मुरली सुनते या सुनाते हरेक को अन्दर चलता होगा कि आज मुरली से मुझे क्या मिला! बाबा कहते जैसे गऊ खाना खाती है फिर सारा दिन चबाती रहती है, तो उसका दूध बनता है। मनुष्य केवल खाते समय चबाते हैं, बाकी सारा दिन क्या करते हैं! हमें जो इतना भारी खज़ाना मिलता है, खाना भी मिलता है तो खज़ाना भी मिलता है। इस खज़ाने से कमाई कितनी है, खुशी कितनी है।
पढ़ाई अच्छी पढऩे वाले का ध्यान रहता है प्रालब्ध के लिए। लौकिक दुनिया में जो पढ़ते हैं, वो समझते हैं पढऩा ही है, नहीं तो जियेंगे कैसे! दुनिया को दिखाने के लिए पढ़ते हैं। हम भविष्य दुनिया की प्रालब्ध के लिए पढ़ते हैं। पढ़ाई ऐसी है जो इसमें पुस्तक उठाने की भी ज़रूरत नहीं है। मुरली एक बारी पढ़ो या 10 बारी पढ़ो, पर मनमनाभव के मंत्र को समझ लो। गीता में भी भगवान समझा-समझा के कहता है मनमनाभव। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। ज्ञान जो संगम पर मिला वो सतयुग-त्रेता में काम आता है। वहाँ कोई ज्ञान लेना-देना नहीं है, पर काम आता है। अभी भगवान के दिए हुए ज्ञान में ताकत है, न पास्ट याद आए, न प्रेजेन्ट में बिना काम वाली बात याद आए। अगर पास्ट इज़ पास्ट नहीं कर सकते तो याद नहीं रह सकती। पास्ट इज़ पास्ट करते हैं तो पास हो जाते हैं। बाबा ने कहा हियर नो इविल, भक्ति मार्ग की भी बातें नहीं सुनो। हमारी जीवन जब परिवर्तन होती है, शूद्र से ब्राह्मण बनते हैं। ब्राह्मण कैसे बन गए! सिर्फ बाबा को देखा, ज्ञान सुना, परिवार को देखा, बस ऐसे ब्राह्मण बन गए। किसी ने जबरदस्ती नहीं किया। ब्राह्मण जीवन में कितनी अच्छी-अच्छी बातें देख कर मोहित हुए हैं, ज्ञान तो पीछे सुना है। तो अन्दर में याद रखो कि हम ब्राह्मण बने क्यों? जीवन अच्छी है, परिवार साथी है, भगवान साथी है, यह सब देखकर ब्राह्मण बने हैं। इस परिवार की अच्छी-अच्छी बातें याद कर लो तो नष्टोमोहा बन जाएंगे।
हनुमान की लगन कैसी दिखाई हुई है, दिखाते हैं चोट लगी हनुमान को तो दर्द हुआ राम को। यह बाबा की पै्रक्टिकल हिस्ट्री है। एक बार मैं पूना में हॉस्पिटल में थी, मुझे जब भी डॉक्टर हाथ लगाता था तो बाबा को शॉक लगता था, शक्ल पीली होती जाती थी। किसी ने पूछा तो कहा जनक का दर्द पी रहा हूँ, मैं आराम से थी। वण्डर है इतना उसका प्यार है। जो थोड़ा भी बाबा को प्यार करते हैं बाबा उन्हें कितना प्यार करता है। उसका शुक्रिया मानो तो कितना प्यार करेगा। कितना हमको शान्ति और खुुशी का जी भरके खज़ाना दिया है। जहाँ भी कदम हैं वहाँ सेवा है, मैं कभी नहीं कहेंगी हॉस्पिटल में हूँ। डॉक्टर को कभी ऐसा पेशेन्ट तो देखने को मिले, नर्सेज़ को ऐसे पेशेन्ट तो मिलें जो कभी कम्पलेन न करें। क्या बड़़ी बात है! बाबा कहता है पुराने कपड़े को सम्भाल के रखना है। साफ भी रखना है, इतना अक्ल सिखा रहा है। अक्लमंद वो है जो नकल करना जानता है। बाबा को कॉपी करके अर्थात् उसकी नकल करके दिखाए। तभी अंगद जैसी अडोल अवस्था बनेगी।
बाबा की याद इतना मीठा बनाती है, किसकी याद में बैठे हैं? मेडिटेशन है क्या! न माला है, न मंत्र है। एक अक्ल है नकल करने का, दूसरा जो इलम पढ़ा है उसे अमल में लाना है। मेडिटेशन क्या है, अपने संकल्प को शुद्ध शान्त रखना। जो कहते हैं पुरुषार्थ के लिए टाइम नहीं है, वह अपने को ठगते हैं। पुरुषार्थ है क्या! अन्दर से मन को व्यर्थ से फ्री करना। अन्दर व्यर्थ में जो टाइम गंवा रहे हैं उसमें कितना नुकसान है, फिर कहते हैं टाइम नहीं है। व्यर्थ में टाइम नष्ट हो रहा है। श्रेष्ठ संकल्प हो तो समय, श्वास, संकल्प तीनों सफल हों। पुरुषार्थ में भविष्य अच्छा नज़र आता है, पास्ट खत्म हो जाता है। शक्ति आ जाती है। पास्ट का कोई भी स्वभाव-संस्कार है तो वो शक्ति छीन लेता है। हिम्मत है तो बाबा की मदद है।




