बाबा कहते हैं बच्चे अभी समय बहुत नाज़ुक आने वाला है इसलिए अपने मन पर कन्ट्रोल ज़रूर होना चाहिए। सेकण्ड में मैं अपने मन को ऑर्डर करूं कि व्यर्थ खत्म हो जाए, समर्थ चले। तो एक सेकण्ड में हम अपने मन पर ऑर्डर कर सकें और उसी ऑर्डर के अनुसार एक सेकण्ड में हम व्यर्थ को फुलस्टॉप लगा सकें, इसकी प्रैक्टिस काम करते हुए भी होनी चाहिए। हमारा पेपर अचानक होना है और अचानक किस समय कैसे भी हो सकता है इसलिए हमारे मन पर हमारा कन्ट्रोल हो तो सेकण्ड में पास हो जाएंगे। अगर कन्ट्रोल नहीं है तो प्रयत्न करेंगे पास होने का लेकिन प्रयत्न में टाइम लग सकता है।
हमारा मूल मन्त्र है मन-मनाभव, मन अपने ऑर्डर में रहे और जहाँ लगाने चाहें वहाँ ही लगे, जितना समय लगाना चाहें वो ऑर्डर में रहे। ये है मन-मनाभव। बाबा कहते बच्चे इस मन-मनाभव के मंत्र को यंत्र बना दो तो सफलता मिल जाएगी। तो इस मंत्र को यंत्र मुआफिक सेकण्ड में मैं यूज़ कर सकूं ये प्रैक्टिस बहुत-बहुत ज़रूरी है। बाबा ने कहा था कई बच्चे कहते हैं कि वैसे तो ठीक हैं लेकिन जब कर्मयोगी बनते हैं तो डबल काम हो जाता है, उस समय हमारी प्रैक्टिस थोड़ी और होनी चाहिए। इसके लिए कर्मयोगी बनते समय सोचो कि मैं आत्मा करावनहार हूँ और यह कर्मेन्द्रियां करनहार हैं। तो जब अपनी सीट पर सेट होंगे, तो सीट पर बैठे हुए मालिक का सब ऑर्डर मानते हैं। अगर आपकी कर्मेन्द्रियां आपका कहना नहीं मानती हैं तो इससे सिद्ध है कि आप अपनी सीट पर सेट नहीं हैं। आपकी सीट है मैं मालिक हूँ, अधिकारी हूँ, मालिक को तो पॉवर होती है ना, ऑलमाइटी अथॉरिटी हूँ। ऑलमाइटी अथॉरिटी का बालक हूँ, इस सीट पर सेट होके फिर कर्मयोग के टाइम ट्रायल करो तो सहज हो जाएगा।
तो इस पर हमारा अटेन्शन होना चाहिए क्योंकि अचानक पेपर होना है तो कर्मयोग के टाइम भी हो सकता है। इसलिए बाबा अभी इसी प्वाइन्ट पर विशेष अटेन्शन खिंचवा रहा है। मेहनत तो हमको करनी पड़ेगी ना, सीट पर सेट हमको होना पड़ेगा इसलिए बाबा हमको कहता है बहुत समय का अभ्यास नहीं होगा तो उस समय हम उसको कन्ट्रोल कर नहीं सकेंगे।
जब आत्म-अभिमानी शब्द कहते हैं तो आत्मा के अभिमान कौन से हैं? बाबा जो हमें समय प्रति समय स्वमान बताते हैं, जैसे बाबा कहते हैं तुम विश्व परिवर्तक हो, हम आत्मा हैं लेकिन आत्मा के साथ-साथ हम ये स्वमान याद रखें, आत्मा तो लाइट है, लाइट रूप होकर हम चलते हैं लेकिन साथ में अगर स्वमान भी याद रहे तो देह अभिमान खत्म हो जाएगा। जैसे बाबा कहते हैं आप परमात्म दिलतख्त के मालिक हो, यह कितनी बड़ी बात है, अगर हम सोचें कि मैं आत्मा हूँ, आत्मा के साथ मैं कौन-सी आत्मा हूँ! तो हमारी आत्मा का अभिमान ये है कि जो बाबा स्वमान देते हैं उस स्वमान में स्थित रहें और स्वमान में स्थित रहने से बहुत रमणीक हो जाता है। जैसे मैं विश्व-परिवर्तक आत्मा हूँ, ये कितने मर्तबे की बात है। उस स्थिति में अगर हम स्थित रहें तो सारा दिन हम अलर्ट रहेंगे।




