प्रश्न : मैं जबलपुर से प्रिया शर्मा हूँ। मैं जब कभी भी पूजा और साधना के लिए बैठती हूँ तो मुझे कोई आकृति दिखाई देती है। और मैं समझ नहीं पाती कि ये आकृति पॉजि़टिव है या निगेटिव? इसे मैं कैसे समझूँ क्योंकि जब वो मेरे सामने आती हैं तो मेरी आँखें बंद हो जाती हैं। इसे कृपया स्पष्ट करें कि क्या हैं ये आकृतियां?
उत्तर : आजकल ये तंत्र-मंत्र का प्रयोग बहुत चल रहा है। बहुत आत्मायें भटक रही हैं। बहुत लोग सुसाइड(जीवघात) कर रहे हैं। एक्सीडेंट्स बहुत हो रहे हैं। ये आत्मायें भटक रही हैं। सूक्ष्म रूप लेकर सामने आ जाती हैं। आपको एक ही अभ्यास करना है जब भी आपको फीलिंग हो तो आप तुरंत ये अभ्यास करें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। मैं सर्वशक्तिवान की संतान हूँ। ये सात बार याद करेंगी तो भय भी खत्म हो जायेगा और वो आकृति भी लोप हो जायेंगी।
प्रश्न : मैं इंदौर से योगिता हूँ। साक्षात्कार क्या है या ट्रांस की स्थिति क्या है?
उत्तर : जब हम ईश्वरीय मार्ग पर चलते हैं तो यहाँ तीन चीज़ें विशेष रूप से हैं एक है ज्ञान का अध्ययन। जिससे हमारी बुद्धि बहुत डिफाइन और रिफाइन होती जाती है। ज्ञान का मनन-चिंतन इसी के साथ दूसरी चीज़ होती है योगाभ्यास। जिसमें हम अपना नाता सर्वशक्तिवान से जोड़ते हैं। अपनी मन-बुद्धि की तार हम उससे जोड़ते हैं। और तीसरी चीज़ कुछ लोगों को ये डिवाइन इनसाइट(दिव्य बुद्धि) प्राप्त होती है। जिसे दिव्य दृष्टि का वरदान कहते हैं, इसे ध्यान कहते हैं। एक ध्यान वो है कि हम किसी केन्द्र पर, किसी देवी-देवता की मूर्ति पर, किसी ज्योति पर अपना ध्यान एकाग्र करें। वो ध्यान नहीं जैसे रामकृष्ण परमहंस के बारे में लोगों ने सुना होगा कि वो जब पाँच साल के थे और माताओं के साथ कहीं जा रहे थे। चलते-चलते बिल्कुल बेहोश जैसा हो गया। और मातायें समझती थी कि इसे क्या हो गया, नज़र लग गई, चक्कर आ गया क्या? लेकिन वो ध्यान में स्थित रहता था। तो ऐसा कोई विशेष व्यक्ति आया तो उसके चेहरे को देखा तो बोला कि न इसको चक्कर आया और न ही ये बेहोश हुए। ये तो किसी मग्न अवस्था में हैं। क्योंकि उनके चेहरे पर दिव्यता आ जाती थी। तो ये ध्यान अवस्था है। जिसमें हम यहाँ रहते हैं लेकिन हमारी आँखें बंद हो जाती हैं। हमारी कॉन्शियसनेस(चेतना) जो है वो लोप हो जाती है। और उस सूक्ष्म लोक में पहुंच जाते हैं जो इन आँखों से नहीं देखा जा सकता। हम उसे ध्यान अवस्था में देखने लगते हैं। इसको ध्यान अवस्था कहते हैं। हमारे यहाँ ऐसे बहुत सारे भाई-बहनों को सिद्धि प्राप्त थी और जब हम यहाँ आये तो इसकी बहुत रिमझिम थी, धीरे-धीरे शिव बाबा ने इसको बंद किया कुछ समय के लिए और बंद इसलिए किया क्योंकि ये भटकती हुई आत्मायें बीच में आकर इंटरफेयर(हस्तक्षेप) करने लगी। और बाबा ने जब ये देखा कि ये जा तो रहे हैं कॉन्शियसली(सचेत) लेकिन इनको बीच में किसी ने रोक लिया है। वो इनमें प्रवेश भी कर सकती हैं तो फिर कष्ट हो जायेगा। ध्यान अवस्था बदनाम होगी इसलिए इसको स्टॉप कर दिया। लेकिन ये पार्ट फिर से प्रारम्भ होने का है। जब आत्मायें बहुत स्ट्रॉन्ग हो जायेंगी और जब ये भटकती आत्मायें उन पर अपना प्रभाव नहीं डाल पायेंगी तो इसको ध्यान अवस्था कहा जाता है। और कई सोचते हैं कि ध्यान अवस्था में आत्मा यहीं रहती है या ऊपर चली जाती है। तो बता दें कि आत्मा यहीं रहती है, अगर आत्मा शरीर छोड़ दे तो मृत्यु हो जाती है। लेकिन उसकी सम्पूर्ण चेतना यहाँ से अब्सेंट हो गई, और ऊपर जुड़ गई और उन्हें साक्षात्कार होने लगे।
ध्यान में जाने के लिए अलग से साधनाओं की ज़रूरत नहीं होती। ये पूर्व जन्मों की ही साधनाओं का परिणाम होता है कि उन्हें ट्रांस प्राप्त हो जाता है। अब रामकृष्ण परमहंस को ही ले लीजिए, बचपन से उन्होंने कहाँ साधनायें की, जितने भी महान पुरुष हुए हैं उन्हें ये गॉडली गिफ्ट के रूप में प्राप्त हो जाती है।
जब मनुष्य ध्यान में स्थित हुआ तो यहाँ अब्सेंट हुआ वो अभी ऊपर है। देखिए इसको समझने के लिए सिम्पल-सा एक उदाहरण है- एक होती है साउण्ड स्लिप,गहरी नींद, दूसरी है कि हम नींद में स्वप्न देख रहे हैं। हम वहाँ गये, हम वहाँ गये, हम उससे मिले, हमने वहाँ ये किया। हम हैं तो वहीं अपने बैड पर ही। आत्मा निकल कर भी कहीं नहीं गई। लेकिन सब्कॉन्शियस माइंड में जो मेमोरी(स्मृति) भर ली थी वो दिखने लगी अब। उसका मूर्त रूप जैसे आ गया। साकार रूप दिखने लगा। ऐसे ही ध्यान और साक्षात्कार की बात है। जो इच्छा थी, जो देखना चाहते थे वो मूर्त रूप में दिखने लगता है।
प्रश्न : जब मेडिटेशन करते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे देह से अलग हो गया हूँ और ऊपर की ओर जा रहा हूँ। कई बार तो सुखद फीलिंग होती है और कई बार बहुत डर का अनुभव होने लगता है कि ये सब क्या हो रहा है! हम कैसे समझें कि ये ठीक अनुभव हो रहा है और कब समझें कि हमें इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
उत्तर : अगर कोई दु:खद फीलिंग है और कोई भय है तो हमें इसे स्टॉप कर देना चाहिए। लेकिन अगर हम बहुत आनंदित उसमें हो रहे हैं तो ये सही है। उस चीज़ को हम कंटिन्यू(जारी) रख सकते हैं।