अथॉरिटी वाले की निशानी क्या होती है? उसमें विल पॉवर होती है, जो चाहे वह कर सकता है, करा सकता है। इसलिए कहा जाता है – यह अथॉरिटी वाला है। बाप ने जो अथॉरिटी दी है वह अभी प्राप्त नहीं की है क्या? मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी हो? ऑलमाइटी अर्थात् सर्वशक्तिवान। जिसके पास सर्व शक्तियों की अथॉरिटी है वह समझते भी कर ना पावे तो उनको ऑलमाइटी अथॉरिटी कहेंगे? यह भूल जाते हो कि मैं कौन हूँ?
यह तो स्वयं की पोजीशन है ना। तो क्या अपने आपको भूल जाते हो? असली को भूल नकली में आ जाते हो। जैसे आजकल अपनी सूरत को भी नकली बनाने का फैशन है। कोई न कोई श्रृंगार करते हैं जिसमें असलियत छिप जाती है। इसको कहते हैं आर्टिफिशियल आसुरी श्रृंगार। असल में भारतवासी फिर भी सभी धर्मों की आत्माओं की तुलना में सतोगुणी हैं। लेकिन अपना नकली रूप बना कर, आर्टिफिशियल एक्ट और श्रृंगार कर दिन-प्रतिदिन अपने को असुर बनाते जा रहे हैं। आप तो असलियत को नहीं भूलो। असलियत को भूलने से ही आसुरी संस्कार आते हैं। लौकिक रूप में भी जो पॉवरफुल बहुत होता है उसके आगे जाने की कोई हिम्मत नहीं रखते।
आप अगर ऑलमाइटी अथॉरिटी की पोजीशन पर ठहरो तो यह आसुरी संस्कार व व्यर्थ संस्कारों की हिम्मत हो सकती है क्या आपके सामने आने की? अपनी पोजीशन से क्यों उतरते हो? संगमयुग का असली संस्कार है जो सदा नॉलेज देता और लेता रहता है, उसको सदा ज्ञान स्मृति में रहेगा और सदा हर्षित रहेगा। ब्राह्मण जीवन के विशेष संस्कार ही हर्षितपने के हैं। फिर इससे दूर क्यों हो जाते हो? अपनी चीज़ को कब छोड़ा जाता है क्या? यह संगम की अपनी चीज़ है ना। अवगुण माया की चीज़ है जो संगदोष से ले ली। अपनी चीज़ है दिव्य गुण। अपनी चीज़ को छोड़ देते हो। सम्भालना नहीं आता है क्या? घर सम्भालना आता है? हद के बच्चे आदि सब चीज़ें सम्भालने आती हैं और बेहद की सम्भालना नहीं आती? हद को बिल्कुल पीठ दे दी कि थोड़ा-थोड़ा है? जैसे रावण को सीता की पीठ दिखाते हैं, ऐसे ही हद को पीट दे दी? फिर उनके सामने तो नहीं होंगे? कि फिर वहाँ जाकर कहेंगे क्या करें? अभी बेहद के घर में बेहद का नशा है, फिर हद के घर में जाने से हद का नशा हो जाएगा।
अभी उमंग-उत्साह जो है वह हद में तो नहीं आ जाएगा? जैसे अभी बेहद का उमंग व उल्लास है, उसमें कुछ अन्तर तो नहीं आ जाएगा ना। हद को विदाई दे दी कि अभी भी थोड़ी खातिरी करेंगे? समझना चाहिए- यह अलौकिक जन्म किसके प्रति है? हद के कार्य के प्रति है क्या? अलौकिक जन्म क्यों लिया? जिस कार्य अर्थ यह अलौकिक जन्म लिया वो कार्य नहीं किया तो क्या किया? लोगों को कहते हो ना – बाप के बच्चे होते बाप का परिचय ना जाना तो बच्चे ही कैसे?
ऐसे ही अपने से पूछो- बेहद के बाप से बेहद के बच्चे बन चुके हो, मान चुके हो, जान चुके हो फिर भी बेहद के कार्य में ना आवे तो अलौकिक जन्म क्या हुआ? अलौकिक जन्म में ही लौकिक कार्य में लग जावे तो क्या फायदा हुआ? अपने जन्म और समय के महत्व को जानो तब ही महान कर्त्तव्य करेंगे। गैस के गुब्बारे नहीं बनना है। वह बहुत अच्छा फूलता है और उड़ता है लेकिन टेम्परेरी। तो ऐसे गुब्बारे तो नहीं हो ना!




