सभी कहते हैं कि मेरा मन नहीं लगता, उस कार्य में जो उसे दिया गया है। लेकिन एक मन ये कहता है कहीं तो हमारा मन लगता है! जिसमें हमारा मन डूबा हुआ होता है, जिसमें हमको रस आता है, जिसमें हमको मज़ा आता है वहाँ हमारा मन लगता है ना! लेकिन हमारा मन वहाँ नहीं लगता है जो हमारे मन मुताबिक चीज़ नहीं है। तो ऐसा नहीं है कि हम एकाग्र नहीं हैं, निश्चित रूप से हम छोटे-छोटे कार्यों में जिसमें आपको रस आता है उसमें आप एकाग्र हैं। लेकिन सबसे ज्य़ादा ज़रूरत इस समय एकाग्रता की नहीं है, समझ की है, जागरूकता की है कि मुझे क्या चाहिए!
आप हमेशा जीवन को थोड़ा-सा साक्षी भाव से देखेंगे तो आप पाएंगे कि ज्य़ादातर जीवन में हमने वो किया जो हम नहीं करना चाहते थे। किसी के कहने से किया, किसी के बताने से, किसी के गाइड लाइन देने से किया। लेकिन जो आपकी बेसिक नेचर है, जिसमें आप एक्सपर्ट हैं, जिस चीज़ में आपको मज़ा आता है, जिसमें आपको रस आता है, जो आपके लिए बड़ी नॉर्मल सी चीज़ है, वो आपने नहीं किया। पूरे जीवन सोचते रह गए कि नहीं, मेरी नेचर तो ये करने की थी, मुझे तो ये बनना था लेकिन मैं यह कर नहीं पाया।
इसलिए पहले तो हरेक आत्मा को अपने सहज भाव को जानना ज़रूरी है कि किसमें वो सहज है, किसमें वो अपने को सही पाता है। तो मनुष्य की तृप्ति कब होती है? जब हम उसी भाव से जीते हैं जो हमारी बेसिक नेचर है। हम इस दुनिया में जो कुछ भी कर रहे हैं वो मूल्यविहिन है, दुनिया के हिसाब से उसमें आपको पैसा मिलेगा, शोहरत मिलेगी लेकिन आत्म संतुष्टि नहीं मिलेगी। आप वो बन गए जो बनना ही नहीं चाहते थे। सहजता तो इसी में है आप वो करो जो आप करना चाहते थे। जो आपकी बेसिक नेचर है। आज सहज भाव से कुछ हुआ नहीं तो सभी को देखकर हमने कुछ भी कर लिया लेकिन अतृप्त हैं, परेशान हैं। अब आप देखो इस दुनिया में हमारी सहज नेचर क्या है- शांति की, पवित्रता की है सहज नेचर है, है और हमेशा से है। लेकिन हम वो करने लग गए जिसमें हम सहज नहीं हैं। बन भी गये लेकिन हमेशा पछतावा रहा कि मैं संतुष्ट क्यों नहीं हूँ? असंतुष्ट क्यों हूँ? तो आज किसी भी कार्य में हमको इसलिए रस नहीं आता है। जैसे एक उदाहरण के साथ कहा जाये कि जब एक छोटे बच्चे को स्कूल में पढ़ाया जाता है तो हमेशा टीचर बोलता है कि आपका ध्यान आप कंसंट्रेट करो, एकाग्र करो। और वो बच्चा कहीं पर किसी पक्षी को देख रहा है, किसी ऐसी स्थिति को देख रहा है, जिसमें वो उस बात को फोकस नहीं कर रहा है जो आप करना चाहते हैं। लेकिन ऐसा तो नहीं है कि वो एकाग्र नहीं है, वो एकाग्र है। लेकिन उस चीज़ पर जिसमें उसकी सहजता है। जो उसकी बेसिक नेचर है।
अब देखो नेचर की नेचर जो होती है, प्रकृति में नैचुरल हम बहुत आराम से बैठ के कोई चीज़ को देख रहे होते हैं। उस समय तो हमें कोई विधि की ज़रूरत नहीं पड़ती। ऐसे ही हमारी जो सहज भाव वाली नेचर है वो है शांति की, प्रेम की, इसके अलावा हमारी कोई बेसिक नेचर है ही नहीं। और वो नेचर तब तक हमारे ऊपर लागू नहीं होगी जब तक हम इस दुनिया में इस बात को नहीं पकड़ पाएंगे कि तृप्ति कहाँ है? इसीलिए एकाग्रता का एक अनुपम उदाहरण है जिसमें आपको रस आए, जिसमें आप सहज हों वहाँ नैचुरल आप एकाग्र हो जाएंगे। लेकिन सहज हम हो नहीं सकते, उसका कारण है कि हमको सबसे पहले जागरूकता से जानना ज़रूरी है कि मुझे करना क्या चाहिए? मैं किसलिए बना हूँ? कौन-सा भाव मेरे अन्दर है? किस भाव से मुझे जीना चाहिए? जब ये सारी बातें हमारे अन्दर पनपेंगी तो परमात्मा की बातों को हम समझ पाएंगे। यही हम हैं और यही हमारा जीवन है। इसलिए हमको एकाग्रता की नहीं, जागरूकता की ज़रूरत है।




