गणेश चतुर्थी के दिन बड़ी संख्या में लोग पूजा, अर्चना, व्रत करते है। इतना ही नहीं कई लोग मूहूर्त अथवा अन्य शुभ अवसरों पर, सभी धार्मिक आयोजनों का प्रारम्भ गणपति की स्तुति से करते हैं। भारत में तो लाखों करोड़ो व्यापारीयों के गद्दी के निकट स्थल पर स्वास्तिका का चिन्ह अंकित करते हैं जैसे वे गणपति का सूचक, शुभ तथा लाभप्रद मानते है। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ओर गणपति को लाखों करोड़ो नर-नारी सब देवताओं के प्रथम स्तुत्य मानते हुए अपने कार्यों की निर्विघ्नता पूर्वक समाप्ति के लिए पूजा अर्चना करते हैं। यहाँ तक की साधक लोग स्वयं परमात्मा शिव की उपासना मानते हुए कहते हैं कि – ”पहले गणपति गणेश मनाया करो, पीछे भोला जी के दर्शन पाया करो।” परन्तु दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जो गजवदन, वक्रतुण्ड, एकदन्त (मुडी हुई सूँड),महोदर (बड़ा पेट),मूषक (चूहा) वाहक आदि को देख कर आश्यचर्यविन्त होते हैं और वह जानने की जिज्ञासा रखते हैं कि गणनायक कौन है? उनके मन में यह भी प्रश्न उठता है कि गणपति की स्तुति सबसे पहले क्यों होती है और वे विघ्नविनाशक कैसे है?
भारतीय साधना एवं उपासना प्रणाली में परमपिता परमात्मा के जो विभिन्न गुण हैं उनको भारतीय मूर्तिकारों तथा चित्रकारों ने विभिन्न प्रतिकों द्वारा अभिव्यक्त किया है। उदारहरण के तौर पर ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा से जो सद्विवेक प्राप्त होता है, उसे उन्हें सरस्वती के वाहन हंस के रूप चित्रित अथवा मूर्ति के रूप में प्रदान किया है। इसी प्रकार धन, सम्पदा और वैभव प्राप्त होने पर भी उनमें अनासक्त भाव को लक्ष्मी के कमलपुष्प के रूप में अभिव्यक्त किया है और स्वयं लक्ष्मी को कवियों ने कमला नाम भी दिया है। इन सभी बातों को सामने रखते हुए जब हम गणपति के चित्र को आध्यात्मिक रीति से देखते हैं तो निम्रलिखित भाव स्पस्ट रूप से हमारे सामने आते है।
हाथी का सीर – हाथी का सीर विशाल होता है और यह मान्यता है प्रचलित है कि हाथी की स्मृति तेज होती है। वो आस-पास के माहौल को भली-भाँती जानता है और उसे परख भी सकता है। जिसे आत्मा और परमात्मा का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हो, और जिसे सृष्टि के आदि, मध्य और अन्त का भी बोध हो, उसे विशाल बुद्धि कहा जाता है। इसलिए हाथी का सीर दिखाया गया है। यह विशाल बुद्धि की निशानी है।
हाथी की सूँड- मज़बूत, शक्तिशाली होती है कि वृक्ष को भी उखाड़कर, सूँड में लपेटकर ऊपर उठा सकता है। वो चाहे तो छोटे बच्चे को भी प्रणाम करें। किसी को पुष्प अर्पित करे या पानी का लोटा चढ़ाकर किसी की पूजा करे। वो सूँड से केवल वृक्ष जैसी चीज़ ही ग्रहण नहीं करता बल्कि सुई जैसी सूक्ष्म चीज़ को भी उठा सकता है। इसी प्रकार ज्ञानवान व्यक्ति भी अपनी स्थूल आदतों को जड़ों से उखाड़ फेंकने में समर्थ है तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को भी धारण करने के लिए और दूसरों को सम्मान, स्नेह तथा आदर देने में कुशल होता है। वक्रतुण्ड सूँड शक्ति के साथ साथ निर्माणता का प्रतिक है।
गज कर्ण – बड़े-बड़े कान ज्ञानश्रवण के प्रतीक हैं। वे ध्यान से, जिज्ञासापूर्वक, गहण करने की भावना से पूरा चित्त देकर सुनने का प्रतीक है। ज्ञान की साधना में श्रवण,मनन व निजिध्यासन यह तीन पुरुषार्थ बताए गए हैं, इनमें सबसे प्रथम श्रवण ही है। ज्ञान सागर परमात्मा से विस्तृत ज्ञान के श्रवण इन बड़े कानों से समुचित है। दुसरी बात उनके कान सुपड़े की तरह हिलते रहते हैं अर्थात् कोई भी फालतू, नकारात्मक बात कान में न जाये इसका घोतक है।
एक दन्त – एक नीति अर्थात् नीति-निपुणता भी कुशल व्यक्तित्व का मूल्यवान गुण है। नीति का अभिप्राय यह है कि सूझ, दूरदर्शिता और चतुराई रहे इसके लिए एकदन्त दिखाया गया है।
बड़ा पेट (महोदर) – ज्ञानवानों के सामने भी निन्दा-स्तुति, जय-पराजय, ऊँच-नीच की परिस्थितियाँ आती हैं, परन्तु वो उन सबको स्वयं में समा लेता है लम्बा पेट (लम्बोदर) अथवा पेट बड़ा (महोदर) ज्ञानवान के इस गुण के प्रतीक है। समाने का प्रतीक बड़ा पेट दिखाया गया है।
चूहा – चंचल वृत्ति का प्रतीक है, इस पर विजय प्राप्त करने की निशानी चूहा पर सवारी दिखाया गया है। इन सभी रहस्यों को जानने के पश्चात हम सभी को गणपति जैसा ज्ञानवान, गुणवान और शक्तिवान बनने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए गणपति के पिता शिव से ज्ञान प्राप्त करें और अष्टविनायक, विघ्नविनाशक, सुखकर्ता, दुखहर्ता बनें।




