मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजपरमात्मा को हम स्वीकार हैं…

परमात्मा को हम स्वीकार हैं…

आप देखो इस दुनिया में जब हम पैदा हुए बड़े नैचुरल से थे और लोग हमको कहते भी थे, जैसे कोई हमारे घर में मेहमान आता है, छोटा बच्चा कहते हैं कि जैसे भगवान का अवतार हमारे घर में अवतरित हुआ है। और थोड़े दिन बाद जब हम थोड़े बड़े होते हैं तो हमारे जीवन में अड़चन शुरू हो जाती है। क्यों अड़चन शुरू हो जाती है? क्योंकि जैसे हमारे मन में आया कि लोग मुझे प्यार करें, लोग मुझे सम्मान दें, लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करें इसलिए आप उनके जैसा बनना शुरू कर देते हैं। उनकी शर्तों पर चलते हैं। और द्वंद्व में जीना शुरू हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि इस दुनिया में जिस आदमी ने थोड़ा भी औरों की तरह या किसी भी तरह से बनना चाहा, जैसे ही उसके अन्दर ये चाहना उत्पन्न हुई वहीं से भय शुरू हो जाता है। भय शुरू हो जाता है का अर्थ है कि हम सभी वैसे हैं नहीं ना! हैं तो हम कुछ और, लेकिन जब वैसा बनना शुरू करते हैं, वैसा चाहना शुरू कर देते हैं तो उसको बचाना भी तो पड़ेगा। इसीलिए इस दुनिया में कहा जाता है कि भोग का एक मूल्य होता है। कुछ भी हम भोगना भोगते हैं तो उसका एक मूल्य देना होता है। जैसे आप कभी भी किसी पार्क में जायेंगे, किसी अच्छे स्थान पर जायेंगे, किसी हिल स्टेशन पर जायेंगे वहाँ भी आपको एक मूल्य देना होता है, समय का मूल्य, आप वहाँ गये आपने अपनी आँखों से प्रकृति को देखते हो तो आँख से प्रकृति आपकी आँखों से ऊर्जा लेती है फिर आपको एक अच्छा फील कराती है। कुछ देना पड़ता है और इसका एक बहुत अच्छा पैरामीटर है भी है कि जब आप बाहर से आते हैं तो आप इतना थक क्यों जाते हैं, क्योंकि वहाँ हमने कुछ मूल्य चुकाया है। क्योंकि वहाँ भोगा, प्रकृति का सुख लिया, चाहे किसी भी चीज़ का सुख लिया लेकिन वहाँ से आने के बाद हम थका हुआ महसूस इसीलिए ही तो करते हैं, क्योंकि हमने कुछ मूल्य दिया और तब जाकर वहाँ से अच्छा फील हुआ। तो भोग का तो मूल्य होना ही है। इसीलिए कहा जाता है कि जैसे ही हम कुछ होना चाहते हैं, कुछ बनना चाहते हैं बाहरी दुनिया की तरह, तो वहीं से डर, भय, चिंता शुरू हो जाती है। परमात्मा कहते हैं कि तुम जैसे हो वैसे मुझे स्वीकार हो। लेकिन वैसे स्वीकार होने के लिए भी तो कुछ शर्तें होंगी ना! तो परमात्मा की पहली शर्त है कि तुम जब इस दुनिया में आये जैसे आये थे वैसे फिर से बन जाओ। आत्मा हमारी शून्य अवस्था में, कम्प्लीट अवस्था में थी, शून्य का मतलब कम्पलीट ना माइनस, ना प्लस। जिसमें ना कुछ ऊपर है, ना नीचे है, सबकुछ बैलेन्स है। तो जब हम शून्य होते हैं परमात्मा को स्वीकार होते हैं, ज़ीरो होते हैं। लेकिन जैसे ही औरों की शर्तों से अपने जीवन को बदलने की कोशिश करते हैं तो वहीं से ही अस्वीकार हो जाते हैं। क्योंकि वहाँ से सबकुछ शुरू हो जाता है जो हमने कभी सोचा भी नहीं होता है। इसीलिए हम सबको इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि परमात्मा कहते हैं कि तुम आत्मा बनकर जियो। तुम आत्मा थे, तुम आत्मा हो, और हमेशा तुम आत्मा रहेंगे। लेकिन कुछ समय के लिए अपने रोल में नीचे आते हैं और रोल को निभाके ऊपर चले जाते हैं। तो इन सारी बातों को समझना, इन बातों को धारण करना, उसी आधार से रहना इसी को जीवन कहते हैं। और ये तब समझ आयेगा जब हम इसका अभ्यास करेंगे। और अभ्यास एक दिन का विषय नहीं है, रोज़ का विषय है। रोज़ हमको अपने जीवन में लाना होगा तब हम परमात्मा को स्वीकार हो जाएंगे।

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