कलम की पवित्रता करेगी कमाल

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आज हम मीडिया की शक्तियों पर ध्यान दें तो उनका उपयोग जिस तरह से होना चाहिए उस रूप में नहीं हो रहा है। मीडिया स्वार्थ से प्रेरित होता प्रतीत हो रहा है। मीडिया माध्यम की पवित्रता पर ही प्रश्नचिन्ह दिखाई दे रहा है। हम सब चाहते हैं इसका उपयोग समाज की हर इकाई की बेहतरी के लिए हो। ऐसा ही चाहते हैं ना? बेहतरी माना जहाँ पर समाज में सुसंस्कार, सभ्यता, समृद्धि एवं सुख हो। हमने मीडिया को सुंदर विचारों के साथ ही आरंभ किया ना! पर चलते-चलते चुनौती एवं स्वार्थ के वश अपने पवित्र उद्देश्य को दरकिनार कर दिया। हम देखना चाहते हैं कि मीडिया ऐसा माध्यम बने कि जहाँ सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय वाली परिकल्पना साकार हो। मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसकी पहुंच बड़ों से लेकर साधारण जन तक है। ये एक ऐसा प्रभावी माध्यम है जो अपनी बात प्रभावी ढ़ंग से दूसरों तक पहुंचा सकता और दूसरों के उन्नत विचारों को अपनी कलम में समाहित कर सकता है। तो आज आवश्यकता है हम प्रभावी माध्यम बनें। बेशक चारों ओर हमारे इस पवित्र उद्देश्य को सार्थक करने में कई सारी चुनौतियां भी हैं किंतु हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अंधेरे में ही रोशनी की आवश्यकता होती है।
मीडिया माध्यम को प्रभावशाली बनाने के लिए उसकी रचना में शक्ति होनी चाहिए। और उस शक्ति के लिए स्वयं में आत्मबल व श्रेष्ठ विचार होना ज़रूरी है। स्वयं में श्रेष्ठ संस्कार होगा तो वो कलम में भी उतरेगा। आपके शब्दों के वायब्रेशन पाठकों तक पहुंचेंगे और उनके जीवन में भी बदलाव का कारण बनेंगे। हमें सिर्फ समस्याओं और होने वाली घटनाओं का ही समाचार देकर अपनी जि़म्मेदारी को सीमित नहीं कर लेना चाहिए, क्योंकि मीडिया का उद्देश्य है आम जन की जि़ंदगी में बेहतरी लाना, उनकी जटिलताओं को सरल बनाना, सहयोग करना, सही दिशा देना।
हाल ही में ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा आयोजित क्रसमाधानपरक पत्रकारिता से समृद्ध भारत की ओरञ्ज विषय पर महासम्मेलन में ये निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि हमें न सिर्फ समाज की समस्याओं को उजागर करना है बल्कि समाधान स्वरूप भी बनना है। अब मन में प्रश्न उठता है कि ऐसी पहल की कैसे जाए? इसके लिए स्वयं के जीवन में सकारात्मकता को दृढ़तापूर्वक अपनाना होगा। हमें आध्यात्मिक शक्तियों से रूबरू होना होगा। इसका सीधा-सा, सरल-सा अर्थ है कि आत्मा को शक्तिशाली करना होगा। आत्मा की आंतरिक शक्तियों को जागृत कर उसे कर्मक्षेत्र पर क्रियान्वित करना होगा। आज आवश्यकता है सशक्त माध्यम बनने की। जो अपने अंदर होगा वही तो कलम में उतरेगा, शब्दों में आयेगा और पाठकों तक उन शक्तियों का संचार होगा। हमारा ये अनुभव है कि अपने को शक्तिशाली बनाने के लिए राजयोग मेडिटेशन जैसे शक्तिशाली टूल को अपने जीवन में स्थान देना ही होगा। मीडिया को मेडिटेशन का साथ मिलेगा तो उसकी रचना में ताकत आयेगी। हमने ये करके देखा कि सुबह उठते ही अगर हम सकारात्मक ऊर्जा के साथ अपने को मेडिटेट करते हैं, तो श्रेष्ठ विचारों का संचार हमारे मन को प्रसन्न और प्रफुल्लित करता है। मन में कुछ अच्छा करने की इच्छा पैदा होने लगती है। श्रेष्ठ शक्तियों से रूबरू होने के पश्चात् वो शक्तियां हमारे कार्यक्षेत्र में भी प्रवाहित होने लगती हैं और सभी को प्रभावित करने लगती हैं। हम सभी चाहते हैं ना कि समाज सुधरे, समाज आगे बढ़े, बदलाव हो, जहाँ सभी सुख-शांति से रहें। तो सीधा सा और सरल-सा उपाय है कि स्वयं को सशक्त करना ही होगा। अन्यथा तो हमारे पास जो परमात्म प्रदत्त विशेषताएं हैं उनका इस्तेमाल दूसरी दिशा में ही होता रहेगा। क्योंकि जो शक्ति है, वो अपना जलवा तो दिखायेगी ही। और अगर उसमें स्वार्थ मिल जायेगा तो वो समाज की बेहतरी के बजाय नुकसानदायक होगा। हम तो आपको यही बताना चाहते हैं कि कलम में अगर ताकत होगी तो कलम कमल की तरह कीचड़ में भी पवित्रता को बनाये रखेगी। बस, शुरुआत स्वयं से करनी है तो समाधान अवश्य मिलेगा। फिर हमने अगर शुरुआत करने की हिम्मत की तो कारवां यूं ही आगे बढ़ता चला जायेगा और अपने पवित्र उद्देश्य का साकार रूप सामने नज़र आने लगेगा। बेशक हम चौबीसों घंटे ऐसी सेवाओं में अपने आप को बिज़ी रखते हैं, लेकिन अगर इसके साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होंगे तो तरोताज़ा भी महसूस करेंगे, न थकेंगे, न निराश होंगे, न हताश होंगे। तो हमारा आग्रह यही होगा कि 24 घंटे में से एक घंटा स्वयं के लिए निकालें। सकारात्मक ऊर्जा से अपनी बैटरी को चार्ज कर लें। जैसे मोबाइल को चार्ज करते हैं, फिर सारा दिन यूज़ करते हैं। उसी तरह चार्ज होकर हम दिन में आने वाली हर घटनाओं, परिस्थितियों में भी ऊर्जावान रहेंगे और अपनी जि़म्मेवारी बखूबी निभा पायेंगे। जब सकारात्मक कार्य किया होगा तो वो दुआएं भी हमारे मन-मस्तिष्क को तरोताज़ा रखने में सहायक रहेंगी। और तभी स्वार्थ और परमार्थ दोनों कार्य सिद्ध होंगे।

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