सकाश मिलने से हम और भी जो मगन अवस्था में जा रहे हैं, उसमें मदद मिल जाती है। तो सारे दिन में जिस समय फुर्सत मिलती है, अमृतवेले या नुमाशाम के टाइम जब योग करते हैं तो उस समय हम मगन अवस्था का अनुभव करें।

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