जब भी कोई प्रतियोगिता को तोडऩा होता है या क्रॉस करना होता है तो हमें बहुत सारी सूचनाएं चाहिए। आम भाषा में कहेंगे कि बहुत सारी इनफॉर्मेटिव नॉलेज चाहिए। क्योंकि दुनिया की किताबों में जो चीज़ें लिखी हैं वो किसी ने तो लिखी होंगी और उसने भी कहीं से देखा होगा, पढ़ा होगा। वो आपके पास आ गई तो आपने उसे पढ़ लिया। तो वो एक सूचना के रूप में आपके पास आ गई और उसी सूचना को एक बार आपने पुन: अपने प्रतियोगिता या परीक्षा में रट के या पढ़ के डाल दिया तो उसपर आपको नम्बर मिल जाते हैं और आपको डिग्री मिल जाती है। इसको कहते हैं किताबी ज्ञान या किताबी सूचना। जो आपको दी गई या आपने पढ़ी। सही है, गलत है, इसपर नहीं जा रहे हैं हम, लेकिन इसी को सूचना कहते हैं। लेकिन किसी भी सूचना को जब हम प्रैक्टिकल में लाते हैं या समझ के उसका प्रयोग करते हैं तो वो नॉलेज बन जाती है।
आज बहुत सारे अच्छे-अच्छे टीचर्स, अलग-अलग सब्जेक्ट्स के आपको मिलेंगे जिनको उस सब्जेक्ट पर पकड़ है और आप उनसे वो चीज़ सुनते हैं तो प्रभावित होते हैं। लेकिन उस सब्जेक्ट की पकड़ से क्या आपको फायदा हुआ? ज्य़ादा से ज्य़ादा आप उस सब्जेक्ट को उनसे सुनेंगे, थोड़ा-सा प्रभावित होंगे और उसी चीज़ को जाकर लिख देंगे, फिर दो-चार साल बाद भूल जायेंगे नौकरी-पेशे में आने के बाद। फिर जब किसी-किसी बातों में आप परेशान होंगे, उलझनों में उलझेंगे, समाज के या ऑफिस के नये कायदे-कानून में आपको काम करना होगा, उस समय जब मूड थोड़ा ऑफ होता है तो आपको कैसा लगता है? क्या ये वो किताबें ठीक कर पायेंगी? तो यहाँ आप कैसे ठीक होंगे? ये जानना बहुत ज़रूरी है। ये ज्ञान भी ज़रूरी है।
ये वही ज्ञान है जो हमको भय से, चिंता से, भ्रांतियों से, अफवाहों से, अलग-अलग तरह के तनावों से पूरी तरह से निकाल दे। इसलिए ज्ञान अनुभव से आता है या उसका दैनिंदनी/दिनचर्या में प्रयोग से आता है। तो ज्ञान का प्रभाव डालना क्या होता है, ये शायद लोग कम समझ पाते हैं। ज्ञान के प्रभाव का पैरामीटर यह है कि कोई व्यक्ति जितना अनुभव बाहरी परिस्थितियों में, बाहरी बातों से अपने आपको निकाल कर एक संयमित जीवन जीता है तो लोग उसको देखते हैं तो कहते हैं उनसे कुछ सीखना चाहिए जो हमेशा हल्के रहते हैं और इतना कर्म भी करते हैं। मतलब ज्ञान का पूरी तरह से अपने ऊपर प्रयोग करने वाले से हम कुछ सीखते हैं। नहीं तो लोग हमेशा कहते हैं कि बोल कुछ और हैं कर्म कुछ और हैं। दोनों में अंतर है। इसी कमी के कारण लोग हमको फॉलो नहीं करते, सिर्फ सुनते हैं और चले जाते हैं। ज्ञान यही कहता है कि हम जब सच में अपनी इंद्रियों पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित करते हैं, बहुत कम समय में बहुत सारी बातों से बाहर निकल पाते हैं, किसी भी बात का अहम और वहम हमारे अंदर नहीं होता तो हमारे वायब्रेशन लोगों तक पहुंचते हैं।
कई बार आपने देखा होगा कि आप कोई लेख पढ़ रहे होते हैं और उसको पढ़ते-पढ़ते आपके रोंगटे खड़े हो जाते हैं तो निश्चित रूप से उस लेखक ने उसमें बहुत सारा अपना एफर्ट डाला है। तभी तो आप वो पढ़ते हैं। मतलब उसका वायब्रेशन आपको पढऩे पर मजबूर करता है। ऐसे किसी का इंटरव्यू आप सुनते हैं, किसी को बातचीत करते हुए सुनते हैं तो आपको एक बदलाव महसूस होता है और आप संकल्प करते हैं कि मैं भी अपने आप को इस राह पर चलाऊंगा। ये वही ज्ञान का प्रभाव डालना है, जो हमारे अंदर पूरी तरह से उतरा हुआ हो। इसलिए ज्ञान या समझ या अंडरस्टैंडिंग या कॉन्शियसनेस या अवेयरनेस हमारे प्रायोगिक जीवन के सम्पूर्ण अनुभव ही तो हैं जो लोगों तक वायब्रेट होकर पहुंच रहे हैं। सभी उसी को अपनी जीवनशैली में उतारते हैं और बार-बार इस चीज़ की चर्चा करते हैं कि आपसे मिलकर कुछ सीखने को मिलता है। तो जहाँ पर सीखना शब्द आ जाये, कोई कहे आपसे कुछ सीखने को मिलता है तो समझो आपके कर्म में ज्ञान का वायब्रेशन आ गये। मतलब आप प्रैक्टिकल हैं। इसीलिए किसी से हम प्रभावित तब होते हैं जब हमारे अंदर कोई कमी होती है। लेकिन जैसे ही हम उस कमी को अपने मनन-चिंतन से भरपूर कर लेते हैं तो वो कमी हमारी ताकत बनती है और हर कर्म हम समझकर करने लग जाते हैं। फिर प्रभावित न होकर प्रभाव डालने वाले बन जाते हैं। तो इसलिए ज्ञान से प्रभावित न होकर ज्ञान का प्रभाव सबके ऊपर डालने वाले हम तभी बन सकते हैं जब हम प्रैक्टिकल होंगे।