मुख पृष्ठलेखकिस्मत- पकडऩे से नहीं, छोडऩे से बनती

किस्मत- पकडऩे से नहीं, छोडऩे से बनती

जैसे ही हम किसी चीज़ छोड़ते हैं तो जीवन आपको वही देगा जो ज़रूरी है, जो सही है। इसीलिए योग की परिभाषा यहाँ बदल जाती है, ज्ञान की परिभाषा बदल जाती है कि जब हम अपने पुराने विचार, पुरानी भावनाएं, पुराने कर्म जो कुछ भी हमने किया उसे छोडऩा, उसको भूलना, उसको वहीं पर त्याग देना, यही तो असली ध्यान और योग है।

देखो जीवन अपना रहस्य कैसे खोलता है, या जीवन में हमारे रहस्य कैसे खुलते हैं। हम सभी हमेशा एक बात को लेकर बड़े आतुर रहते हैं। और कहते हैं कि सबकुछ हमारी मंजूरी से होना चाहिए। लेकिन जैसे ही हम ये सब छोड़ देते हैं ना तो जीवन अपने राज़ खोलता है।

जितना हम किसी चीज़ को पकड़ते हैं उतना वो हमसे छूटती जाती है। जैसे आपने मुट्ठी बंद किया हवा नहीं रूक सकती। जैसे ही आपने खोल दिया तो पूरी दुनिया उसमें समा जाती है। तो जीवन और हमारी किस्मत दोनों का जो सम्बन्ध है वो एक-दूसरे के साथ निरंतर चलता रहता है। होता क्या है कि कोई भी ध्यान, कोई भी साधना, कोई भी सम्बन्ध का आधार त्याग है। इसीलिए कहा जाता है कि जीवन, कई बार हम सोचते हैं कि छोडऩा मतलब किसी की परवाह नहीं करनी है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, बल्कि छोडऩा मतलब परवाह करना, बिना नियंत्रण के, बिना स्वामित्व के, बिना डर के। आपको पता होना चाहिए कि जैसे आजकल दुनिया में बहुत ही चर्चित विषय है कि कोई किसी को प्रेम नहीं करता, कहते भी हैं और सही भी है! लेकिन आपको पता होना चाहिए कि प्रेम हमेशा स्वतंत्रता में ही फैलता है।

अगर किसी चीज़ को आप पकड़ेंगे तो उससे डर पैदा होता है, आपको पता है किसी चीज़ को छोडऩा मतलब भरोसा करना कि यही हमारे लिए सही है। और जैसे ही हम किसी चीज़ को छोड़ते हैं जीवन आपको वही देगा जो ज़रूरी है, जो सही है। इसीलिए योग की परिभाषा यहाँ बदल जाती है, ज्ञान की परिभाषा बदल जाती है कि जब हम अपने पुराने विचार, पुरानी भावनाएं, पुराने कर्म जो कुछ भी हमने किया उसे छोडऩा, उसको भूलना, उसको वहीं पर त्याग देना, यही तो असली ध्यान और योग है।

जो हमने पकड़ा है वही हमारे अन्दर डर और भय पैदा कर रहा है। और जब हम जाग जाते हैं तो हमें पता चलता है कि ये तो अस्थाई है ये तो चला जायेगा। तो जब हम अपनी किस्मत को बदलना चाहते हैं, अपने को और अच्छा बनाना चाहते हैं और ऊपर उठाना चाहते हैं तो हमको वो हर चीज़ जो हमने होल्ड की हुई है, जो हमने अपने अन्दर पकड़ी हुई है, उसको छोडऩा है तो सारे रास्ते खुल जाते हैं। और सबसे ज्य़ादा गहरा जो स्वभाव है वो है हमारे अहंकार को गिराना। हमेशा हम जब कोई चीज़ को पकड़ते हैं तो अहंकार जो जन्म देते हैं। जैसे उदाहरण लेते हैं- हमने इच्छा, लालसा, मोह, अहंकार की ऐसी बहुत सारी चीज़ें पकड़ी हुई हैं। जब हम इसको छोड़ेंगे तभी तो हमारे अन्दर प्रेम पैदा होगा। इसीलिए कहा जाता है कि जब हम छोटी-छोटी चीज़ों को छोडऩा शुरू करते हैं, या छोडऩा सीखते हैं, या होल्ड करना छोड़ देते हैं तो आने वाले समय में मृत्यु भी हमारे लिए एक अन्तरतम विषय हो जाती है। उदाहरण के लिए – शरीर छोडऩा भी आपको सहज लगेगा क्योंकि हमने और चीज़ों को छोड़ दिया। आपको पता है इस दुनिया में जो कुछ भी आप इन आँखों से देखते हैं उसे पकडऩे की कोशिश करते हैं। और आपको पता है जो चीज़ हम पकडऩे की कोशिश कर रहे हैं वो आज नहीं तो कल छूट जाएगा।

जैसे आपने देखा होगा कि सुबह सूरज कुछ और होता है, धीरे-धीरे दोपहर को कुछ और होता है, शाम को कुछ और होता है, बदल जाता है ना! ऐसे जीवन में जो कुछ भी हम इन आँखों से देख रहे हैं वो बदल जा रहा है। लेकिन उसको होल्ड करना, उसको पकडऩा, अपनी अवस्था को गिराना है। इसलिए जीवन को जीतने का तरीका है- हार मानना। हार मानने का मतलब जो भी है उसको छोड़ दें। पकड़ हमारे भविष्य से या हमारे अतीत से जुड़ी होती है। ध्यान से इस बात को समझना है, कोई भी पकड़, कोई भी चीज़ या तो भविष्य से जुड़ी होती है, या अतीत से जुड़ी होती है। और वही चीज़ हमको तंग करती है। अगर जीवन को जीतना है, किस्मत को बदलना है तो कर्म को अकर्म बनाना है।

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