स्व-चिंतन और शुभ चिंतक
1- स्व चिन्तन अर्थात् जो बापदादा ने ‘मैं कौन हूँ’ की पहेली बताई है, उसको सदा स्मृति में रखना। जैसे बापदादा जो है, जैसा है, वैसा उसको जानना ही यथार्थ जानना है, दोनों का जानना ही वास्तव में सब कुछ जानना है। इसी रीति स्व को भी जो हूँ, जैसा हूँ यथार्थ जो आदि-अनादि, श्रेष्ठ स्वरूप है, उस रूप से अपने आप को जानना और उस रूप के स्व चिन्तन में रहना, इसको कहा जाता है स्व चिन्तन। शुभ चिन्तन अर्थात् ज्ञान रत्नों का मनन करना। रचता और रचना के गुह्य रमणीक राज़ों में रमण करना। एक, सिर्फ रिपीट करना, दूसरा, ज्ञान सागर की लहरों में लहराना अर्थात् ज्ञान खज़ाने के मालिकपन के नशे में रह सदा ज्ञान रत्नों से खेलते रहना। ऐसा शुभ-चिन्तन करने वाले स्वत: ही सर्व के सम्पर्क में शुभचिन्तक बन जाते हैं। जो स्वयं दिन-रात शुभ चिन्तन में रहते हैं, वह औरों के प्रति कभी भी न अशुभ सोचते, न अशुभ देखते, न बोलते, न करते उनका निजी संस्कार व स्वभाव शुभ होने के कारण वृत्ति, दृष्टि सर्व में शुभ देखने और सोचने की स्वत: ही आदत बन जाती है इसलिए हर एक के प्रति शुभचिंतक रहता है। कमज़ोर आत्मा को भी सदा उमंग उत्साह के पंख देकर शक्तिशाली बनाते हैं। ऊंचा उठाने के साथ-साथ ऊंचा उड़ाते भी हैं। कमज़ोर आत्मा के प्रति सदा शुभ कामना शुभ भावना रख सहयोगी बनाते।
2- शुभ चिंतक अर्थात् ना उम्मीदवार को भी उम्मीदवार बनाने वाले। शुभ चिंतक बापदादा द्वारा ली हुई शक्तियों के सहारे की टांग दे, लंगड़े को भी चलाने के निमित्त बन जाएंगे। शुभ चिंतक आत्मा, अपने शुभ चिंतन द्वारा दिल शिकस्त आत्मा को भी दिल खुश मिठाई द्वारा तंदुरुस्त बनाएगी। शुभ चिंतक आत्मा किसी की कमज़ोरी जानते हुए भी उनकी कमज़ोरी को भुलाकर अपनी विशेषता की शक्ति को समर्थी दिलाते हुए उसको भी समर्थ बना देगी। किसी के प्रति घृणा दृष्टि नहीं रहेगी जिससे उनका सभी से प्रेम होगा।



