बाबा की मुरली सुनने के बाद हमारा दिल कहता था कि बाबा से चिटचैट करें, बाबा भी कहता है मुरली के बाद आपस में मुरली रिवाइज़ करो क्योंकि तुरन्त रिवाइज़ करते हैं तो दिनभर याद रहती है। यह मुरली के बाद बाबा के पास बैठने से पता चलता था कि बाबा मुरली सुनाके कैसे न्यारा हो जाता है। पूछने पर कहता था कि कल्प पहले सुनाया था, फिर कल्प के बाद सुनाऊंगा। बच्ची, गोल्डन वर्सन्स नेवर रिपीट। अपने को कितना अच्छा शिक्षक मिला है, कितनी मीठी-मीठी बातें सुनाता है। अन्दाज़ा लगा के देखो, इतना प्यारा बाबा सारे कल्प में फिर नहीं मिलेगा।
रूखेपन का संस्कार भी बहुत खतरनाक है। रूखे रहेंगे, समझेंगे काम में बहुत बिजी हूँ या फिर अभिमान बिजी कर देता है। रूखेपन में कितना नुकसान है। तो रूखी रोटी खाके सूखा हो गया वो औरों को क्या सुखी करेगा! किसी भी गुण की वैल्यू बहुत है। बाबा ने ऐसा खज़ाना दिया है, जो आत्माएं बाबा के घर आकर माला-माल हो जाएं।
चार बातें हमारे अन्दर स्पष्ट है, जो बाबा कहते थे बच्चे ज्ञान ऐसा है जैसे अन्धे के आगे आइना। हो अन्धा, आइने के सामने आये तो दिखेगा कैसे! पर यह आइना ऐसा है जो अन्धा भी देख सकता है। ऐसा पॉवरफुल आइना हो जो दूसरों को कुछ कहे नहीं, अपने आप अपने को देखने लग पड़े, न सिर्फ देखने लगे, बनने लग पड़े। चार बातें हैं, भावी के साथ भाग्य, भगवान और समय। चारों का मेल है। भगवान ने बताया अभी तेरी यह भावी बनी पड़ी है। बाबा कितना अच्छा है सोचो तो सही। फिर बाबा कहेगा तू कितनी अच्छी हो। बाबा बाप कितने सुन्दर हो, सुन्दर इतना है जो हमें काले से सुन्दर बना देता है। सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। हम तो झूठे बन गए थे, बॉडी कॉन्शियस बन गए थे। आत्म-अभिमानी बनाकर ऐसा पकड़ा है जो पुराने स्वभाव-संस्कार से छूट गए।
तो भावी बनी पड़ी है, पर बनानी भी है, यह समझ दी है। ऐसे नहीं जो बना हुआ होगा। अभी यह टाइम है बनाने का। तो चारों में से महिमा किसकी ज्य़ादा करें? जिसने ज्य़ादा भक्ति की है वो पहले बाबा से मिलता है। फट से मिलता है। कर्म तो हमें गर्भ तक भी नहीं छोडऩे हैं। यहाँ से भल शरीर छोड़ा, पर गर्भ के बाहर भी निकलेगा तो उसी कर्म के अनुसार निकलेगा। बाबा ने समझाया है कि अभी कर्म का हिसाब-किताब खत्म करो, नहीं तो गर्भ तक भी हिसाब-किताब नहीं छोड़ेगा। सदाकाल का सुख, अविनाशी सुख जो बाबा दे रहा है वो सुख अपने आप सफलता पाने के लिए है। किसी के साथ द्वेष भाव रहने में कोई सफलता नहीं है। ऐसे नहीं कि जो हमारी प्रशंसा करे वो हमारा मित्र है और निन्दा करे वो शत्रु है, नहीं। निन्दा-स्तुति, हार-जीत में समान बनें, तब कहेंगे ज्ञान अन्दर गया है। ज्ञान है नॉलेज, योग है याद। ऐसी याद जिससे मान-अपमान, निंदा-स्तुति में समान रहें। जिसका नाम लो उसके अनुसार नैन, चैन हो जाएं यह कोई ज्ञान नहीं है।




