मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यहे! प्रिय वत्सो अब दिव्यता का आह्वान करो

हे! प्रिय वत्सो अब दिव्यता का आह्वान करो

याद करो उस समय को जब ये घडिय़ां बीत जाएंगी…भगवान का नूतन युग रचने का कार्य सम्पन्न हो जाएगा… कोई विजयी रत्न बन जाएंगे और कोई अष्ट रत्न… कोई आत्मा सर्व रसों से स्वयं को भर लेंगे, किसी की तिजोरियां सब खज़ानों से भर जाएंगी तो कोई हाथ मलते ही रह जाएंगे कि ओह… हमने भाग्य निर्माण के इस काल में क्या-क्या किया…!!!

इन कोमल कलियों का बलिदान देखकर किसका मन प्रेरणा व उत्साह से नहीं भरेगा। जो फू ल अभी खिले भी नहीं हैं, जिनमें अभी सुगन्ध भरनी बाकी है, वे चले हैं इस विरान में पुष्प उगाने, वे चले हैं इस दुर्गन्ध भरी वसुन्धरा पर पवित्रता की सरिता बहाने… क्यों न गौरव होगा, उनके जन्म देने वालों को भी और क्यों न गर्व होगा उसको भी, जिनका इशारा मिलते ही इन्होंने ये बलिदानी कदम उठाया। ये कलियां महकते पुष्प बन जाएं, ये कलियां विश्व की प्रेरक बन जाएं, ये कलियां निर्बलों व निर्धनों का सहारा बन जाएं… इनको बस ऐसी ही शुभ-भावनाओं की आवश्यकता है। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में हज़ारों आत्माएं अपने जीवन रूपी पुष्प को शिव पर अर्पित कर चुकी हैं। ये महान विभूतियां कलियुग में रहते हुए भी कलियुग से बहुत दूर निकल आई हैं और पुन: लौटने का किसी का कोई भी इरादा नहीं है। तो क्यों न इस जीवन को दिव्यता से भर दें ताकि संसार हममें ही प्रभु का दर्शन कर सके। तो हमें अन्तर्मुखी होकर देखना है कि ये ईश्वरीय मौजों का काल कैसे बीत रहा है। कहीं ये अनमोल घडिय़ां यूं ही तो नहीं बीत रही… कहीं ये वरदानी समय संघर्षों में ही तो नहीं बीत रहा… कहीं ये अविनाशी कमाई की घडिय़ां हमारे हाथ से खाली ही तो नहीं जा रही… ऐसा तो नहीं कि कहीं हमें एहसास भी न हो और ये सुनहरा काल यूं ही बीत जाए।

मनुष्य की सबसे प्यारी वस्तु ये जीवन है – मनुष्य की सबसे प्यारी वस्तु ये जीवन है, जबकि इसे ही सेवाओं के लिए स्वाहा कर दिया, फिर भला इस जीवन को दिव्य बनाने के लिए हम एक बार दिल से मेहनत क्यों न करें! जबकि भगवान ने हमारा सभी बोझ भी हर लिया, हमें अपनी छत्रछाया में ले लिया, अपने प्यार में समा लिया और अपना उत्तराधिकारी बना लिया तो देरी किस बात की! तो आओ हम सभी मिलकर संकल्प करें कि जब तक अपने लक्ष्य को नहीं पा लेंगे, तब तक तपस्वी जीवन व्यतीत करेंगे, वैभवों से दूर रहेंगे और मुड़कर कभी भी पीछे नहीं देखेंगे। जीवन का बलिदान करने वालों, ज़रा याद करो उस अतीत को जब तुमने अपनी इस अमूल्य निधि-‘जीवन’ को ईश्वर को बलिदान करने का संकल्प किया था। क्या-क्या उमंगें थी तुम्हारे दिल में? क्या कुछ करने के साहस के साथ कदम आगे बढ़ाए थे? जीवन के किस लक्ष्य को पाने के लिए नि:संकोच होकर और विघ्नों को लात मारकर यह कुर्बानी की थी?

अपने साहस और आत्म विश्वास को भूलो नहीं – अपने साहस और आत्म विश्वासों को भूलो नहीं। तुम्हारा ये साहस तुम्हारा सहायक बनेगा। समस्याएं और विघ्न तुम्हारे साहस व आत्मविश्वास को समाप्त न करें। जहाँ साहस व आत्मविश्वास है, वहाँ कठिनाई व समस्याएं स्वत: ही आत्म समर्पण कर देती हैं। याद करो उस समय को जब ये घडिय़ां बीत जाएंगी… भगवान का नूतन युग रचने का कार्य सम्पन्न हो जाएगा… कोई विजयी रत्न बन जाएंगे और कोई अष्ट रत्न… कोई आत्मा सर्व रसों से स्वयं को भर लेंगे, किसी की तिजोरियां सब खज़ानों से भर जाएंगी तो कोई हाथ मलते ही रह जाएंगे कि ओह… हमने भाग्य निर्माण के इस काल में क्या-क्या किया। हम तेरे-मेरे की माला में ही उलझे रहे… हमने मान-शान के पीछे ही जीवन लगा दिया… हम न सुख दे सके, न सुख ले सके। परन्तु तब समय बीत चुका होगा और हम तब अपने को उन मनुष्यों से अच्छा नहीं समझेंगे जिन्होंने इस धरा पर आये हुए प्रभु को नहीं पहचाना। तो हे जग को सुगन्धित करने वाले चेतन पुष्पों, बाबा की कामनाओं को पूर्ण करो… सबके प्ररेक बन जाओ… जो लोग तुममें विश्वास नहीं करते, उन्हें भी अपने दिव्य विवेक का चमत्कार दिखाओ। जो तुम्हें रूखी दृष्टि देते हैं, उन्हें तुम सुख भरी दृष्टि के महत्व का आभास कराओ। जो तुम्हें कमज़ोर समझते हैं, जो तुममें संशय करते हैं, उन्हें तुम सफलता की चैतन्य प्रतिभा बनकर दिखाओ। तुम अपने कदम इतनी तेजी से आगे बढ़ाओ कि वर्षों से चलने वाले यात्री पीछे रह जायें और उन्हें भी तीव्रगति से बढऩे का उमंग प्राप्त हो।

योगयुक्त होकर विचार करें-

योगयुक्त होकर विचार करो कि जिस पर तुमने स्वयं को बलिदान किया है, उसने प्रत्यक्ष रूप में तुम्हें क्या दिया है? उसने अपनी असीम शक्तियों को तुमसे जोड़ दिया है… उसने तुम्हें अपनी शीतल छाया में विश्राम दिया है, तुम्हें अपने नयनों का नूर बना लिया है… तुम पर उसकी नज़र है और तुम्हें मालूम है कि वह तुमसे क्या चाहता है?

उसकी तुमसे श्रेष्ठ कामना है कि—

  • ये मेरे चेतन चिराग जग को रोशन करें।
  • ये मेरे नयनों के नूर जग के नूर बनें।
  • मेरे ये पावन वत्स इस धरा पर उसी तरह चमकें जैसे नभ में सूर्य और चंद्रमा चमकते हैं।
  • मेरी इन बलिदानी भुजाओं में तेज हो, दिव्यता हो, प्रकाश हो ताकि मेरे भक्त मेरी छवि इस धरा पर देख सकें।
  • मेरे ये लाल, रूहों के सहारे बनें, मानव की डगमगाती क श्ती के किनारे बनें। मेरे ये वत्स विश्व की अमूल्य निधि बनें।
  • मेरे ये वत्स जग की शोभा बनें, रोतों के लिए मुस्कान बनें, चिंताओं के लिए चिंगारी बनें, अबलाओं की शक्ति बनें और इस वीरान विश्व में हरियाली लायें।
  • मेरे ये वत्स अति शक्तिशाली, अचल-अडोल बनें, विघ्नों को ललकारने वाले बनें और माया के साम्राज्य को समाप्त कर दें।
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