प्रश्न- मैं जितना कर्जा उतारता हूँ फिर से हो जाता है। ज्ञान में आया हूँ तब से मन गलत काम करने के लिए नहीं होता कि किसी का पैसा ना दें। पर जीवन कष्टमय है, क्या करूं?
उत्तर- बहुत अच्छी भावना है कि सबका देना है। ये भावना मनुष्य को योग्य भी बना देती है, उसके चित्त को शुद्ध भी रखती है। और यही कारण है कि दुबारा भी लोग इन्हें दे देते हैं कजऱ्। तो निश्चित रूप से कर्ज तो मजऱ् है और ये मनुष्य को दु:खी करता ही है। लेकिन सवेरे उठकर प्रभु मिलन का सुंदर अनुभव करें। और कुछ संकल्प किया करें, शिवबाबा का शुक्रिया करें। और अपने अंदर ज्ञान का खज़ाना बहुत बढ़ाएं। जो ईश्वरीय खज़ाने हैं, जिसका ज्ञान अब हो गया होगा, उनको बढ़ाते चलें। तो ईश्वरीय ज्ञान और ईश्वरीय खज़ाने जितने बढेंग़े उतना स्थूल खज़ाना सहज प्राप्त होता रहेगा। मुख्य बात है, अब आपको अपने भाग्य को खोलना है। रोज़ एक घंटा योग की साधना ज़रूर करनी है, पॉवरफुल योग जिससे वो विकर्म विनाश हो जाएं जो इस समय सामने आ रहे हैं। और उठते ही पहले बाबा को गुड मॉर्निंग करेंगे, उससे मिलन करेंगे और याद करेंगे कि मैं भाग्यविधाता की संतान बहुत-बहुत भाग्यवान हूँ। ये पाँच बार करना है कि मैं बहुत भाग्यवान हूँ, मैं बहुत सुखी हूँ, मैं बहुत धनवान हूँ, कर्ज से मुक्त हूँ, ये 4 संकल्प हो गए। लेकिन योगाभ्यास चाहिए और ज्ञान के खज़ाने को बढ़ाते चलें। जितना आपका मन सुखी रहेगा तो भाग्य बिल्कुल चमकने लगेगा, भाग्य जागृत हो जाएगा। सवेरे उठकर भी मुस्कुरायें, भगवान से मिलन हो रहा है, सोयें भगवान से मिलन करके, मुस्कुराते हुए सोयें, बोझ लेकर नहीं सोयें, चिंताओं में नहीं सोयें तो भाग्य का सूर्य अवश्य उदय होगा। आपका भाग्य मुस्कुराने लगेगा। और ये कजऱ् का जो मजऱ् है इससे आप मुक्त हो जाएंगे।
प्रश्न- शिवबाबा को परमधाम में याद करना है कि ब्रह्माबाबा के तन में?
उत्तर- योग लगाते हुए हमें अपनी बुद्धि को ले चलना होता है परमधाम में। अब तो ब्रह्मा बाबा साकार में हैं भी नहीं। ये बात नहीं है। लेकिन सूक्ष्म वतन में ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में भी हम उन्हें याद कर सकते हैं और परमधाम में तो हमें योग लगाना ही है।
प्रश्न- शिवबाबा भी ब्रह्मा को याद करने को मना करता है तो सेन्टर्स पर या घर में ब्रह्मा बाबा का फोटों क्यों रखे हैं?
उत्तर- यहाँ दो शब्द है- याद और योग। योग शब्द जो है वो बुद्धियोग है। यानी हमारी बुद्धि लगी रहे शिवबाबा में जो सर्वशक्तिवान हैं, जो पवित्रता के सागर हैं, जो पतित पावन हैं, दु:खहर्ता हैं… बुद्धि उस निराकार शिवबाबा से लगे। क्योंकि ब्रह्मा बाबा भी हमारे अलौकिक पिता हैं, उनको हमें फॉलो करना है, उन्होंने हमें बहुत अच्छी-अच्छी चीज़ें सिखाई तो ये फोटो उनके सम्मान में रखे हुए हैं, ये हमारा रिगार्ड है। और उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि जैसे उन्होंने गहन तपस्या की, त्याग किया, समर्पण करके अपने जीवन को महान बनाया वैसे ही हम भी बनाएं। तो बुद्धियोग रखना है शिवबाबा से और फॉलो करना है ब्रह्मा बाबा को।
प्रश्न- मुझ आत्मा में आलस्य और अलबेलेपन के संस्कार हैं, जो बचपन से हैं। मुझे इनसे छुटकारा पाना है क्योंकि अमृतवेला भी मिस होता और साथ ही मैं परेशान भी होती हूँ, क्या करूं?
उत्तर- आलस्य और अलबेलेपन को भी छठवाँ विकार कहा गया है शास्त्रों में भी। क्योंकि ऐसा व्यक्ति न तो अपने जीवन में सफल होता है, न सुखी होता है और वो अपने कार्य भी सफलतापूर्वक बहुत एक्टिव रहकर कर नहीं पाता, लोगों का भी प्यार नहीं मिलता क्योंकि वो ढीले-ढाले होते हैं। उठने में भी ढीले-ढालेे, तो जि़म्मेदारी निभाने में भी ढीले-ढाले। तो इसका सबसे सुन्दर तरीका है कि आप ज्ञान का चिन्तन शुरू करें और एक-एक मास या पन्द्रह-पन्द्रह दिन का सुन्दर लक्ष्य बना लें कोई। मुझे इतना योग पन्द्रह दिनों में करना है। मुझे पन्द्रह दिन इतने बजे सवेरे उठ जाना है। तीन-चार बातों का ही एक उद्देश्य बना लें और उसको पूरा करने में जी-जान लगाएं। ड्यूटी ले लें कोई घर में कि सवेरे चाय बनाकर मुझे सबको पिलानी है, सबको उठाना है। चाय बनाने जाएंगे तो चुस्त हो जाएंगे या मुझे सवेरे उठकर घर का आधा काम पूरा कर देना है। तो ऐसा फिजि़कल लक्ष्य और स्पिरिचुअल लक्ष्य भी बनाएंगे। तो जहाँ जि़म्मेदारी मनुष्य को होती है ना, जि़म्मेदारी का जो भाव है वह अलबेलेपन को समाप्त कर देता है। थोड़ी-सी जि़म्मेवारी ले लें और थोड़ी-सी स्पिरिचुअल एम बना लें तो धीरे-धीरे छूट ही जाएगा। बचपन व पूर्व जन्मों से भी संस्कार लेकर आई होगी लेकिन अब हमें इसे बदलना है। भिन्न-भिन्न लोगों में भिन्न-भिन्न संस्कार इस तरह से दिखाई देते हैं, ये सत्य है। लेकिन हमें बदलना है उसको। क्योंकि अब हमें परफेक्शन की ओर चलना है। अब हमें कुछ अच्छे-अच्छे काम करने हैं। और बदलने की शक्ति हमारे अन्दर होती है। अब जब योग करने लगे हैं तो योग का बल भी आपको प्राप्त होगा, पर दृढ़ संकल्प करें मुझे अपने को बदलना है। एक्टिव हो जाएं फिजि़कल कार्यों में भी और नहीं तो दौड़ लगा लिया करें 1 या 2 किलोमीटर, थोड़ा-सा रोज़ दौड़ें तो चुस्ती आए तन में भी और मन में भी।
प्रश्न- मैं कुमार हूँ, इंटरनेट पर व्यर्थ देखने का आकर्षण बहुत ज्य़ादा है। फिर पवित्रता खण्डन होती है जिस कारण हिम्मत भी कम हो जाती है। कृपया बताएं क्या करें?
उत्तर- अगर आपको पवित्र बनना है, योगी बनना है तो ये आदत तो छोडऩी ही पड़ेगी क्योंकि ये दोनों चीज़ें साथ-साथ कभी नहीं चलेंगी। केवल व्यर्थ संकल्प और अपवित्रता की बात नहीं। इससे सारे युवक मानसिक रोगी बन जाएंगे दो-चार साल में। क्योंकि इससे बे्रन की शक्तियां बहुत नष्ट होती हैं। टू-मच देखते हैं, टू-मच इन्फॉर्मेशन बे्रन को जाती है। ब्रेन कन्फ्यूज़ होता है, उसकी स्पीड फास्ट होती है, कई शक्तियां उसकी डैमेज होती हैं। उसका परिणाम बहुत बुरा होगा। आप जीवन को इन्जॉय नहीं कर सकेंगे। इसलिए लैपटॉप या एन्ड्रॉयड फोन हो आजकल बहुत यूज़ होने लगे हैं कारोबार में भी, ये अलग बात है, लेकिन गलत साइट पर जाना, गन्दी चीज़ें देखना, गन्दे चित्र देखना वो तो कारोबार से जुड़ा हुआ नहीं है, उसपर प्रतिबन्ध लगाना है। और अगर आपका कारोबार फोन या लैपटॉप से जुड़ा हुआ नहीं है तो आप छोटा फोन यूज़ करें तो वो ज्य़ादा बेहतर होगा, कुछ दिन आपको परेशानी होगी लेकिन आप इन सबसे मुक्त हो जाएंगे। शिवबाबा को ये बिल्कुल प्रिय नहीं है। जो चीज़ शिवबाबा को प्रिय नहीं है तो आपको भी प्रिय नहीं होनी चाहिए।




